राफेल डील को लेकर भारत में राजनीतिक घमासान मची हुई है। विपक्षी कांग्रेस फाइटर जेट की अत्यधिक कीमत को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार हमले कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि उसकी सरकार के दौरान हुए खरीद समझौते में एक विमान की कीमत बहुत कम थी। मोदी सरकार पर रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचाने के लिए फाइटर जेट के दाम में अत्यधिक वृद्धि करने का आरोप लगाया जा रहा है। हालांकि, केंद्र शुरुआत से ही कह रहा है कि UPA सरकार के दौरान जिस राफेल विमान की खरीद पर सहमति बनी थी, वह तकनीकी और सामरिक तौर पर कहीं कम उन्नत था। अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि भारत ने राफेल की निर्माता फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन को लड़ाकू विमान में कई बदलाव करने को कहा था, जिसके बाद राफेल फाइटर जेट में कम से कम 14 अपग्रेड किए गए। इस पर तकरीबन 1.7 बिलियन डॉलर (12,191 करोड़ रुपये) की लागत आई। बता दें कि भारत शुरुआत में फ्रांसीसी कंपनी से 36 राफेल विमान खरीदेगी।
3/12-Contrary to what some may believe, these 14 India specific enhancements are not the figment of anyones imagination. They were a component of what the UPA failed to negotiate and are now a part of what the IAF is getting.
— Vishnu Som (@VishnuNDTV) September 13, 2018
ज्यादा सक्षम और मारक है अपग्रेडेड विमान: भारत की मांग के अनुसार राफेल फाइटर जेट में जो अपग्रेडेशन किए गए हैं, उससे इस विमान के पहले से ज्यादा सक्षम और मारक होने की बात कही जा रही है। बताया जाता है कि इस हद तक आधुनिक और सक्षम राफेल लड़ाकू विमान फिलहाल फ्रांस की वायुसेना के पास भी नहीं है। मोदी सरकार ने फ्रेंच कंपनी को जिन बदलावों के लिए राजी किया उसमें कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार विफल रही थी। विमान में पहले के मुकाबले ज्यादा प्रभावी बैंड जैमर, टो डेकॉय सिस्टम (जेट को राडार गाइडेड मिसाइल से बचाने वाला सिस्टम), उन्नत इंजन, राडार और फ्रंट सेक्टर ऑप्ट्रोनिक्स (विमान को राडार से निष्क्रिय करने से बचाने में सक्षम) अतिरिक्त जोड़ा गया है। इसके अलावा विमान को इजरायल की नई सेटेलाइट कम्यूनिकेशन सिस्टम के प्रति भी अनुकूल बनाया गया है। साथ ही राफेल फाइटर जेट इजरायली मिसाइल को भी ले जाने में समर्थ होगा। बता दें कि भारतीय वायुसेना को अविलंब लड़ाकू विमान की जरूरत है। मिग सीरीज के विमान पहले ही पुराने पड़ चुके हैं। लंबे समय से फाइटर जेट की खरीद नहीं हो सकी है। राफेल डील की शुरुआत यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में हुई थी। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह मामला कंपनी-टू-कंपनी से सरकार के स्तर पर आ गया था।