सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के तहत एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के ‘‘स्किन टू स्किन’’ संबंधी विवादित फैसले को गुरुवार को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, बच्चों की स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट नहीं। जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की तीन सदस्यीय बेंच ने हाई कोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए कहा कि शरीर के यौन अंग को छूना या यौन इरादे से किया गया शारीरिक संपर्क की कोई भी हरकत पॉक्सो कानून की धारा सात के तहत यौन उत्पीड़न ही मानी जाएगी।

कोर्ट ने कहा कि यह पहली बार है, जब अटॉर्नी जनरल ने आपराधिक पक्ष पर कोई याचिका दाखिल की है। यहां जस्टिस रवींद्र भट ने टोकते हुए कहा कि इससे पहले राजस्थान हाईकोर्ट के खिलाफ अटॉर्नी जनरल ने एक फैसले को चुनौती दी थी। जहां सार्वजनिक तौर पर फांसी देने का आदेश दिया गया था। इस तरह अब तक कुल दो मौके हो गए है, जब अटॉर्नी जनरल ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की हो।

राजस्थान के जिस मामले का जिक्र जस्टिस रवींद्र भट ने किया था, वह अटॉर्नी जनरल बनाम लछमा देवी का है। लाइवलॉ वेब पोर्टल के अनुसार, राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मामले में सजा सुनाते हुए दोषी को सार्वजनिक तौर पर फांसी की सजा सुनाई थी। उसे जनता के बीच स्टेडियम में फांसी दी जानी थी। इस मामले की चर्चा मीडिया में जोरों शोरों से हो रही थी। इस केस में अटॉर्नी जनरल की अपील के बाद कोर्ट ने माना था कि सार्वजनिक फांसी के जरिए मौत की सजा देना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह सत्य है कि जिस अपराध में आरोपी, दोषी साबित हुआ है, वह क्रूर और बर्बर है, यह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्म और अपमान की बात है लेकिन किसी क्रूर अपराध की सजा उसी तरह बर्बर हो, यह जरूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा सार्वजनिक फांसी के जरिए मौत की सजा को बिना शर्त हटा दिया था।

आज के फैसले में भी कोर्ट ने साफ किया हाई कोर्ट का फैसला पॉक्सो अधिनियम के खिलाफ है। बेंच ने कहा कि किसी नियम को बनाने से वह नियम प्रभावी होना चाहिए, न कि नष्ट होना चाहिए। प्रावधान के उद्देश्य को नष्ट करने वाली उसकी कोई भी संकीर्ण व्याख्या स्वीकार्य नहीं हो सकती। कानून के मकसद को तब तक प्रभावी नहीं बनाया जा सकता, जब तक उसकी व्यापक व्याख्या नहीं हो।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अटार्नी जनरल भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होता है, वर्तमान में केके वेणुगोपाल अटॉर्नी जनरल के पद पर काबिज हैं, इसी साल जून महीने में उनकी सेवा को दूसरी बार विस्तार दिया गया था, अब वह 30 जून 2022 तक इस पद पर रहेंगे।