म्यंमा, चीन से हथियार, हथियार उत्पादन सुविधाओं और नए सैन्य हथियारों के बदले में उसको जासूसी करने, निगरानी करने और जासूसी विमानों के उड़ान भरने के लिए अपनी जमीन और समुद्री क्षेत्र उपलब्ध करा रहा है। चीन ने सिग्नल इंटेलिजेंस की सुविधाएं न केवल ग्रेटर कोको द्वीप पर स्थापित की हैं, बल्कि उसने अराकान तट के पास रैमरी द्वीप पर भी इसका ढांचा खड़ा किया है। रंगून के मंकी प्वाइंट और क्रे प्रायद्वीप के पास स्थित जडेटक्यी क्यून द्वीप पर भी सिग्नल इंटेलिजेंस का तकनीकी ढांचा स्थापित किया है। भारत ने म्यांमा के सैन्य शासन से इन गतिविधियों को लेकर कड़ा प्रतिरोध दर्ज कराया है।
कोको द्वीप के सबूत
म्यांमा के कोको द्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित भारतीय सेना के तीनों अंगों के बेस से बस 55 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। म्यांमा की सेना ने इस बात से इनकार करती रहती है कि वो चीन की मदद कर रही है। हालांकि, हाल में सामने आर्इं उपग्रह तस्वीरों से पता चला है कि म्यांमा के सैन्य शासक हवाई पट्टी का विस्तार कर और सिग्नल इंटेलिजेंस जुटाने का मजबूत ढांचा खड़ा कर कोको द्वीप के अड्डे का विस्तार कर रहे हैं।
आधिकारिक रूप से म्यांमा में शासन कर रहे सैन्य अधिकारियों की राज्य प्रशासनिक परिषद ने भारत की उन चिंताओं को खारिज कर दिया है कि कोको द्वीप पर मूलभूत ढांचे के विस्तार के तहत म्यांमा, विदेशी सेना की तैनाती या अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो चीन को अपने सैनिक तैनात करने की इजाजत दे रहा है।
इसके बावजूद, म्यांमा द्वारा कोको द्वीप पर इलेक्ट्रानिक जासूसी की क्षमता विकसित करने के लिए सुरक्षा की स्वतंत्र रूप से सामरिक आवश्यकता नजर नहीं आती। यह जरूर है कि चीन द्वारा दी जा रही लुभावनी मदद के बदले में वो जरूर ऐसा कर सकता है। चीन के सैन्य कर्मचारियों, खास तौर से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स के तकनीकी जानकारों की पहुंच इस द्वीप तक जरूर है।
चीन-म्यांमा संबंध
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमा के अलग-थलग पड़ने के कारण चीन के उसके साथ मजबूत संबंध विकसित हुए हैं। म्यांमा, चीन से हथियार, हथियार उत्पादन सुविधाओं और नए सैन्य हथियारों के बदले में उसको जासूसी करने, निगरानी करने और जासूसी विमानों के उड़ान भरने के लिए अपनी जमीन और समुद्री क्षेत्र उपलब्ध करा रहा है।
चीन ने सिग्नल इंटेलिजेंस (सिजिनेट) की सुविधाएं न केवल ग्रेटर कोको द्वीप पर स्थापित की हैं, बल्कि उसने अराकान तट के पास रैमरी द्वीप पर भी इसका ढांचा खड़ा किया है। साथ ही, रंगून के मंकी प्वाइंट और क्रे प्रायद्वीप के पास स्थित जडेटक्यी क्यून द्वीप पर भी सिग्नल इंटेलिजेंस का तकनीकी ढांचा स्थापित किया है। वर्ष 1990 के दशक से ही म्यांमा के इरावदी में चीन की तीनों सेवाओं का एक बड़ा अड्डा है।
हिंद महासागर की रणनीति
कोको द्वीप पर चल रही ये गतिविधियां चीन की हिंद महासागर संबंधी रणनीति को और धार देने का संकेत हैं। इसके पीछे चीन के इरादों का पता लगाना खतरनाक और मुश्किल प्रयास होगा। हाल में चीन ने जोखिम लेने के प्रति रुझान बढ़ाया है और अब चीन को यह लगने लगा है कि उसकी अपनी क्षमताएं, उसकी सेना को दुश्मन की तैयारियों का परीक्षण करने और जानकारी जुटाने के अवसर प्रदान करती हैं।
