देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ पिछले तीन हफ्तों में कई बार बोल चुके राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को फिर देश के बहुलतावादी चरित्र के संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत अपनी समावेशी और सहिष्णुता की शक्ति के कारण फला-फूला है। न्यायपालिका के संदर्भ में राष्ट्रपति ने कहा कि एक स्वायत्त न्यायपालिका लोकतंत्र की प्रमुख विशेषता है। कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
राष्ट्रपति यहां विज्ञान भवन में दिल्ली हाई कोर्ट के स्वर्ण जयंती समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा- हमारा देश समावेशी शाक्ति और सहिष्णुता के कारण फला-फूला है। हमारे बहुलतावादी चरित्र ने समय की कई परीक्षाएं पास की हैं। हमारी पुरातन सभ्यता ने सदियों से हमारी विविधता को समाहित किया हुआ है। उन्होंने कहा- बहुलतावाद हमारी सामूहिक शक्ति है जिसे किसी भी कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए। हमारे संविधान के विभिन्न प्रावधानों में इसकी झलक मिलती है।
इस कार्यक्रम को भारत के प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू, दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी, दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी संबोधित किया। दादरी और उसके बाद हुई वैसी ही घटनाओं की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति ने सवाल किया-असहमति की स्वीकार्यता और उस पर सहिष्णुता देश में इतनी कम हो गई है। उन्होंने 19 अक्तूबर को पश्चिम बंगाल के सूरी कस्बे में अपने गृह नगर में यह सवाल किया था।
इसके बाद उन्होंने लोगों से सहिष्णु बनने और असहमति का सम्मान करते हुए विविधताओं को स्वीकार करने की अपील की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्रपति की टिप्पणियों का समर्थन किया और लोगों से नेताओं व असामाजिक तत्त्वों के खड़े किए जा रहे हंगामों को नजरंदाज करने को कहा।
मुखर्जी ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को लेकर शीर्ष न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के मद्देनजर कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली पर विचार किए बगैर सर्वश्रेष्ठ को चुनने की प्रक्रिया अवश्य ही सुस्थापित और पारदर्शी सिद्धांतों पर संचालित होनी चाहिए और कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। उन्होंने न्यायपालिका से आत्मावलोकन और आत्म सुधार के जरिए खुद में नयापन लाने को कहा।
राष्ट्रपति का बयान इसलिए महत्त्व रखता है क्योंकि उन्होंने कहा है कि न्यायपालिका ‘स्वायत्त’ है और लोकतंत्र की एक प्रमुख विशेषता है। उन्होंने कहा-नियुक्ति प्रक्रिया को अवश्य ही शुचिता के उच्चतम मानदंड की पुष्टि करनी चाहिए। चाहे हम नियुक्ति की किसी भी प्रक्रिया का पालन क्यों न करें, यह अवश्य ही सर्वश्रेष्ठ को चुनने की सुस्थापित और पारदर्शी सिद्धांतों पर संचालित होनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि प्रक्रिया में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता। एक स्वायत्त न्यायपालिका लोकतंत्र की एक प्रमुख विशेषता है। लोकतंत्र का एक अहम स्तंभ होते हुए इसे अवश्य ही आत्मावलोकन और स्वयं में सुधार के जरिए खुद में नयापन लाना चाहिए, जैसा और जब कभी जरूरी हो। मुखर्जी ने यह भी कहा कि त्वरित न्याय निष्पादन प्रणाली की जरूरत है जो सबकी पहुंच में और वहनीय हो।
राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय में देर होना, उसके नहीं मिलने के समान ही है। शीर्ष न्यायालय में 60,000 से अधिक मामले लंबित हैं, उच्च न्यायालयों में 40 लाख से अधिक मामले और जिला व अधीनस्थ अदालतों में 2.6 करोड़ मामले लंबित हैं। बहुआयामी कोशिश के जरिए इसका हल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अदालतों के पास अवश्य ही पर्याप्त संसाधन होने चाहिए ताकि वे अपने बुनियादी ढांचे को बढ़ावा दें। न्यायिक पदों की रिक्तियां अवश्य ही वरीयता के जरिए भरी जानी चाहिए। गुणवत्ता को बलि चढ़ाने के लिए चयन प्रक्रिया में शीघ्रता को आधार नहीं बनाया जाना चाहिए।
जनहित याचिका के बारे में उन्होंने कहा कि अधिकारों के समर्थन में अदालतों ने एक पोस्टकार्ड या अखबार के आलेख को न्यायिक कार्रवाई के लिए पर्याप्त सामग्री पाया है। इसने आम आदमी के करीब न्याय को लाने में मदद की है। उन्होंने न्यायिक सक्रियता का भी जिक्र किया और कहा कि इसकी परिणति शक्तियों के बंटवारे को कमजोर करने में नहीं होनी चाहिए। हमारे लोकतंत्र के प्रत्येक अंग को अपने दायरे में काम करना चाहिए और दूसरे के लिए तय काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। वहीं विधायिका और कार्यपालिका के कार्य न्यायिक समीक्षा के विषय हैं।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के शक्तियों के इस्तेमाल में हालांकि नियंत्रण सिर्फ स्व निर्धारित अनुशासन और आत्मसंयम से संभव है। तीनों अंगों में शक्तियों का संतुलन हमारे संविधान में निहित है। संविधान सर्वोच्च है।
बहुलतावाद और सर्वश्रेष्ठ को चुनने की प्रणाली:
* हमारा देश समावेशी शक्ति और सहिष्णुता के कारण फला-फूला है। हमारे बहुलतावादी चरित्र ने समय की कई परीक्षाएं पास की हैं। हमारी पुरातन सभ्यता ने सदियों से हमारी विविधता को समाहित किया हुआ है। बहुलतावाद हमारी सामूहिक शक्ति है जिसे किसी भी कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए। हमारे संविधान के विभिन्न प्रावधानों में इसकी झलक मिलती है।
* न्यायपालिका ‘स्वायत्त’ है और लोकतंत्र की एक प्रमुख विशेषता है। नियुक्ति प्रक्रिया को अवश्य ही शुचिता के उच्चतम मानदंड की पुष्टि करनी चाहिए। चाहे हम नियुक्ति की किसी भी प्रक्रिया का पालन क्यों न करें, यह अवश्य ही सर्वश्रेष्ठ को चुनने की सुस्थापित और पारदर्शी सिद्धांतों पर संचालित होनी चाहिए। प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति
खतरे में विरासत:
सुनियोजित साजिश के तहत घृणा, हिंसा और तुच्छ मानसिकता फैलाई जा रही है। हम इस तरह की शैतानी साजिश को सफल नहीं होने देंगे। यह देश के आधार को हिला देगी। हम यह लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। आज हमारी विरासत खतरे में है। हम विविधता में एकता के कारण दुनिया भर में पहचाने जाते हैं। (कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता राजगोपाल पीवी को राष्ट्रीय एकता के लिए 29वां इंदिरा गांधी पुरस्कार देने के समारोह में कहा)
अल्पसंख्यकों के मन में डर:
मैं नेता नहीं हूं। मेरी राजनीति में दिलचस्पी नहीं है, इसलिए मैं उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं लेकिन आज हकीकत है कि भारत में अल्पसंख्यकों के दिमाग में काफी डर है। इस सरकार या किसी भी सरकार, केंद्र स्तर और राज्य स्तर की सरकार, की पहली प्राथमिकता प्रत्येक भारतीय के मन में विश्वास, ऊर्जा, उत्साह, भरोसा वापस लाने की होनी चाहिए कि यह देश हमारा है। -एनआर नारायण मूर्ति, इन्फोसिस के संस्थापक
आर्थिक मजबूती और सहिष्णुता:
विचारों के माहौल को बेहतर करने के लिए सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान जरूरी है। किसी समूह को शारीरिक नुकसान पहुंचाने या अभद्र भाषा के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। भारत में चर्चा परंपरा और जिज्ञासा की सहज भावना आर्थिक प्रगति के लिए अहम है। (आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने दिल्ली आइआइटी के दीक्षांत समारोह में कहा )
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