भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में कीर्तिमान स्थापित करते हुए बुधवार (22 जून) को एक ही मिशन में पीएससलवी-सी34 के माध्यम से 20 उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इन उपग्रहों में भारत का कार्टोसैट-2 सीरीज भी शामिल है। पीएसएलवी ने 20 के 20 उपग्रहों को एक ही कक्षा में स्थापित किया। यह किसी पीएसएलवी द्वारा कक्षा में सबसे ज्यादा उपग्रहों को स्थापित करने का रिकॉर्ड है। 28 अप्रैल 2008 को PSLV-C9 ने अंतरिक्ष में दस सेटेलाइट स्थापित किए थे। वे सभी भी एक ही कक्षा में थे। पीएसएलवी का फुल फॉर्म पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। यह उपग्रहों को लॉन्च करने का एक सिस्टम है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो ने विकसित किया है।
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पीएसएलवी के जरिए इस कामयाब मिशन के लिए दो बेहद जटिल एक्सपेरीमेंट्स को अंजाम दिया गया। तिरुअनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर के. सिवन ने बताया कि पीएसएलवी के जरिए चौथे चरण में सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के 50 मिनट बाद लॉन्च व्हीकल के इंजन को 5 सेकंड के लिए दोबारा शुरू किया गया। इसके बाद इंजन को 50 मिनट के लिए बंद किया गया। इसके बाद, दोबारा से उसे पांच सेकंड के लिए शुरू किया गया।
इसलिए किया गया एक्सपेरिमेंट
इसरो इस जटिल प्रक्रिया में महारत हासिल करना चाहता है ताकि एक ही रॉकेट का इस्तेमाल करके सैटेलाइट्स को अलग अलग कक्षा में स्थापित किया जा सके। आने वाले वक्त में पीएसएलवी इसी तरीके से इसरो के मौसम बताने वाले सैटेलाइट SCATSAT-1 और विदेशी सैटेलाइट को अलग अलग कक्षाओं में स्थापित करेगा।
16 दिसंबर 2015 को PSLV-C29 ने लॉन्च के बाद चौथे चरण में सिंगापुर के छह सेटेलाइट्स को एक ही कक्षा में स्थापित किया गया। चौथे चरण के दौरान ही इसरो ने इंजन को चार सेकंड के लिए दोबारा से शुरू किया। उस वक्त डॉक्टर सिवन ने इस ‘छोटा एक्सपेरीमेंट’ करार दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि एक रॉकेट के जरिए अलग अलग कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित करने की जटिल प्रक्रिया में महारत हासिल करने के लिए ऐसा किया गया।
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22 जून को PSLV-C34 लॉन्च के आठ मिनट बाद चौथे चरण का इंजन जीवंत हो उठा। इसके बाद यह पूरे स्टेज को 514 किमी की ऊंचाई पर ले गया। रॉकेट लॉन्च के 16 मिनट 30 सेकंड बाद चौथे चरण का यह इंजन बंद हो गया। इसके अगले दस मिनट तक रॉकेट के चौथे चरण से एक के बाद एक 20 उपग्रह एक ही कक्षा में स्थापित किए गए। डॉ सिवन के मुताबिक, ‘कक्षा में हर उपग्रह को छोड़ने के बाद जरूरत पड़ने पर लॉन्च व्हीकल की दिशा में बदलाव किया गया ताकि अगला उपग्रह अलग गति से कक्षा में छोड़ा जाए और सेटेलाइट्स की बीच की दूरी बढ़ती जाए। ऐसा इसलिए किया गया ताकि उपग्रह आपस में टकराए नहीं। इसके बाद, इंजन को 3000 सेकंड्स के लिए बंद किया गया। इसके बाद, इसे 5 सेकंड्स के लिए दोबारा शुरू किया गया।’