Prashant Bhushan, Supreme Court Case: सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक ट्वीट के लिये क्षमा याचना से इंकार करने संबंधी अपने बगावती बयान पर पुनर्विचार करने और बिना शर्त माफी मांगने के लिये बृहस्पतिवार को 24 अगस्त तक का समय दिया। न्यायालय ने अवमानना के लिये दोषी ठहराये गये भूषण की सजा के मामले पर दूसरी पीठ द्वारा सुनवाई का उनका अनुरोध ठुकराया दिया है। बृहस्पतिवार को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा अदालत की अवमानना केस में सजा पर बहस हुई। हालांकि, प्रशांत ने कोर्ट में ही कहा कि मुझे समय देना कोर्ट के समय की बर्बादी होगी, क्योंकि यह मुश्किल है कि मैं अपने बयान को बदल लूं। इस बीच अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल भी सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण को सजा न देने की अपील की।
प्रशांत भूषण ने सुनवाई के दौरान कहा कि उन्हें अवमानना मामले में कोर्ट की तरफ से खुद को दोषी ठहराए जाने पर चोट पहुंची है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में खुली आलोचना संवैधानिक अनुशासन को स्थापित करने के लिए है। मेरे ट्वीट सिर्फ नागरिक के तौर पर अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी को निभाने की छोटी कोशिश थे। प्रशांत भूषण ने अपने बयानों को लेकर कोर्ट से माफी मांगने से इनकार कर दिया।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो अपमानजनक ट्वीट को लेकर न्यायालय की अवमानना के लिये 14 अगस्त को दोषी ठहराया था। न्यायालय की अवमानना के इस मामले में अवमाननाकर्ता को अधिकतम छह महीने की साधारण कैद या दो हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।


न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि अगर भूषण बिना शर्त माफीनामा दाखिल करते हैं तो वह 25 अगस्त को इसपर सुनवाई करेगी। भूषण को ‘लक्ष्मण रेखा’ का ध्यान दिलाते हुये शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि इसे क्यों लांघा गया । साथ ही न्यायालय ने टिप्पणी की कि अवमानना के मामले में सजा पर बहस की सुनवाई के लिये इसे किसी दूसरी पीठ को सौंपने की बात करके ‘अनुचित’ कृत्य किया गया है।
पूर्व जज काटजू ने ट्वीट में अमेरिका में रहने वाले अपने एक अनिवासी भारतीय मित्र इरफ़ान के हवाले से लिखा है कि इस मामले से विदेशों में भारत की बुरी छवि जा रही है। वहां के निवासी भारत संस्थाओं को लोकतान्त्रिक नहीं मान रहे हैं। वे आगे लिखते हैं कि इरफान की पड़ोसी ने उनसे कहा, “भारत में क्या चल रहा है। एक वकील को 2 ट्वीट्स के आधार पर न्यायलय की अवमानना का दोषी ठहरा दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण की इस विनती को खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही में सजा तय करने संबंधी दलीलों की सुनवाई शीर्ष अदालत की दूसरी पीठ द्वारा की जाए। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने भूषण को विश्वास दिलाया कि जब तक उन्हें अवमानना मामले में दोषी करार देने के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर निर्णय नहीं आ जाता, सजा संबंधी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
भूषण ने पीठ से कहा कि उन्होंने न्यायालय के 14 अगस्त के फैसले का अध्ययन किया और उन्हें पीड़ा है कि उन्हें न्यायालय की अवमानना करने का दोषी ठहराया गया है जिसके गौरव को बनाये रखने के लिये उन्होंने तीन दशकों से भी ज्यादा समय से प्रयास किया -एक दरबारी या वाह-वाह करने वाले की तरह नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत और पेशेगत कीमत पर एक विनम्र रक्षक की तरह। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे तकलीफ है, इसलिए नहीं कि मुझे दंडित किया जा सकता है बल्कि इसलिए कि मुझे बहुत ही ज्यादा गलत समझा गया।’’
भूषण ने खुद न्यायालय को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत ही गलत समझा गया है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं हतोत्साहित और निराश हूं कि न्यायालय ने अवमानना याचिका की प्रति मुझे उपलब्ध कराना जरूरी नहीं समझा। मेरे ट्वीट मेरे विचार दर्शाते हैं।’’ भूषण ने कहा कि लोकतंत्र में संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिये खुलकर आलोचना करना जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे ट्वीट उस कार्य के निर्वहन के लिये एक छोटा प्रयास है, जिन्हें मैं अपना सर्वोच्च कर्तव्य मानता हूं।’’
शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट के लिये आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। न्यायालय ने कहा था कि इन ट्वीट को जनहित में न्यायपालिका की कार्यशैली की स्वस्थ आलोचना के लिये किया गया नहीं कहा जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि वह बेहद नरमी बरत सकता है, अगर गलती करने का अहसास हो। पीठ ने इसके साथ ही मामले को 24 अगस्त के लिये सूचीबद्ध कर दिया है। इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने भूषण के वकील के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया कि अवमानना के लिये दोषी ठहराये गये इस मामले में सजा के सवाल पर दूसरी पीठ सुनवाई करे।
उच्चतम न्यायालय ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक ट्वीट के लिये आपराधिक अवमानना के दोषी ठहराये गये अधिवक्ता प्रशांत भूषण को इन ट्वीट के लिये क्षमा याचना से इंकार करने वाले ‘बगावती बयान’ पर पुनर्विचार के लिये बृहस्पतिवार को दो दिन का समय प्रदान किया। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय खंडपीठ से भूषण ने कहा कि वह अपने वकीलों से सलाह मशविरा करेंगे और न्यायालय के इस सुझाव पर विचार करेंगे।
भूषण ने अपने बयान में कहा, ‘‘मैंने किसी आवेश में असावधान तरीके से ये ट्वीट नहीं किये। मेरे लिये उन ट्वीट के लिये क्षमा याचना करना धूर्तता और अपमानजनक होगा, जो मेरे वास्तविक विचारों को अभिव्यक्त करता था और करता रहेगा। इसलिए मैं विनम्रता के साथ इस बात की संक्षिप्त व्याख्या कर सकता हूं, जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने मुकदमे की सुनवाई में कही थी, ‘‘मैं दया के लिए नहीं कहूंगा, मैं उदारता दिखाने की भी अपील नहीं करूंगा।’’
हालांकि, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि कोर्ट को उन्हें अपने बयानों पर विचार के लिए कुछ समय देना चाहिए। इस पर जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम मामले में तुरंत फैसला नहीं लेंगे। हम इस पर विचार करने के लिए प्रशांत भूषण को दो-तीन दिन का समय देंगे।
इससे पहले प्रशांत भूषण की तरफ से पेश हुए वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि इस मामले में हमारे पास समीक्षा याचिका दायर करने के लिए 30 दिन का समय है। उन्होंने कहा कि हम क्यूरेटिव पिटीशन डालने पर भी विचार कर रहे हैं। उन्होंने इस मामले में सजा की सुनवाई दूसरी बेंच को देने की अपील करते हुए कहा कि यह जरूरी नहीं कि यही बेंच उनके मुवक्किल को सजा सुनाए। दवे ने कहा कि अगर लॉर्डशिप इस सुनवाई को समीक्षा तक टाल देंगे, तो कोई आसमान नहीं गिर जाएगा। हालांकि, बेंच में शामिल जज जस्टिस गवई ने केस को दूसरी बेंच को ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया। बता दें कि जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली बेंच ने प्रशांत को पिछले हफ्ते ही अवमानना केस में दोषी ठहराया था।
भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए नेता उदित राज ने प्रशांत भूषण मामले में बयान दिया है। उन्होंने कहा, "मुझे गर्व है कि प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में माफ़ी नहीं मांगी। जज भगवान नहीं हैं। सच बोलना अवमानना नहीं है,जो सुप्रीम कोर्ट ने किया।हमने साथ खड़ा होने का वादा किया था। यह केवल शब्दों में नहीं था। परिसंघ ने SC में प्रशांत भूषण के पक्ष में प्रदर्शन करके साबित भी कर दिया।"
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की सजा पर जब कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने प्रशांत भूषण से कहा कि हर चीज की एक लक्ष्मण रेखा होती है, जो कि परंपराओं या तय नियमों पर आधारित है। उसे कभी नहीं तोड़ा जाना चाहिए। जस्टिस मिश्रा के नेतृत्व वाली बेंच ने प्रशांत भूषण को चेतावनी दी कि अगर आप अपने बयानों को संतुलित नहीं करते हैं, तो इससे आप संस्थान को तबाह कर रहे हैं और कोर्ट किसी अवमानना के लिए इतनी आसानी से सजा नहीं देता। पढ़ें पूरी खबर...
