Supreme Court Judge Justice Prashant Kumar Mishra: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने शनिवार को धर्म, जाति और जातीयता के आधार पर विभाजनकारी बयानबाजी के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जताई। साथ ही इसे बंधुत्व, आपसी भाईचारे और संवैधानिक आदर्श के लिए एक बड़ी चुनौती बताया। जस्टिस मिश्रा गुजरात के वडताल में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (एबीएपी) की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि इस तरह की बयानबाजी भारतीय संविधान में वर्णित एकता की भावना को कमजोर करती है।
जस्टिस मिश्रा ने चेतावनी दी कि पहचान की राजनीति, जिसका इस्तेमाल अक्सर राजनेता वोट हासिल करने के लिए करते हैं, सामाजिक विभाजन को गहरा करती है, जिससे बहिष्कार, भेदभाव और संघर्ष होता है। उन्होंने भाईचारे को एक ऐसा एकीकृत सूत्र बताया जो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर स्वतंत्रता, समानता और न्याय के आदर्शों को बांधता है। उन्होंने कहा कि भाईचारे के बिना ये आदर्श नाजुक बने रहते हैं, जैसे एक तिपाई का महत्वपूर्ण पैर गायब हो जाता है।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने विभाजनकारी विचारधाराओं, आर्थिक असमानता और सामाजिक अन्याय से उत्पन्न खतरों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि ये मुद्दे भाईचारे की भावना को कमजोर करते हैं, जिसे नागरिकों, संस्थानों और नेताओं द्वारा समान रूप से बनाए रखा जाना चाहिए। जस्टिस मिश्रा ने नफरत फैलाने वाले भाषण, गलत सूचना और विभाजनकारी सामग्री फैलाने में डिजिटल प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया की हानिकारक भूमिका पर प्रकाश डाला, जिससे समुदायों के बीच सामाजिक तनाव और अविश्वास और बढ़ गया।
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उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि विभाजनकारी बयानबाजी अविश्वास पैदा करती है, जिससे रूढ़िवादिता और गलतफहमियां पैदा होती हैं। उन्होंने कहा कि जब राजनीतिक नेता चुनावी लाभ के लिए सामाजिक पहचान का इस्तेमाल करते हैं, तो इससे विभाजन गहराता है, जिससे सामूहिक जुड़ाव की भावना का निर्माण कठिन हो जाता है।
जस्टिस मिश्रा ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया और समाज के हर वर्ग से भाईचारे की रक्षा में सक्रिय रूप से भाग लेने का आग्रह किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका को मध्यस्थता, सुलह और भाईचारे के मूल्यों को दर्शाने वाले फैसले तैयार करके एकता को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
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