डॉ. भीमराव आंबेडकर की 14 अप्रैल को 125 वीं जयंती से पहले ‘दलितों के मसीहा’ की विरासत को लेकर कांग्रेस और भाजपा में सियासी लड़ाई तेज हो गयी है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा अंबेडकर के नाम पर दिखावे की राजनीति कर रही है और उनकी जन्मस्थान महू का नाम बदलकर आंबेडकर नगर करने के 13 साल पुराने अहम फैसले को उसकी सरकार अब तक वास्तविक धरातल पर लागू नहीं करा सकी है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव सज्जन सिंह वर्मा ने मंगलवार कहा, ‘सूबे में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल के दौरान दलितों के मसीहा के सम्मान में जून 2003 में महू का नाम बदलकर अंबेडकर नगर रखने का फैसला किया गया था। लेकिन दिसंबर 2003 से लेकर अब तक प्रदेश की सत्ता संभाल रही भाजपा इस नए नामकरण को वास्तविक अर्थों में अब तक लागू नहीं करा सकी है। यहां तक कि अंबेडकर के जन्मस्थल में ही महू की जगह अंबेडकर नगर के नाम का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।’ वर्मा ने कहा, ‘आम जन मानस की बात तो छोड़ ही दीजिए, केंद्र और मध्यप्रदेश सरकार के कार्यालयों में भी महू की जगह आंंबेडकर नगर का प्रयोग नहीं किया जा रहा है।’

दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया, ‘भाजपा वोट बैंक के लालच में आंबेडकर के नाम पर दलितों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रही है। महू के नए नामकरण को लागू कराने में भाजपा सरकार की नाकामी बताती है कि वह अंबेडकर के नाम को सियासी स्वार्थों के लिए भुनाना चाहती है और दलित अस्मिता व उत्थान के सरोकारों से उसका हकीकत में कोई लेना-देना नहीं है।’

प्रदेश सरकार ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज किया है। सूबे के सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री लालसिंह आर्य ने कहा, ‘राज्य के सरकारी कामकाज में महू के स्थान पर आंबेडकर नगर का बराबर इस्तेमाल किया जा रहा है। लंबे समय तक सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस ने दलितों को हमेशा वोट बैंक समझा है और सत्ता जाने के बाद अब वह आंबेडकर के नाम पर झूठ की राजनीति कर रही है।’

उन्होंने कहा,‘प्रदेश की भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने 1990 में महू में आंबेडकर की याद में भव्य इमारत बनाए जाने की घोषणा की थी। शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने इस स्मारक का निर्माण कार्य पूरा कराया और 2008 में आंबेडकर की 117 वीं जयंती के मौके पर इसे लोकार्पित किया था। इसके साथ ही, सामाजिक समरसता का संदेश देने के लिए आंबेडकर की जयंती पर महू में हर साल महाकुंभ आयोजन की परंपरा शुरू की थी।’

आर्य ने कहा, ‘दिग्विजय सिंह नीत कांग्रेस सरकार 1993 से 2003 तक सूबे की सत्ता में रही। लेकिन इन 10 सालों में उसने महू में आंबेडकर स्मारक के निर्माण में दिलचस्पी नहीं दिखाई।’ 1818 में बसाया गया महू देश की गुलामी के दौर में अंग्रेजी सेना के अहम ठिकानों में शामिल था। यह जानना दिलचस्प है कि इसका नाम मिलिट्री हेडक्वार्टर्स ऑफ वॉर (एमएचओडब्ल्यू) का अंग्रेजी संक्षिप्तीकरण है। आजादी के बाद महू में भारतीय थल सेना के कुछ महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित हुए। लिहाजा इस कस्बे की ठेठ पहचान आज भी सैन्य छावनी के रूप में ही है। ‘दलितों के मसीहा’ अंबेडकर ने महू में 14 अप्रैल 1891 को जन्म लिया था।