उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रस्तावित विधेयक को लेकर छिड़ी बहस के बीच भारतीय जनता पार्टी की तरफ से अलग-अलग राज्यों में भी इसे लाने की बात की जा रही है। लेकिन एक साल पहले ही केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में सरकार का रुख कुछ अलग था। सरकार ने दिसंबर 2020 में अदालत में कहा था कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर हम जोर-जबरदस्ती के खिलाफ हैं।
बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से अदालत में पीआईएल दायर की गयी थी जिसके जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के परिवार नियोजन विभाग द्वारा यह बात अदालत में कही गयी थी। हलफनामे में कहा गया था कि भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है, जो जोड़ों को अपने परिवार का आकार तय करने और परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने में मदद करता है। इसे लेकर जोर-जबरदस्ती नहीं की जाती है।
हलफनामे में यह भी कहा गया था कि भारत 1994 में जनसंख्या और विकास पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्ता है, जिसके तहत वो “परिवार नियोजन में जबरदस्ती के खिलाफ स्पष्ट मत रखता है।” बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के एक मसौदे के अनुसार दो-बच्चों की नीति का उल्लंघन करने वाले को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने, पदोन्नति और किसी भी प्रकार की सरकारी सब्सिडी प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा।
गौरतलब है कि राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप तैयार कर लिया है। उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग (यूपीएसएलसी) की वेबसाइट के अनुसार, ‘‘राज्य विधि आयोग, उप्र राज्य की जनसंख्या के नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण पर काम कर रहा है और एक विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया है।’’
राज्य विधि आयोग ने इस विधेयक का प्रारूप अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है और 19 जुलाई तक जनता से इस पर राय मांगी गई है। विधेयक के प्रारूप के अनुसार इसमें दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का प्रस्ताव है तथा सरकारी योजनाओं का भी लाभ नहीं दिए जाने का जिक्र है।