प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना केस की सुनवाई के दौरान अपने बयान के बारे में सोचने के लिए दो दिन का अतिरिक्त समय दिया है। हालांकि, जब कोर्ट में इस पर बात चल रही थी, तभी प्रशांत भूषण ने कहा था कि अगर लॉर्डशिप मुझे समय देना चाहते हैं, तो इसका स्वागत है। पर मुझे नहीं लगता कि इससे कुछ भी होगा। यह सिर्फ कोर्ट के समय की बर्बादी होगी। यह काफी मुश्किल है कि मैं अपने बयान को बदलूंगा।
वकील राजीव धवन ने जब कोर्ट से प्रशांत भूषण के रिकॉर्ड के बारे में कहा तो जस्टिस मिश्रा ने कहा कि हमें उनके रिकॉर्ड से पता चलता है कि उन्होंने जो भी केस लिए वो सब प्रभावित करने वाले हैं। पर आपने काफी कुछ अच्छा किया है, इसका यह मतलब यह नहीं कि कुछ गलत को इससे संतुलित किया जा सकता है। जस्टिस गवई ने कहा कि बार और बेंच के बीच हमेशा सम्मान बना रहना चाहिए।
इससे पहले पूर्व जज कुरियन जोसेफ ने कहा है कि प्रशात भूषण के मामले को कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए। उन्होंने इस मामले में एक इंट्रा-कोर्ट अपील की मांग की। जस्टिस जोसेफ ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के मुताबिक, संविधान की व्याख्या से जुड़े किसी केस में फैसला करने के लिए कम से कम 5 जजों की बेंच होनी चाहिए। मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के जिन दो मामलों में संज्ञान लिया है उनमें संविधान की व्याख्या और लोगों के मौलिक अधिकारों पर इसके गंभीर प्रभावों का ध्यान रखते हुए इनकी सुनवाई संविधान पीठ द्वारा की जानी चाहिए।
प्रशांत भूषण ने महात्मा गांधी के बयान को याद करते हुए कहा, "मैं दया दिखाने के लिए नहीं कह रहा। मैं सिर्फ दरियादिली दिखाने की अपील कर रहा हूं। अगर कोर्ट मुझे कोई सजा देना चाहता है, तो मैं तैयार हूं। लेकिन मेरी तरफ से इस मामले में किसी भी तरह की माफी मांगना अवमानना जैसा होगा।
मुझे कोर्ट की तरफ से खुद को दोषी ठहराए जाने पर चोट पहुंची है। दुख हुआ कि मुझे पूरी तरह से गलत समझा गया। मुझे झटका लगा है कि कोर्ट ने मुझे वो शिकायत तक नहीं बताई, जिस पर अवमानना माना गया। मुझे दुख है कि कोर्ट ने मेरी प्रतिक्रिया के तौर पर दाखिल एफिडेविट पर भी विचार नहीं किया। मुझे लगता है कि लोकतंत्र में खुली आलोचना संवैधानिक अनुशासन को स्थापित करने के लिए है। संवैधानिक अनुशासन की रक्षा किसी के निजी या पेशेवर हितों में नहीं होने चाहिए। मेरे ट्वीट सिर्फ नागरिक के तौर पर अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी को निभाने की छोटी कोशिश थे।
वकील प्रशांत भूषण की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए एडवोकेट जस्टिस दवे ने जब बेंच को बताया कि उनके पास समीक्षा याचिका दायर करने के लिए 30 दिन का समय है और क्यूरेटिव पिटीशन जैसे विकल्प भी हैं, तो इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अगर हम कोई सजा देते हैं, तो हम आपको आश्वासन देते हैं कि जब तक समीक्षा नहीं हो जाती, तब तक वह सजा लागू नहीं होगी। उन्होंने कहा कि आप हमारे प्रति ईमानदार रहें या नहीं लेकिन हम आपके प्रति ईमानदार हैं।
प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले को लेकर अलग-अलग राजनीतिक दलों के 21 नेताओं ने प्रशांत भूषण के प्रति समर्थन जताया है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव, नेशनल कॉन्फ़्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, कांग्रेस के शशि थरूर, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, सीपीआई नेता डी राजा सहित जनता दल यूनाइटेड, समाजवादी पार्टी आदि दलों के कई नेता शामिल हैं। वहीं, बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) ने न्यायालय की अवमानना के लिए दोषी ठहराये गये अधिवक्ता प्रशांत भूषण का समर्थन करते हुए मंगलवार को कहा कि ऐसे समय में जब नागरिक बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं तो आलोचनाओं से