Madras High Court: मद्रास हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से जेल अधिकारियों को उनकी शक्तियों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिए कहा है। पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह जेलों में लगातार औचक निरीक्षण करे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जेल प्राधिकारी कैदियों को उनके आवास पर घरेलू कामों में न लगाएं।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एस एम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवगनम की पीठ ने राज्य पुलिस को निर्देश दिया कि वह आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी पर हमला करने और उन्हें परेशान करने के आरोप में वेल्लोर केंद्रीय कारागार के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज मामले की जांच आगे बढ़ाए। पीठ ने ट्रायल कोर्ट को भी मामले की सुनवाई तेजी से करने का निर्देश दिया।

मद्रास हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘जेल अधिकारियों को यह सख्त संदेश देना जरूरी है कि उन्हें अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। जेल के अंदर दोषी कैदी असुविधाजनक स्थिति में हैं। इसलिए, जेल अधिकारियों द्वारा किसी भी तरह के शोषण को सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है, लेकिन गंभीर कार्रवाई की अत्यधिक आवश्यकता है…जब दोषी कैदियों को जेल अधिकारियों के आवासों में आवासीय कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है और अधीनस्थ जेल अधिकारियों द्वारा उनकी निगरानी की जाती है, तो दोनों ही कार्य अपराध और अवैध हैं, और ऐसे जेल अधिकारियों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई उचित और आवश्यक है, जो कैदियों के साथ-साथ वर्दीधारी कर्मियों को भी काम पर रखते हैं।

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कोर्ट ने राज्य सरकार की यह दलील भी दर्ज की कि आरोपी अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है तथा निलंबित उप महानिरीक्षक (डीआईजी) आर राजलक्ष्मी सहित तीन आरोपी अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

कोर्ट ने एस कलावती नामक महिला द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए यह निर्देश जारी किए। इस महिला ने आरोप लगाया था कि उनके बेटे टीआर शिवकुमार, जो वेल्लोर सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उन पर जेल अधिकारियों ने हमला किया और उसे प्रताड़ित किया तथा उसे अवैध रूप से एकांत कारावास में रखा। उन्होंने आगे कहा कि जेल अधिकारी उन्हें उनके बेटे से मिलने नहीं दे रहे हैं तथा राज्य को दिए गए उनके अनुरोधों का कोई जवाब नहीं मिला है।

कलावती के वकील ने कोर्ट को आगे बताया कि शिवकुमार ने अपने वकीलों से कहा था कि जेल अधिकारियों ने अवैध रूप से आठ दोषियों को अपने घरों में घरेलू काम के लिए रखा है। और इस साल मई में डीआईजी और अन्य लोगों ने उसके खिलाफ चोरी का झूठा आरोप लगाकर उसे बुरी तरह पीटा था।

9 अगस्त को कोर्ट ने वेल्लोर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) को कलावती की याचिका में लगाए गए आरोपों की जांच करने और शिवकुमार से मिलकर उनका बयान दर्ज करने का निर्देश दिया था। इसके बाद सीजेएम ने कोर् के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की जिसमें पुष्टि की गई कि शिवकुमार और सात अन्य को राजलक्ष्मी ने अपने आवास पर घरेलू काम जैसे खाना पकाने, सफाई, बागवानी, बकरी चराने” आदि के लिए नियुक्त किया था, जो कि जेल मैनुअल नियम 1983 के नियम 447 के खिलाफ था।

मई में राजलक्ष्मी ने आरोप लगाया था कि शिवकुमार ने उनके घर से 4.5 लाख रुपए चुराए थे और अपने कर्मचारियों से उन पर शारीरिक हमला करवाया था। हालांकि, उन्होंने चोरी के बारे में कभी पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई। सीजेएम की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि शिवकुमार को 95 दिनों तक एकांत कारावास में भी रखा गया था।

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5 सितंबर को हाईकोर्ट ने राज्य के जेल और सुधार सेवाओं के महानिदेशक को दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया था। साथ ही राज्य को शिवकुमार को सलेम सेंट्रल जेल में स्थानांतरित करने का भी निर्देश दिया था। 24 अक्टूबर को राज्य सरकार ने राजलक्ष्मी, वेल्लोर केन्द्रीय कारागार के अतिरिक्त अधीक्षक ए अब्दुल रहमान और वेल्लोर केन्द्रीय कारागार के जेलर अरुल कुमार को निलंबित कर दिया था। अपने नए आदेश में न्यायालय ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया और कहा कि कैदियों को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता या उनके साथ कानून का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।

हाई कोर्ट ने कहा कि यह समझना होगा कि कैदी न तो गुलाम हैं और न ही उन्हें उनके अपराधों की सज़ा देने के लिए इस तरह के अमानवीय तरीकों से प्रताड़ित किया जाना चाहिए। हमारी न्याय व्यवस्था में, किसी भी साथी इंसान को किसी भी तरह की यातना देने से बचना चाहिए। मानव जीवन का अपना मूल्य है। दोषियों को केवल कानून के अनुसार ही सज़ा दी जानी चाहिए। इसके बजाय उन्हें प्रताड़ित करने से अपराध कम नहीं होंगे बल्कि अपराध बढ़ेंगे। कैदियों के साथ क्रूरता करने से उनके द्वारा किए जाने वाले अपराधों को बढ़ावा मिलेगा।