प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार देश में अपनी सरकार बना ली है। उनका मंत्रिमंडल भी पूरी तरह तैयार हो चुका है, पोर्टफोलियो का बंटवारा भी कर दिया गया है। पहली नजर में कहा जा सकता है कि 5 साल के मोदी सरकार पूरी तरह तैयार है, लेकिन जितना आसान यह इस समय लग रहा है, असल में चुनौतियां उतनी ज्यादा ही सामने आने वाली हैं। यह बात नहीं भूलना चाहिए कि देश में 10 साल बाद फिर गठबंधन सरकार का दौर लौट आया है, गठबंधन सरकार का एक ऐसा दौर देखने को मिलने वाला है जहां पर सभी की अपनी मांगे होंगी, हर कोई मांगों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव डालेगा। ऐसे में कई प्रकार की चुनौतियों का सामने आना लाजमी है। अब आपको यहां पर बताते हैं कि इन पांच सालों में पीएम मोदी के सामने कौन सी पांच बड़ी चुनौतियां सामने आने वाली हैं-
चुनौती नंबर एक- सभी को एकजुट रखना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी चुनौती अब यह रहने वाली है कि किस तरह से अपने इस एनडीए के परिवार को एकजुट रखा जाए। बड़ी बात यह है कि देश का विकास भी अब इस एनडीए के ऊपर ही पूरी तरह निर्भर रहने वाला है। अगर कोई भी दल अपना हाथ पीछे खींचेगा, सीधे-सीधे सरकार पर खतरा मंडराने लगेगा। ऐसे में किस तरह से सभी नेताओं को खुश रखकर देश के विकास को प्राथमिकता दी जाए, इसकी एक योजना तैयार करनी पड़ेगी।
चुनौती नंबर दो- नीतीश और नायडू के साथ तालमेल बैठाना
प्रधानमंत्री मोदी के एक समय अगर दो सबसे बड़े विरोधी रहे हैं तो वो चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी को दोनों नीतीश और नायडू की तरफ से भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। इसके ऊपर वर्तमान में भी दोनों नेताओं की ऐसी विचारधारा है जो कई मुद्दों को लेकर बीजेपी से विपरीत बैठती है। बात चाहे मुस्लिम आरक्षण की हो या फिर जातिगत जनगणना की, दोनों नीतीश और नायडू कभी भी अपनी मांगों को लेकर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करते हैं। ऐसे में बड़े फैसले अगर लेने हैं तो मोदी को इस N फैक्टर को संभाल कर रखना होगा।
चुनौती नंबर 3- मजबूर बनाम मजबूत सरकार के नैरेटिव को तोड़ना
इस देश में गठबंधन सरकार को हमेशा मजबूरी की नजर से देखा गया है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की जैसी कार्यशैली रही है, वे मजबूत सरकार चलाने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इस बार क्योंकि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है, मोदी के सामने इस नेरेटिव से पार पाना एक चुनौती रहेगी कि उनकी सरकार मजबूर है या मजबूत। कहने को इस बार एनडीए की सरकार बनी है, लेकिन शुरुआत से ही पीएम मोदी ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जिसके दम पर वे दिखाना चाहते हैं कि पिछली बार की तरह इस बार भी कठोर और बड़े फैसले देश हित में होते रहेंगे। लेकिन फिर भी अगले 5 साल तक पीएम मोदी की सबसे बड़ी चुनौती यही रहने वाली है कि सहयोगी उनकी मजबूरी बनते हैं या मजबूती।
चुनौती नंबर 4- बड़े फैसले पर सहमति बनाना
प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी मौसम में जितनी भी स्पीच हुई थीं, सभी में उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि उनका तीसरा कार्यकाल बड़े फैसलों का होने वाला है, साफ हिंट दिया गया था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड से लेकर दूसरे कई बड़े और निर्णायक कानून देश में लागू किए जाएंगे। लेकिन वे भरोसा इस दम पर दिखा रहे थे कि बीजेपी को अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिलेगा, उनका 400 पार का नारा सच साबित होगा। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि भाजपा बहुमत से दूर है और एनडीए खुद 300 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई है। ऐसे में मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही रहने वाली है कि कमजोर जनादेश के साथ क्या वे बड़े फैसला कर पाएंगे जिसके सपने पिछले कई सालों से दिखाए जा रहे हैं। बात चाहे यूनिफॉर्म सिविल कोड की हो, एक देश एक चुनाव की हो, जनसंख्या कानून की हो, यह सभी भाजपा के एजेंडे में सबसे ऊपर माने जाते हैं, लेकिन क्या इन्हें अमलीजामा पहनाया जा पाएगा या नहीं?
चुनौती नंबर 5- गठबंधन सरकार के साथ कैसे मिलेगी चुनावी जीत?
पीएम मोदी को देश के विकास के बारे में तो सोचना ही है लेकिन किस तरह से भाजपा अपने खोए हुए जनाधार को फिर हासिल करें, यह भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती रहने वाला है। आने वाले कुछ महीनो में देश में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा सबसे बड़े राज्य हैं, तीन राज्यों में से सिर्फ एक दिल्ली ऐसा राज्य है जहां पर लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा, लेकिन बाकी राज्यों में कई झटके झेलने पड़े। ऐसे में कौन सी योजनाओं के जरिए और किस तरह से जमीन पर हर तबके तक अपनी योजनाओं का फायदा पहुंचाया जाए, पीएम मोदी के लिए यह एक बड़ी चुनौती रहने वाला है।