नाराज होने की जगह उनकी अनुमति देने से उच्चतम न्यायालय का कद बढ़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट में अवमानना के दोषी पाए गए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने गुरुवार को अपनी सजा पर बहस से पहले देश की मीडिया पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया। इसमें उन्होंने एक कॉमिक स्ट्रिप को साझा करते हुए देश में बढ़ती बेरोजगारी और टीवी पर चल रही सुशांत सिंह राजपूत केस की बहस को लेकर निशाना साधा। दरअसल, एक दिन पहले ही रिपोर्ट में सामने आया था कि अप्रैल से अब तक 1.8 करोड़ वेतनभोगी कर्मी नौकरियां गंवा चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से वकील प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी ठहराए जाने के खिलाफ वकीलों के कई समूह उतर आए हैं। चेन्नई के वकीलों के एक समूह ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने एडवोकेट प्रशांत भूषण को को अवमानना का दोषी ठहराए जाने के तरीके पर चिंता प्रकट की है। फैसले की आलोचना करते हुए पत्र में कहा गया है, "वकीलों के पास, हितधारक होने के कारण और न्याय वितरण प्रणाली का अभिन्न अंग होने के कारण, अदालतों के कामकाज की जांच करने का अद्वितीय विशेषाधिकार और कर्तव्य हैं और वे आदलतों के कामकाज की जांच करने के न्याय व्यवस्था की आत्मा के प्रहरी के रूप में कार्य करते हैं।"
प्रशांत भूषण को जस्टिस अरुण मिश्र की अगुआई वाली 3 जजों की बेंच ने 14 अगस्त को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। उन्होंने ज्युडिश्यरी पर 2 अपमानजनक ट्वीट किए थे। अब इस मामले में 20 अगस्त को सजा पर बहस होनी है। उन्हें 6 महीने की कैद या 2000 रुपए जुर्माना या दोनों सजा सुनाई जा सकती है।
प्रशांत भूषण ने अदालत की अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। उन्होंने सजा पर सुनवाई को टालने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि वह उनके दोषी ठहराए जाने के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का इरादा रखते हैं और सजा पर सुनवाई तब तक के लिए टाल दी जाए जब तक सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार याचिका पर फैसला नहीं सुना देती है।
पंजाब के लुधियाना स्थित डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में बार एसोसिएशन के दफ्तर के बाहर वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी करार दिए जाने पर रोष जताया। वकीलों ने इसे बोलने की आजादी पर अघात बताया। इस मौके पर वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि सर्वसम्मति से देशभर की अदालतों में कार्यरत वकीलों को प्रशांत भूषण के हक में खड़े होना चाहिए। वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आग्रह किया, ताकि भविष्य में बोलने की आजादी पर प्रहार न हो।
बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी समिति ने कहा है कि ‘‘वह भूषण से संबंधित मामले में कानूनी पेशे के एक सदस्य के खिलाफ भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वत: अवमानना कार्यवाही के तरीके से निराश और चिंतित है।’’ इससे पहले बार एसोसिएशन ने कहा था कि सिर्फ दो ट्वीट्स से कोर्ट की गरिमा भंग नहीं हो सकती। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को प्रशांत भूषण मामले में बड़ा दिल दिखाना चाहिए।
SC के पूर्व न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा दोषी ठहराया गये व्यक्ति को अंत:अदालती अपील का अवसर मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मूलभूत सवालों वाले किसी मामले के फैसले के लिये कम से कम पांच न्यायाधीशों की एक पीठ होनी चाहिए।’’ जोसेफ ने एक बयान में कहा, ‘‘दोनों ही स्वत: संज्ञान वाले मामलों में, भारत के संविधान की व्याख्या पर कानून के मूलभूत सवालों के मद्देनजर और इसका मूल अधिकारों पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इन विषयों की संविधान पीठ द्वारा सुनवाई की जरूरत है। ’’
उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो अपमानजनक ट्वीट के मामले में अवमानना का दोषी ठहराया था। न्यायमूर्ति अरुणा मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस मामले में भूषण को सुनाई जाने वाली सजा पर दलीलें 20 अगस्त को सुनेगी।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण का समर्थन किया और कहा कि उनके खिलाफ अवमानना मामला कानून के मूलभूत सवाल खड़े करते हैं, जिन पर संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए। न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने यह भी कहा कि एक स्वत:संज्ञान वाले मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दोषी ठहराया गये व्यक्ति को अंत:अदालती अपील का अवसर मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को दिए गए फैसले में प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी ठहराया था। अब वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर की है जिसमें अवमानना मामले के संबंध में उनकी सजा पर बहस को टालने की मांग की गई है। आज सजा पर बहस होने वाली है।
बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) ने न्यायालय की अवमानना के लिए दोषी ठहराये गये अधिवक्ता प्रशांत भूषण का समर्थन करते हुए मंगलवार को कहा कि ऐसे समय में जब नागरिक बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं तो आलोचनाओं से नाराज होने की जगह उनकी अनुमति देने से उच्चतम न्यायालय का कद बढ़ेगा।
प्रशांत भूषण ने अदालत की अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। उन्होंने सजा पर सुनवाई को टालने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि वह उनके दोषी ठहराए जाने के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का इरादा रखते हैं और सजा पर सुनवाई तब तक के लिए टाल दी जाए जब तक सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार याचिका पर फैसला नहीं सुना देती है।
प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में पूर्व जजों से लेकर ब्यूरोक्रेट्स और बुद्धिजीवी तक बंटे नजर आ रहे हैं। जहां एक तरफ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने प्रशांत भूषण के समर्थन में बयान दिया है। वहीं 15 पूर्व जजों समेत 103 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के पक्ष में पत्र जारी किया है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रति आपत्ति जाहिर करना सही नहीं है।
बीएआई ने एक बयान में कहा, ‘‘भारत के सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिष्ठा को दो 'ट्वीट' के द्वारा धूमिल नहीं किया जा सकता है। ऐसे समय में जब नागरिक बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं तो आलोचनाओं से नाराज होने की बजाय उनकी अनुमति देने से उच्चतम न्यायालय का कद बढ़ेगा।’’
14 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था। कोर्ट ने कहा कि भूषण के दो ट्वीट पूरे ‘सुप्रीम कोर्ट पर अभद्र हमला’ हैं और इसमें ‘न्यायपालिका की नींव हिलाने की क्षमता’ है।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो अपमानजनक ट्वीट को लेकर न्यायालय की अवमानना के लिये 14 अगस्त को दोषी ठहराया था। न्यायालय की अवमानना के इस मामले में अवमाननाकर्ता को अधिकतम छह महीने की साधारण कैद या दो हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। न्यायालय की अवमानना के अपराध में भूषण की सजा के बारे में 20 अगस्त को बहस सुनेगा।
वकील प्रशांत भूषण एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाखुश नजर आए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में ट्रांसफर करने की इजाजत न दिए जाने का फैसला दुखद है। भूषण ने ट्वीट कर कहा है कि पीएम केयर्स फंड एक गुप्त फंड है और यह कोविड-19 की आड़ में पैसा जुटाने का जरिया है।