प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जंगल और पानी बचाने को हर किसी का दायित्व बताया है। उन्होंने रविवार (22 मई) को आकशवाणी पर प्रसारित अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा कि आने वाले चार महीनों को बूंद-बूंद पानी के लिए जल बचाओ अभियान के रूप में बदलना है। उन्होंने ऐसी फसलें अपनाने पर जोर दिया, जिनमें कम पानी का इस्तेमाल हो। उन्होंने कहा कि पानी बचाना केवल सरकारों या राजनेताओं का ही नहीं, बल्कि आमलोगों का भी काम है। प्रधानमंत्री ने सूखे की समस्या के स्थायी समाधान और खेती में सूक्ष्म सिंचाई और प्रौद्योगिकी के उपयोग के महत्व को भी रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने सीबीएसई की 12वीं की बोर्ड परीक्षा में सफल छात्रों को बधाई दी। उन्होंने छात्रों और अभिभावकों से नकारात्मकता से बचने की सलाह दी। मोदी ने मन की बात में 21 जून को मनाए जाने वाले योग दिवस और आरोग्य में योग और स्वच्छता के महत्व को भी रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं देशवासियों को भी कहता हूं कि जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, इन चार महीनों में हम तय करें, पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होने देंगे। अभी से प्रबंध करें, पानी बचाने की जगह क्या हो सकती है, पानी रोकने की जगह क्या हो सकती है। ईश्वर तो हमारी जरूरत के हिसाब से पानी देता ही है, प्रकृति हमारी आवश्यकता की पूर्ति करती ही है, लेकिन हम अगर बहुत पानी देख करके बेपरवाह हो जाएं और जब पानी का मौसम समाप्त हो जाए तो बिना पानी परेशान रहें, तो ये कैसे चल सकता है?’
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उन्होंने कहा कि पानी केवल किसानों का विषय नहीं है। ये गांव, गरीब, मजदूर, किसान, शहरी, ग्रामीण, अमीर-गरीब हर किसी से जुड़ा विषय है। इसलिए बारिश का मौसम आ रहा है, तो पानी बचाना हमारी प्राथमिकता रहे। मोदी ने कहा कि गर्मी बढ़ती ही चली जा रही है। इस समय देश का अधिकतम हिस्सा भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि गर्मी से पशु, पक्षी और इंसान परेशान है। पर्यावरण के कारण ही तो ये समस्याएं बढ़ती चली जा रही हैं। जंगल कम होते गए, पेड़ कटते गए और एक प्रकार से मानवजाति ने ही प्रकृति का विनाश कर स्वयं के विनाश का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस है। इस अवस पर संयुक्त राष्ट्र ने वन्यजीवों के कारोबार को बर्दाश्त नहीं करने को विषय बनाया है। इसकी तो चर्चा होगी ही होगी, लेकिन हमें तो पेड़-पौधों की भी चर्चा करनी है, पानी की भी चर्चा करनी है, हमारे जंगल कैसे बढ़ें? उन्होंने हाल के दिनों में कई पहाड़ी राज्यों में लगी आग का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जंगल और पानी बचाना हम सबका दायित्व है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पिछले दिनों मुझे अधिक सूखे की स्थिति वाले 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विस्तार से बातचीत करने का अवसर मिला। इनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओड़ीशा जैसे राज्य शामिल थे। उन्होंने कहा कि इन राज्यों के साथ एक बैठक करने की जगह हमने उनके साथ अलग-अलग बैठकें कीं। राज्यों की बात को बारीकी से सुना। उन्होंने कहा कि कई राज्यों ने बहुत ही उत्तम प्रयास किए हैं, पानी के संबंध में, पर्यावरण के संबंध में, सूखे की स्थिति से निपटने के लिए, पशुओं के लिए, प्रभावित लोगों के लिए, भले ही वहां किसी भी दल की सरकार क्यों न हो।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक प्रकार से मेरे लिए वह सीखने वाला अनुभव भी था। उन्होंने कहा कि नीति आयोग से कहा गया है कि राज्यों की सर्वश्रेष्ठ पहल को सभी राज्यों में पहुंचाने के लिए काम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आंध्र और गुजरात जैसे राज्यों ने प्रौद्योगिकी का भरपूर उपयोग किया है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अब तो खुशी की बात है कि कई राज्यों में हमारे गन्ने के किसान भी सूक्ष्म सिंचाई का उपयोग कर रहे हैं। कोई ड्रिप सिंचाई का उपयोग कर रहा है। कुछ राज्यों ने धान के लिए भी सफलतापूर्वक ड्रिप सिंचाई का प्रयोग किया। इससे उनकी पैदावार भी ज्यादा हुई, पानी भी बचा और मजदूरी भी कम हुई। इस संदर्भ में उन्होंने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात, राजस्थान, झारखंड, तेलंगाना के सरकारी और निजी स्तर पर किए जा रहे प्रयासों का भी उल्लेख किया।