Dipanita Nath
सदियों से महाराष्ट्र की पुणे की जीवन रेखा मानी जाने वाली मुला-मुथा नदी अब खतरे में है। पुणे के राजीव गांधी पुल के पास नदी के उथले किनारे-किनारे एक टिटिहरी खाने के लिए कीड़ों की तलाश में चलता रहता है। तालाब का बगुला दलदल में भोजन की जासूसी करता रहता है और एक अन्य बगुला अपने जीवन साथी के साथ आता रहता है। उसी समय एक पीली वगुला जैसी पक्षी जिसे खंजन कहते हैं, लंबी घास में चोंच मारती है। एक युवा लड़का मछली पकड़ने वाली नाव पर छलांग लगाता है और धीमे पानी में चला जाता है। इस तरह की गतिविधियां मुला-मुथा नदी के किनारे कई स्थानों पर पूरे दिन चलती रहती हैं।
कई वर्षों से चिंता का कारण रही हैं मुला-मुथा नदियां
इस साल की शुरुआत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने संगम ब्रिज के पास मिलने वाली दोनों नदियों मुला और मुथा को देश की खतरनाक प्रदूषित नदियों में शामिल किया था। मुला-मुथा नदी कई वर्षों से चिंता का कारण रही है क्योंकि यह सीवेज, अतिक्रमण, अज्ञानता और उपेक्षा के कारण बोझिल हो गई है। रिपेरियन ज़ोन में पक्षियों की गतिविधि, झुकती हुई शाखाएं और पेड़ों की उलझी हुई जड़ें और चरवाहों, बकरी पालने वालों और मछुआरों की मौजूदगी इस बात को साबित करती हैं कि कभी शहर की जीवन रेखा के रूप में सम्मानित रहीं पुणे की प्रमुख नदियां अब खतरे में हैं।
पौराणिक राजा गजानक से जुड़ी है नदी की उत्पत्ति
पुणे के इतिहासकार डॉ. पीके घाणेकर (Dr. PK Ghanekar) ने अपनी किताब मुथे कथाचा (Muthe Kathacha) में नदी की उत्पत्ति की पौराणिक कहानी पर विस्तार से प्रकाश डाला है। कहानी पौराणिक राजा गजानक (King Gajanak) से शुरू होती है, जिन्होंने जीवन भर सुखवाद और अन्य शाही गतिविधियों के बाद सह्याद्रि पहाड़ों में तपस्या करने का फैसला किया। उनके ध्यान की तीव्रता ने देवताओं के राजा इंद्र को परेशान कर दिया, जिन्होंने ध्यान भटकाने के लिए दो अप्सराओं को भेजा। क्रोधित गजानक ने दोनों महिलाओं को श्राप दिया और उन्हें मुला और मुथा नदियों में बदल दिया। इन दोनों नदियों को तब मुक्ति मिली जब ये भीमा नदी में मिलीं।

भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान-आधारित लिविंग वाटर्स संग्रहालय द्वारा समर्थित ‘पुण्यचे पानी’, वर्चुअल प्रदर्शनी में नदियों की पौराणिक उत्पत्ति पर एक खंड शामिल है। पुणे स्थित डिज़ाइन स्टूडियो विटामिन डी के अश्विन चिकेरूर (Ashwin Chikerur) और पराग नाटेकर (Parag Natekar) ने लोगों के लिए नदियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए चित्र बनाए हैं। मुथा की कल्पना एक मराठा रानी के रूप में की गई है, जो सोने और बढ़िया कपड़ों से सजी हुई है, क्योंकि वह शहर के बीचोबीच बहती है। डिजाइनरों का कहना है, “उनका शांत रुख दृढ़ संकल्प और उग्रता, जो महान मराठा काल की याद दिलाता है, को बताता है। मुला नदी की कल्पना एक वन युवती के रूप में की गई है, क्योंकि वह पुराने शहर की सीमाओं के साथ-साथ शहर की आकांक्षाओं से थोड़ी दूर पर घूमती है।”

मुला और मुथा सह्याद्रि पर्वत जितने पुराने हैं, जो कथित तौर पर हिमालय और गंगा से भी पुराने हैं। मुथा का स्रोत पश्चिमी घाट के वेग्रे नामक गांव में है, जो जड़ी-बूटियों और पौधों से भरपूर है। नदी का पानी पानशेत और खडकवासला में बांधा गया है।
“नदी का नाम मराठी में ‘मदर मुथा’ के लिए मुथाई शब्द से आया है। यह संभवतः स्थानीय चरवाहा समुदाय से है, जो स्रोत क्षेत्र में रहता है। मानसून शुरू होते ही चट्टानों की दरारों से केकड़ों की टोली निकल आती है। ये केकड़े पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियों के लिए स्थानिक हैं जो 900 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर हैं। वे गर्मियों में सोते रहते हैं, और मानसून के दौरान बाहर आ जाते हैं। ये छोटे केकड़े बंद मुट्ठी की तरह दिखते हैं। मराठी में बंद मुट्ठी को मुठ कहा जाता है।” जीवित नदी लिविंग रिवर फाउंडेशन की निदेशक शैलजा देशपांडे कहती हैं, जो नीतियों को प्रभावित करने और नदियों के बारे में लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए गतिविधियों का संचालन करती है। जीवितनदी में एक नदी मार्ग है जिसे ‘मुथाई’ कहा जाता है।
दोनों नदियां पुणे के लिए पानी के मुख्य स्रोत हैं
मुला नदी का नाम मूल शब्द पर रखा गया है, जो मराठी में ‘जड़’ के लिए प्रयुक्त होता है। ऐसा माना जाता है कि यह सह्याद्रि पर्वत में मूलेश्वर के पास एक प्राचीन पेड़ पर जमीन से उभरा है और मुलशी में बांधा गया है। ये दोनों नदियां पुणे के लिए पानी के मुख्य स्रोत हैं। देशपांडे के अनुसार, मुला सह्याद्रि से पुणे के उत्तर-पश्चिम की ओर उतरती है। इसके मार्ग में पौड, लावले और नंदे जैसे गांव हैं। पुणे शहर में प्रवेश करने से पहले नदी हिंजेवाड़ी, कास्पटे वस्ती, बालेवाड़ी और पिंपरी-चिंचवड़ से होकर बहती है। मुथा का उद्गम पुणे शहर के पश्चिम से होता है।