पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपने पूरे जीवन में कांग्रेसी रहे। हालांकि, 2014 में कांग्रेस सरकार जाने के बाद सत्तासीन भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनके काफी अच्छे संबंध रहे। अपने आखिरी संस्मरण ‘द प्रेजिडेंशियल ईयर्स’ में अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अनुभवों को साझा करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि उन्हें हमेशा से लगता रहा कि मनमोहन सिंह के उलट मोदी ने प्रधानमंत्री पद कमाया और हासिल किया।

प्रणब मुखर्जी की ओर से उनके आखिरी समय में लिखी गई किताब में साफ कहा गया है कि राष्ट्रपति के तौर पर जिन दो प्रधानमंत्रियों के साथ उन्होंने काम किया, उनके पद तक पहुंचने का रास्ता काफी अलग था। मुखर्जी ने लिखा है, “मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद सोनिया गांधी की तरफ से प्रस्तावित हुआ था। कांग्रेस संसदीय दल और यूपीए के साथियों ने उन्हें ही प्रधानमंत्री उम्मीदवार चुना था। पर उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा दिया।” प्रणब ने लिखा है कि सिंह ने प्रधानमंत्री के तौर पर अच्छी जिम्मेदारी निभाई।

हालांकि, इसी के बाद उन्होंने कहा है कि 2014 चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाने के बाद मोदी लोकप्रिय चुनाव के जरिए प्रधानमंत्री बने। वे पूरी तरह से एक राजनेता हैं और पार्टी ने अभियान में जाने से पहले ही उन्हें अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया था। वे तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने एक ऐसी छवि बनाई थी, जो कि जनता को छू गई थी। मोदी ने प्रधानमंत्री का पद कमाया और हासिल किया है।

त्रिशंकु संसद पर क्या होता प्रणब मुखर्जी का फैसला: प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण में 2014 आम चुनाव के बाद की त्रिशंकु लोकसभा की संभावनाओं के बारे में भी लिखा है। उन्होंने कहा, “ऐसी स्थिति में स्थायित्व सुनिश्चित करना मेरी संवैधानिक जिम्मेदारी होती। अगर कांग्रेस के पास कम सीटें होतीं, लेकिन एक स्थाई सरकार का वादा होता, तो मैं पहले उसी के नेता को सरकार बनाने का न्योता देता। इस मामले में मैं पार्टी का गठबंधन बचाए रखने का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड भी देखता।”

मुखर्जी ने आगे लिखा, “यह पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की ओर से तय किए गए उस मानक का उल्लंघन होता, जिसमें उन्होंने सरकार बनाने के लिए पहले सबसे बड़ी पार्टी को न्योता देने का प्रावधान बनाया था। उन्होंने 1996 में त्रिशंकु लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए बुलाया, जबकि उन्हें वाजपेयी सरकार के नंबर के बारे में ठीक जानकारी नहीं थी। मैं 2014 चुनाव से पहले ही आश्वस्त था कि मैं स्थिरता और अस्थिरता के बीच तटस्थ नहीं रहूंगा।” मुखर्जी के मुताबिक, वे चुनाव में निर्णायक बहुमत मिलने के बाद भारमुक्त थे, पर इस दौरान वे कांग्रेस के प्रदर्शन से काफी निराश भी थे।