सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (14 नवंबर) को राफेल सौदे से संबंधित अपने पिछले साल के फैसले से जुड़ी सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया। इन याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट से पिछले साल 14 दिसंबर को दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने और कोर्ट के निर्देशन में 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद की जांच कराने की मांग की गई थी लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में खंडपीठ ने उसे खारिज कर दिया। ये याचिकाएं पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दाखिल की थी। इन लोगों ने अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित और बाद में समाचार एजेंसी ANI द्वारा जारी समाचारों को आधार बनाकर याचिकाएं दाखिल की थीं।

खंडपीठ में सीजेआई रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस एस के कौल भी शामिल थे। तीनों जजों ने भले ही अपने पुराने फैसले की समीक्षा करने से इनकार कर दिया हो लेकिन जस्टिस जोसेफ ने मामले में एक अलग निर्णय दिया है। उन्होंने कहा कि भले ही मामले की समीक्षा की अर्जी रद्द कर दी गई है लेकिन यह सीबीआई द्वारा जांच किए जाने की राह में रोड़ा नहीं बनेगा। उन्होंने अपने फैसले में लिखा है कि यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के तहत पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने के बाद दस्तावेज़ पर कार्रवाई करने से सीबीआई के “रास्ते में अवरोध खड़ा नहीं करेगा।”

जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई से मौजूदा सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र होकर तथा सर्वोच्च गुणवत्ता के पेशेवर तरीकों और तटस्थता के साथ काम करने की अपेक्षा की जाती है। उन्होंने कहा, ‘‘यह साफ है कि पहली प्रतिवादी (सीबीआई) जो देश की प्रमुख जांच एजेंसी है, से मौजूदा सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र होकर काम करने की अपेक्षा की जाती है। भारत सरकार पहले प्रतिवादी (सीबीआई) की तरफ से नहीं बोल सकती।’’ उन्होंने कहा कि सीबीआई सभी तरह की जांच करने के संसाधनों से लैस है, चाहे तकनीकी जांच हो या अन्य किसी तरह की। उन्होंने कहा, ‘‘सर्वोच्च गुणवत्ता की पेशेवर योग्यता, बिना समझौता किये स्वतंत्रता और तटस्थता की उससे अपेक्षा की जाती है।’’

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने शिकायत करने से पहले पूरी तरह से जान लिया है कि धारा 17ए के तहत तब तक कोई जांच या पूछताछ या जांच के लिए बार का गठन नहीं किया जा सकता है जब तक कि पिछली मंजूरी हासिल न हो। दरअसल, इस मामले में 2018 की अधिनियम की धारा 17 ए के तहत जांच की अनुमति का अनुरोध किया गया है। पिछले साल 24 अक्टूबर 2018 को एक रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 298 दायर की गई थी जिसमें एफआईआर दर्ज न करने की शिकायत दर्ज की गई है। फिलहाल धारा 17 ए को कोई चुनौती नहीं है। कानून के तहत, यह याचिका दाखिल करने की तारीख से लेकर आज तक वैसा का वैसा ही है। धारा 17ए के तहत किसी भी जांच या पूछताछ या जांच के लिए  बार का गठन किया जा सकता है।