एक बच्चे को जन्म से ही दिमाग से जुड़ी बीमारी थी। जिस अस्पताल में बच्चे का जन्म हुआ वहां के चिकित्सक बीमारी का पता ही नहीं लगा सके। बच्चे की मांग ने पुलिस में केस दर्ज करा दिया। लेकिन पुलिस चार साल में जांच भी पूरी नहीं कर सकी। दिल्ली की कोर्ट के सामने सारा मामला पहुंचा तो मजिस्ट्रेट का पारा चढ़ गया। जॉइंट पुलिस कमिश्नर को अदालत ने नोटिस देकर कहा है कि वो सारे मामले में जवाब दाखिल करें। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 27 जुलाई की तारीख मुकर्रर की है।
देवर्ष जैन को अगस्त 2017 में जन्म के समय ही लकवा मार गया था। लेकिन समस्या का पता सात महीने बाद चल पाया। उसकी उम्र अब पांच साल है। देवर्ष के माता-पिता का आरोप है कि शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल ने जानबूझकर जन्म के समय उसे हुई समस्याओं को छुपाया, जिससे उसका समय पर इलाज नहीं हो पाया। हालांकि अस्पताल ने इन सभी आरोपों को खारिज किया है।
सपना जैन ने शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल में ही देवर्ष जैन को जन्म दिया था। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रितिका कंसल ने 30 जून को सुनाए आदेश में कहा कि जांच अधिकारियों ने अभी तक मैकेनिकल रिपोर्ट के अलावा और कोई और रिपोर्ट दाखिल नहीं की है। उन्होंने आरोपी अस्पताल से पीड़ित के मेडिकल रिकॉर्ड लेने की जहमत तक भी नहीं उठाई।
कोर्ट ने जॉइंट कमिश्नर से पूछा- जांच पूरी क्यों नहीं हुई, बताईए
कोर्ट ने संयुक्त पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी कर जांच पूरी न होने का कारण पूछा। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने कहा कि जांच अधिकारी ने रोहिणी कोर्ट में दायर स्टेट रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि बच्चे के इलाज में लापरवाही के आरोपी दो चिकित्सकों में से एक ने केवल एमबीबीएस किया था, जबकि दूसरे की शैक्षणिक योग्यता की कोई जानकारी नहीं मिली है।
सपना जैन ने अक्टूबर 2019 में FIR दर्ज कराई थी। सपना जैन ने उनके बच्चे का इलाज करने वाले डॉ. विवेक जैन और डॉ. अखिलेश सिंह की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए दिल्ली HC में अलग से एक याचिका दायर की है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने अदालत में स्वीकार किया कि अखिलेश सिंह केवल एमबीबीएस हैं। वो बाल रोग विशेषज्ञ नहीं है।