द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्‍ट्रपति बन गई हैं। तीसरे राउंड के बाद द्रौपदी मुर्मू ने 50 फीसदी के आंकड़े को पार कर लिया है। हालांकि अभी एक और राउंड की वोटों की गिनती होनी बाकी है। इसी बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को दावा किया कि अगर वह चाहतीं तो वह विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के समर्थन में और अधिक वोट जुटा सकती थीं। राष्‍ट्रपति पद के चुनाव में द्रौपदी ने विपक्ष के उम्‍मीदवार यशवंत सिन्‍हा को पराजित किया।

द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हुए पीएम ने अपने संदेश में लिखा, “द्रौपदी मुर्मू जी एक असाधारण विधायक और मंत्री रही हैं। झारखंड के राज्‍यपाल के तौर पर उनका बेहतरीन कार्यकाल रहा है। मुझे यकीन है कि वे उत्‍कृष्‍ट राष्‍ट्रपति साबित होंगी जो आगे बढ़कर नेतृत्‍व करेंगी और भारत की विकास यात्रा को मजबूत करेंगी। पीएम नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट के वरिष्‍ठ सदस्‍य और बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा ने द्रौपदी मुर्मू के आवास पर पहुंचकर उनको बधाई दी।

यशवंत सिन्हा को इन तीन राज्यों में नहीं मिला एक भी वोट-
द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव में उतरे यशवंत सिन्हा को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम में एक भी वोट नहीं मिला है, जबकि द्रौपदी मुर्मू को देश के सभी राज्यों से मत प्राप्त हुआ है।

बता दें यह ममता बनर्जी थीं, जिन्होंने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार तय करने पर विपक्ष की बातचीत का नेतृत्व किया था। विपक्ष ने पहले एनसीपी के शरद पवार के नाम पर फैसला किया था, लेकिन उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। बाद में विपक्षी दलों ने यशवंत सिन्हा का नाम लिया, जो टीएमसी के उपाध्यक्ष थे।

कुछ दिनों बाद एनडीए ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया। जिसके बाद कई विपक्षी दल सोचने पर मजबूर हो गए, क्योंकि वे अपने राज्यों में आदिवासी आबादी को देखते हुए उनका विरोध करने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।
विपक्ष से अपना समर्थन देने वालों में सबसे पहले ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक और आंध्र के सीएम जगन मोहन रेड्डी थे। मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले से आती हैं।

जैसे-जैसे राष्ट्रपति चुनाव का अभियान आगे बढ़ा। ममता बनर्जी ने भी महसूस किया कि मुर्मू दौड़ में आगे हैं और सिन्हा हारने वाली लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर एनडीए ने घोषणा करने से पहले उनका नाम साझा किया होता तो मुर्मू आम सहमति से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हो सकती थीं। उन्होंने कहा कि मुर्मू के पास राष्ट्रपति पद की दौड़ जीतने का बेहतर मौका है।

कई विश्लेषकों का मानना है कि ममता भी द्रौपदी मुर्मू का विरोध नहीं कर सकीं, क्योंकि पश्चिम बंगाल में काफी आदिवासी आबादी हैं और उन्होंने हाल के विधानसभा चुनावों में उनके अधिकांश वोटों पर कब्जा कर लिया था।