राफेल फाइटर जेट डील को लेकर नया खुलासा हुआ है। शुरुआती दौर में फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट (राफेल की निर्माता कंपनी) ने मुकेश अंबानी की स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) की एक सब्सिडरी कंपनी के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया था। इस मसले पर बातचीत अंतिम दौर में पहुंच चुकी थी, लेकिन बाद में RIL वर्ष 2014 में डिफेंस और एयरोस्पेस के क्षेत्र में कदम रखने से पीछे हट गई। ऐसे में इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। दिलचस्प है कि राफेल डील में मुकेश के छोटे भाई अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को पार्टनर बनाए जाने को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर है। बता दें कि शुरुआती करार में लड़ाकू विमान खरीद करार में ऑफसेट स्कीम का प्रावधान किया गया था, जिसके तहत फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट को भारत में 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश करना था। मालूम हो कि वर्ष 2007 में सरकार ने 126 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए निविदा जारी की थी। ऑफसेट रकम का निर्धारण डील के कुल मूल्य के आधार पर किया गया था। ‘इकोनोमिक टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, इस डील में ऑफसेट्स इंडिया सॉल्यूशंस ने भी दिलचस्पी दिखाई थी। सूत्रों ने बताया कि कंपनी ने अरबों रुपए के करार में शामिल होने के लिए डसॉल्ट पर कथित तौर पर दबाव भी डलवाया था, लेकिन बात नहीं बन सकी थी। इस कंपनी के प्रमोटर संजय भंडारी के तार कथित तौर पर राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े थे। जांच एजेंसियों द्वारा शिकंजा कसने पर भंडारी फरवरी, 2017 में लंदन भाग गया, जिसके बाद ऑफसेट्स सॉल्यूशंस बंद हो गई।
फ्रेंच कंपनी को पार्टनर चुनने की दी गई थी छूट: लड़ाकू विमान का ठेका हासिल करने वाली राफेल को निजी क्षेत्र से पार्टनर चुनने की छूट दी गई थी। हालांकि, मुख्य प्रोडक्शन लाइन हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर ही स्थापित करना था। इस रिपोर्ट के अनुसार, डसॉल्ट लड़ाकू विमान खरीद मामले में 28 अगस्त, 2007 को शामिल हुई थी। फ्रेंच कंपनी ने शुरुआत में टाटा ग्रुप से पार्टनरशिप को लेकर बातचीत की थी। दो लाख करोड़ रुपये मूल्य के इस डील में अमेरिका की बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी कंपनियां भी शामिल थीं। टाटा ग्रुप के अमेरिकी कंपनी के साथ जाने पर डसॉल्ट ने पार्टनरशिप को लेकर RIL के साथ बातचीत शुरू की थी। बता दें कि मुकेश अंबानी की स्वामित्व वाली कंपनी ने 4 सितंबर, 2008 को रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के नाम से अलग कंपनी भी गठित की थी। जनवरी, 2012 में यह डील डसॉल्ट के हाथ लगी थी। जून, 2014 में केंद्र में दूसरी सरकार के आने के बाद मुकेश अंबानी की कंपनी एयरोस्पेस के क्षेत्र में हाथ आजमाने से पीछे हट गई और मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग कि मियाद जानबूझ कर खत्म होने दी गई। इसके बाद ऑफसेट्स सॉल्यूशंस ने एक बार फिर से डसॉल्ट से संपर्क साधा था, लेकिन प्रमोटर का तार रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े होने के कारण बात नहीं बन सकी थी।
मार्च, 2015 में रिलायंस डिफेंस बना पार्टनर: केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद राफेल डील पर सरकार स्तर पर बातचीत शुरू हुई। बदले हालात और प्रावधानों में डसॉल्ट ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को पार्टनर के तौर पर चुना था। रिपोर्ट की मानें तो मुकेश अंबानी के साथ शुरुआती बातचीत के प्रभाव के चलते अनिल अंबानी की कंपनी को पार्टनर चुना गया।