प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में शायद कोई कमी नहीं आई है। इस बात का ताजा उदाहरण बिहार चुनाव हो सकता है जिसके नतीजों ने बीजेपी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। कहा जा सकता है कि निजी तौर पर अब भी नरेंद्र मोदी, वोटर्स के बीच आकर्षण का केंद्र हैं। हालांकि अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, जीजीपी और सीमा विवाद समेत देश कुछ अन्य अहम मुद्दों पर गौर करें तो मोदी सरकार शायद अपने वादों पर खरी उतरती नजर नहीं आ रही है। इन अहम परीक्षाओं में मोदी सरकार की परफॉरमेंस रिपोर्ट ज्यादा संतोषजनक नहीं कही जा सकती है।
आंकड़ें बताते हैं कि देश की जीडीपी पिछले तीन सालों में गिरती ही चली गई है। हकीकत यह है कि कोविड-19 संक्रमण के फैलने से पहले और लॉकडाउन लगने से पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं थी। बिहार चुनाव के नतीजे घोषित होने के कुछ ही घंटों बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से कहा गया है था कि दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर तक भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी से गुजर रही थी। हालांकि सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया।
सीमा विवाद पर अगर बात करें तो हाल ही में पाकिस्तान की तरफ से की गई फायरिंग में हमारे कई जवान शहीद हो चुके हैं। आसपास के गांवों में रहने वाले भारतीयों को भी पड़ोसी मुल्क की दुस्साहस का खामियाजा भुगतना पड़ता है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर भी हालात चीन से तनावपूर्ण हैं। लद्दाख में फिंगर 8 के पास हमारी सेना को पेट्रोलिंग करने से लगातार रोकने की कोशिशें हो रही हैं। हालांकि मोदी सरकार यह नहीं मान रही है कि जिस जगह पर कभी भारतीय सेना पेट्रोलिंग किया करती थी उस जमीन पर अब चीन का कब्जा है। सरकार ने इस विषय पर बातचीत भी कर दी है।
कोरोना की अगर बात करें तो इस संक्रमण से ग्रसित मरीजों की संख्या के मामले में अब भारत, दुनिया में दूसरे नंबर पर पहुंच चुका है। इसके अलावा देश में मृतकों की संख्या दुनिया में तीसरे नंबर है। लॉकडाउन का असर बहुत ज्यादा हुआ ऐसा लगता नहीं, क्योंकि अभी भी देश में हजारों कोरोना वायरस केस एक दिन में आ जाते हैं।
बेरोजगारी भी पिछले कुछ महीनों में तेजी से बढ़ी है। देश की दो तिहाई वर्किंग वुमेन की नौकरी लॉकडाउन की वजह से चली गई। पुरुषों के मुकाबले देश में कामगार महिलाओं की संख्या पहले से ही कम थी। दिसंबर 2019 में यह 9.15 फीसदी थी जो इस साल अगस्त में 5.8 फीसदी पर पहुंच गई है। कामगार पुरुषों की संख्या 67 फीसदी से गिरकर 47 फीसदी पर पहुंच गई है।