प्रयागराज महाकुंभ 2025 मेले का सबसे बड़ा आकर्षण शाही स्नान है। मेले में शाही स्नान को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं। विश्व प्रसिद्ध इस आध्यात्मिक समागम में दुनियाभर के करोड़ों श्रद्धालु, संत-महात्मा, अखाड़े और नागा साधु पहुंचेंगे। जितना इसका आध्यात्मिक महत्व है, उतना ही इसका ऐतिहासिक महत्व है। शाही स्नान न केवल धार्मिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह भारतीय परंपरा, आध्यात्म और भक्ति का जीवंत उदाहरण है। लाखों श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं और इसे अपने जीवन का महत्वपूर्ण क्षण मानते हैं।

प्रयागराज कुंभ मेले का शाही स्नान भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह आयोजन दुनिया को भारतीय आध्यात्म और भक्ति की शक्ति का अनुभव कराता है। पेशवाई और नागा साधुओं की उपस्थिति इसे और विशेष बना देती है। इसके कारण यह महान पर्व अद्वितीय बन जाता है। इस बार महाकुंभ मेले का आरंभ 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के साथ होगा और समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन होगा।

नागा साधुओं का संगम स्नान और परंपरा

शाही स्नान कुंभ मेले में प्रमुख स्नान पर्वों पर आयोजित होता है। इसमें अखाड़ों के साधु-संत, विशेष रूप से नागा साधु संगम में स्नान करते हैं। इसे धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक अखाड़ा अपने अनुयायियों और नागा साधुओं के साथ भव्य जुलूस के रूप में संगम तट पर पहुंचता है। इस स्नान को ‘शाही’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें संतों और नागा साधुओं की शाही मौजूदगी होती है। वे पूरी शाही शान-शौकत के साथ नाचते-गाते और अपने साथ गदा, तलवार और अन्य शस्त्रों को लेकर भजन-कीर्तन करते हुए रथों, हाथी और पैदल संगम तट पर पहुंचते हैं।

शाही स्नान करने का नियम और तिथियां

हिंदू सनातन मान्यता के अनुसार कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक परंपराओं और शास्त्रों के अनुसार शाही स्नान साधु-संतों और नागा साधुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इसे “देवत्व” प्राप्ति और मोक्ष का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए यह कुंभ की परंपरा का एक महत्वपूर्ण भाग है। शाही स्नान केवल तीन पर्वों पर होता है। पहला शाही स्नान मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को होगा। दूसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या 29 जनवरी 2025 को होगा तथा तीसरा और अंतिम शाही स्नान बसंत पंचमी 3 फरवरी 2025 को होगा।

संगम तट पर जिस स्थान पर कुंभ मेला के दौरान अखाड़ों को बसाया जाता है और साधु-संत रहते हैं, वहां पर पहुंचने के लिए पेशवाई निकाली जाती है। यह साधू-संतों का मेला में प्रवेश के समय होता है। मेले में प्रवेश के लिए अखाड़ों और साधु-संतों का भव्य जुलूस निकला जाता है। इसे अखाड़ों का आधिकारिक प्रवेश कहा जा सकता है। पेशवाई में अखाड़े अपने झंडे, चिह्न और पताकाओं के साथ भव्य तरीके से शहर से संगम पहुंचते हैं। इसमें घोड़े, हाथी, बैंड और रथ का इस्तेमाल किया जाता है, जो इस धार्मिक आयोजन को शाही भव्यता प्रदान करते हैं।

नागा साधु अखाड़ों का एक प्रमुख वर्ग है, जो कुंभ मेले के शाही स्नान में विशेष भूमिका निभाते हैं। ये साधु नग्न रहते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं। नागा साधु अपनी कठिन तपस्या और संयम के लिए जाने जाते हैं। उनकी मौजूदगी शाही स्नान को और भी प्रभावशाली बना देती है। नागा साधुओं को “महायोद्धा साधु” भी कहा जाता है, क्योंकि प्राचीन काल में वे धर्म और समाज की रक्षा के लिए सेना के रूप में कार्य करते थे।

शाही स्नान की प्रक्रिया विशिष्ट नियमों के तहत की जाती है। स्नान की तिथियां पंचांग के अनुसार निर्धारित की जाती हैं। हर अखाड़ा अपनी तय बारी के अनुसार संगम तट पर स्नान करता है। सबसे पहले नागा साधु और प्रमुख संत स्नान करते हैं, जिसे ‘प्रथम स्नान अधिकार’ कहा जाता है। इसके बाद अन्य अखाड़े और श्रद्धालु स्नान करते हैं।