राफेल विमान सौदे की कीमत एक साल से सुर्खियों में है। विपक्ष जहां सरकार पर धांधली के आरोप लगा रहा है, वहीं सरकार का कहना है कि उसने यूपीए से कम कीमत पर डील फाइनल की। इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच अंग्रेजी अखबार ‘द हिंंदू’ ने कुछ दस्तावेज के आधार पर एक्स्क्लूसिव खबर छापी है। इस खबर में यह बताया गया है कि राफेेेल की कीमत कैसे और कितनी बढ़ गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस की राजधानी पेेरिस में 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए डील की, जबकि भारतीय वायु सेना 126 ऐसे विमान चाहती थी। ‘द हिंंदू’ में एन राम की रिपोर्ट के मुताबिक कीमतों में बढ़ोत्तरी की मुख्य वजह थी भारत द्वारा विमान में खास तौर से कुछ जरूरतें (India Specific Enhancements) पूरी करने की मांग। इसी वजह से इन विमानों की कीमत 41.42 फीसदी ज्यादा हो गई। हालांकि, इस मुद्दे पर विरोधी दलों के साथ सरकार की रार तब ठनी जब उसने राफेल विमानों की खरीद का पूरा आंकड़ा देने इनकार कर दिया। सरकार ने संसद की विशेषाधिकार कमेटी को भी विमानों की कीमत बताने से इनकार कर दिया। सरकार ने तर्क दिया कि भारत और फ्रांस ने राफेल सौदे के लेकर किसी भी तरह की गोपनीय जानकारी साझा नहीं करने की संधि की है।
हालांकि, बाद में फ्रांस की सरकार ने यह स्पष्ट किया कि दोनों देशों के बीच विमान में लगने वाले रक्षा उपकरणों की जानकारी नहीं देने को लेकर करार हुआ है। यह संधि विमान की सामरिक शक्ति को लेकर है। इससे साफ है कि इस डील में सुरक्षा संबंधी जानकारी साझा नहीं की जा सकती, लेकिन विमानों की कीमत बताई जा सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स में विमान के संबंध में कई जानकारियां प्रकाश में आई हैं। लेकिन, इसकी असल कीमतों के लेकर पुख्ता जानकारी अभी तक किसी के पास नहीं है। इस संबंध में सरकार की तरफ से जवाब मिलना अभी बाकी है।
द हिंदू में छपे एक लेख में बताया गया है कि राफेल विमान सौदे में कीमतें कैसे और क्यों बढ़ाई गई। लेख के मुताबिक 2007 में यूपीए की सरकार ने L1वेंडर (सबसे कम बोलियां लगाने वाली कंपनी) एमएस दसॉल्ट को 126 राफेल जेट बनाने का ठेका दिया। इसमें 18 विमान उड़ान भरने की क्षमता वाले थे और बाकी के 108 का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लमिटेड (एचएएल) के तहत तैयार होने थे।
उस दौरान दसॉल्ट ने बिना किसी अतिरिक्त सुरक्षा उपकरण वाले विमान की कीमत 79.3 मिलियन यूरो (लगभग 6.43 अरब रुपये) तय की थी. 2011 तक एक विमान की कीमत में 100.85 मिलियन यूरो (लगभग 8.12 अरब रुपये) की बढ़ोतरी दर्ज हो गई। हालांकि, जब एनडीए सरकार के साथ 2016 में सौदे को लेकर बातचीत आगे बढ़ी तब दसॉल्ट ने इसकी कीमतों में 9 फीसदी का डिस्काउंट दिया। तब एनडीए की सरकार ने फ्रांस के साथ एक संधि की और 36 विमानों के लिए प्रति विमान की कीमत में 91.75 मिलियन यूरो (लगभग 7.44 अरब रुपये) की कमी हुई।
हालांकि, कीमतों के संदर्भ में कहानी यहीं पूरी नहीं होती। इसके हटकर भारतीय वायुसेना ने विमान में अतिरिक्त रूप से 13 अहम नए फीचर जोड़ने के लिए कहा। इस अतिरिक्त सुरक्षा सामग्री में हार्डवेअर और सॉफ्टवेअर तकनीक शामिल थी। दसॉल्ट ने विमानों के डिजाइन और उसे भारत के डिमांड के मुताबिक सामरिक तौर पर विकासित करने के लिए 1.4 बिलियन यूरो (लगभग 1.13 खरब रुपये) कीमत तय की। काफी मोलभाव के बाद अतिरिक्त रक्षा उपकरणों से लैस विमानों की कीमत कीमत 1.4 से गिरकर 1.3 बिलियन यूरो (लगभग 1.05 खरब रुपये) पर तय हुई। इसका मतलब 36 विमानों पर लगने वाले अतिरिक्त सुरक्षा उपकरणों की लागत एक विमान पर जहां 2007 में 11.11 मिलियन यूरो (करीब 90.15 करोड़ रुपये) बैठ रही थी, वह 2016 में बढ़कर 36.11 मिलियन यूरो (करीब 2.93 अरब रुपये) हो गई। हालांकि, सौदे के लिए गए 9 वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों में से तीन ने इसकी बढ़ी हुई कीमत का विरोध किया था।