नागरिकता संशोधन विधेयक पर उठ रहे इस सवाल कि इस कानून से देश के अल्पसंख्यकों को खतरा है। इसपर देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि यह सवाल आज हम सभी और मीडिया के सामने है कि हम विविध विचारों को सुनें या फिर पार्शियन की तरह अपने राष्ट्रहित को थोपें। मुखर्जी ने कहा कि बहुमत का मतलब सबको साथ लेकर चलना होता है। उन्होंने कहा कि जनता मनमर्जी करने वाली पार्टी को अगले चुनाव में नकार देती है। प्रणब मुखर्जी इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित द्वितीय अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान दे रहे है।
विविधता के महत्व पर जोर देते हुए, पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, “हमें यह याद रखना चाहिए कि अगर हम अपने अलावा दूसरों की आवाज़ सुनना बंद आर देंगे तो लोकतन्त्र हार जाएगा।” एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित राजेंद्र माथुर मेमोरियल लेक्चर को देते हुए, मुखर्जी ने कहा कि भारत की 13 अरब लोगों की आबादी सात प्रमुख धर्मों का पालन करती है और 122 भाषाओं और 1,600 बोलियों का उपयोग करती है, और फिर भी एक संविधान के तहत रहती है, एक प्रणाली और साथ एक पहचान के साथ। यही भारत है। यह पहचान, कभी भी नष्ट नहीं की जा सकती न ही कभी भी हम इसे नष्ट होने देंगे और अगर हम इसे नष्ट कर देते हैं, तो भारत के रूप में जाना जाने वाला कुछ भी नहीं रहेगा।
वहीं महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के मौके पर मीडियाकर्मियों के साथ अनौपचारिक बातचीत में राकांपा सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि 42 साल पहले भी हुआ था ऐसा ही विरोध-प्रदर्शन, उस समय उखड़ गई थी केंद्र सरकार। CAA पर मोदी सरकार को चेताते हुए पवार ने कहा कि विरोध प्रदर्शन अल्पसंख्यकों तक सीमित नहीं रहे। मैं भी इसमें शामिल हूं और अन्य लोग भी इसमें शामिल हो। मुझे याद है कि 1977 में, इसी तरह के एक विरोध प्रदर्शन ने बाद में देश भर में गति पकड़ी थी और सरकार को बदल दिया था।”