शिवसेना का कहना है कि अगर भाजपा 2019 के आम चुनावों में बहुमत हासिल करने में नाकाम रही तो प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार हो सकते हैं। ये बात शिवसेना अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में कही है। शिवसेना ने अपने संपादकीय में लिखा है, “प्रणब मुखर्जी को बुलाने के पीछे संघ की यही योजना रही होगी। जो भी एजेंडा होगा वह 2019 के चुनाव के बाद स्पष्ट हो जाएगा। उस समय भाजपा को बहुमत नहीं मिलेगा। देश में माहौल भी ऐसा ही है। ऐसे में लोकसभा त्रिशंकु रही और मोदी के साथ अन्य दल खड़े नहीं रहे तो प्रणब मुखर्जी को ‘सर्वमान्य’ के रूप में आगे किया जा सकता है।” सामना का ये लेख शिवसेना द्वारा संघ के कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी के शामिल होने पर तंज की तरह देखा जा सकता है।

सामना में आगे लिखा है, “संघ ने शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाल ठाकरे को कभी अपने मंच पर आमंत्रित नहीं किया। और अब इफ्तार पार्टी आयोजित कर मुसलमानों को खुश करने की कोशिश कर रही है। बालासाहेब ने हिंदुत्व का छिपा एजेंडा नहीं चलाया, बल्कि वीर सावरकर की तरह उन्होंने खुलेआम हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार किया। हिंदुत्व पर आक्रमण करने वालों पर उन्होंने हमला बोला। इसीलिए संघ बालासाहेब का भार उठाने में असमर्थ था।”

प्रणब मुखर्जी पर निशाना साधते हुए शिवसेना ने लिखा है, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच पर गुरुवार को प्रणब मुखर्जी गए। इस पर खूब हो-हल्ला हुआ। कांग्रेसी नासमझ हैं, इसीलिए उन्होंने इस पर हंगामा किया। प्रणब तो पहले ही कह चुके थे कि उन्हें जो कहना है नागपुर जाकर ही कहेंगे। ऐसा लगा था कि प्रणब नागपुर जाकर कोई बम धमाका करेंगे, लेकिन यह तो फुस्सी बम निकला।”

बता दें कि 7 जून को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने नागपुर के संघ मुख्यालय पहुंचे थे। प्रणब मखर्जी के इस कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल देखने को मिली थी। खुद प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने पिता के संघ के साथ मंच साझा करने को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने भी इस पर ऐतराज जताया था।