हालांकि, म्यांमा का चीन के सैन्य दुस्साहस का मोहरा बनाना, स्पष्ट रूप से भारत के लिए अशुभ संकेत है। चीन द्वारा सैन्य अड्डे बनाने से ये पता भी चल जाता है कि श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह से भारत को कैसे खतरे हैं। पाकिस्तान के ग्वादर और कराची की तो बात ही जाने दीजिए। चीन की सेना पहले ही भारत के दावे वाले इलाकों में घुसकर बैठी है।
ऐसे में म्यांमार के साथ साठ-गांठ करके कोको द्वीप पर चीन द्वारा अंडमान निकोबार में भारत के सैनिक अड्डे के बेहद करीब जासूसी का अड्डा बनाना, उसकी भारत को डराने की कोशिश ही कहा जाएगा। अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर एकीकृत कमान के तहत भारत की तीनों सेनाओं के साझा अड्डे हैं।
द्वीप का विस्तार
वर्ष 2017 में कोको द्वीप पर स्थित हवाई पट्टी का विस्तार 1300 मीटर से बढ़ाकर 2300 मीटर किया गया था। इस हवाई पट्टी को और बढ़ाकर 2500 मीटर किया जा सकता है। ग्रेट कोको द्वीप के सबसे दक्षिणी सिरे पर एक अतिरिक्त रनवे का निर्माण किया गया। अब इन उपायों के साथ विमानों के खड़े होने के लिए हैंगर के निर्माण जैसी नई सुविधाएं तैयार की गईं।
इस द्वीप पर एक रडार स्टेशन, रिहाइश के लिए इमारतें और चीन की सेना और उसके सहयोगी के लिए भविष्य में हमला कर सकने लायक एक अड्डा बनाया गया है। चीन अब वहां से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से हो रहे संचार की निगरानी कर सकने में सक्षम है। इसके अलावा वह भारतीय सेना की निगरानी वाली उड़ानों और नौसेना के तैनाती के चलन का भी पता लगा सकता है।
भारत के लिए मायने
चीन अपने मूलभूत ढांचे और गोपनीय जानकारी जुटाने के संसाधनों के निर्माण के जरिए अपनी सैन्य क्षमता और ताकत की नुमाइश के मौके के तौर पर देखता है, जिससे वो युद्ध छिड़ने की सूरत में समुद्र में भारत के पलटवार करने की क्षमता को सीमित कर सके। ऐसे में भारत को म्यांमार के खिलाफ और अधिक दबाव बनाना होगा और वहां के सैन्य शासकों को ये समझाना होगा कि कोको द्वीप या फिर म्यांमार का कोई भी इलाका चीन द्वारा भारत के खिलाफ और भारत के समुद्री और थल सैनिक अड्डों पर हमले करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
क्या कहते हैं जानकार
कोको द्वीप पर चीन द्वारा अतिरिक्त सैन्य मूलभूत का निर्माण इस बात पर मुहर लगाती हैं कि उसकी सैनिक महत्त्वाकांक्षाएं, ताइवान पर दावे, दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से कहीं दूर तक फैली हुई हैं।
- लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एचएस पनाग, रक्षा विशेषज्ञ
भारत को अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर स्थित अपनी मौजूदा क्षमताओं की पर्याप्तता की समीक्षा करनी होगी और ऐसे उपाय करने होंगे, जो चीन की सेना के खिलाफ उसकी क्षमताओं को बढ़ा सकें। म्यांमा को भी साफ-साफ कहना होगा।
- मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अशोक मेहता,रक्षा विशेषज्ञ