पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पी वी नरसिम्हा राव और मशहूर वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (मरणोपरांत) से सम्मानित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ‘X’ पर पोस्ट कर यह जानकारी दी। पीएम ने एक पोस्ट में कहा कि उन्हें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा।
केंद्र सरकार ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का ऐलान किया है। नरसिम्हा राव लगातार आठ बार चुनाव जीते और कांग्रेस पार्टी में 50 साल से ज्यादा समय गुजारने के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने। नरसिम्हा राव 20 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। नरसिम्हा राव को ‘भारतीय राजनीति का चाणक्य’ कहा जाता है। वह भारत में ‘आर्थिक उदारीकरण के जनक’ माने जाते हैं।
10 भाषाओं में बात कर सकते थे नरसिम्हा राव
पी.वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में हुआ था। उनका पूरा नाम पामुलापार्ती वेंकट नरसिम्हा राव था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की थी। नरसिम्हा राव आठ बच्चों के पिता थे। पीवी नरसिंह राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं। पेशे से कृषि विशेषज्ञ और वकील रहे राव राजनीति में आए और कुछ महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। वह 10 भाषाओं में बात कर सकते थे और अनुवाद के भी उस्ताद थे।
ऐसा रहा राजनीतिक कैरियर
नरसिम्हा राव 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए। वह भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे। राव 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री और 31 दिसंबर 1984 से 25 सितंबर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने 5 नवंबर 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था। 25 सितंबर 1985 से उन्होंने राजीव गांधी सरकार के मंत्रीमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला।
भारत के नौवें प्रधानमंत्री बनने से पहले नरसिम्हा राव ने तीन भाषाओं में चुनाव प्रचार किया था। उन्होंने तीन सीटों पर जीत दर्ज की आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून और सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून और विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य और चिकित्सा मंत्री और 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। वह 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। नरसिम्हा राव 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष और 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे।
भारत में ‘आर्थिक उदारीकरण के जनक’
पीवी नरसिम्हा राव को राजनीति के अलावा कला, संगीत और साहित्य आदि विभिन्न क्षेत्र में अच्छी समझ रखते थे। नरसिम्हा राव दक्षिण भारत से देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने वाले पहले शख्स थे। जब उन्होंने पहली बार विदेश की यात्रा की तो उनकी उम्र 53 साल थी। पीवी नरसिम्हा राव ने देश की कमान काफी मुश्किल समय में संभाली थी। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चिंताजनक स्तर तक कम हो गया था और देश का सोना तक गिरवी रखना पड़ा था। उन्होंने रिजर्व बैंक के अनुभवी गवर्नर डॉ. मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाकर देश को आर्थिक भंवर से बाहर निकाला।