उत्तरकाशी जिले के धराली में अचानक आई बाढ़ के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन के छठे दिन रविवार को मातली हेलीपैड पर गंगोत्री से निकाले गए चारधाम यात्रियों की काफी गहमागहमी नजर आई। धराली गांव में मलबे और इमारतों के मिट्टी में मिलने से पहले एक 55 साल के व्यक्ति अपने बेटे से फोन पर बात कर रहे थे। अचानक वह चिल्लाए, “बचाओ बचाओ।” फिर कुछ देर बाद उन्होंने कहा, “हरि ॐ।” आईटीबीपी कैंप में हेलीकॉप्टर का इंतजार कर रहे गोविंद कहते हैं, “फिर लाइन कट गई। मुझे पता है कि उनकी मौत हो चुकी है। मैं उनका डेथ सर्टिफिकेट लेने जा रहा हूं।”
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे अधिकारियों ने कहा कि अभी तक बचाव अभियान में केवल दो ही शव मिले हैं। वहीं ऐसा अनुमान है कि कम से कम 60 लापता हैं। जहां पर मातली हैलीपैड है, वहां पर कुछ लोग अधिकारियों के चारों ओर खड़े हैं। एक अधिकारी सवाल करते हुए कहता है, “मौके पर बचाव दल मौजूद हैं। अगर हम तुम्हें ले भी जाएं, तो तुम क्या करोगे? क्या तुम अपने हाथों से कीचड़ खोदोगे।” फिर लोगों का ग्रुप शांत हो जाता है।
लक्ष्मण धराली में राजमिस्त्री का काम करते थे
इस ग्रुप में नेपाल, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मजदूरों के परिवार भी शामिल हैं। इन्हीं में से एक गोविंद है। वह ऋषिकेश की एक एडवेंचर स्पोर्ट्स कंपनी में काम करता है। उसके पिता लक्ष्मण धराली में राजमिस्त्री का काम करते थे। अचानक आई बाढ़ में गोविंद का लक्ष्मण से फोन कट गया और आगे कोई भी जवाब नहीं मिला। फिर उसने अपने पिता के एक साथी को फोन किया। उसने पुष्टि की कि जब इमारत में कीचड़ भरी थी तो लक्ष्मण अंदर ही था। उसने कहा, “मैं वहां जाना चाहता हूं। भले ही इसका कोई नतीजा न निकले, लेकिन मुझे और मेरे परिवार को एक समाधान चाहिए।”
उत्तराखंड में फिर दोहराया केदारनाथ जैसा मंजर
फुरकान और सलमान लापता
मोहम्मद उफरान भी धराली तक हेलीकॉप्टर से जाने की उम्मीद कर रहे हैं। उनके भाई फुरकान और चचेरे भाई सलमान अभी भी लापता हैं। उन्होंने कहा, “सरकार ने गंगोत्री और हर्षिल से टूरिस्ट को निकाल लिया है। हम उनकी प्राथमिकताओं में नहीं हैं।” उसका भाई और चचेरा भाई पिछले तीन महीनों से धराली से ऊपर पहाड़ी पर एक जगह वेल्डर का काम कर रहे थे। 5 अगस्त को जब बाढ़ आई, तो वे सामान इकट्ठा करने के लिए गांव गए थे। तब से उनके फोन नहीं मिल रहे हैं।
योगेश जिंदा होता तो फोन जरूर करता – गोविंद कुमार
गोविंद कुमार भी निराशा से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। उनका भाई योगेश उफरान के भाई और चचेरे भाई के साथ काम करता था, बाढ़ वाले दिन उनके साथ धराली गया था। गोविंद कुमार ने कहा, “मैंने हर्षिल कैंप में दो लोगों को यह कहते सुना कि योगेश जिंदा है, लेकिन अगर वह जिंदा होता, तो फोन जरूर करता।” इस भागदौड़ भरी तलाश के बीच, कुमार को एक पल की शांति मिलती है जब उसकी नजर बचाए गए लोगों की लिस्ट में योगेश नाम पर पड़ती है। जब वह उस नंबर पर दिए गए फोन नंबर पर डायल करता है, तो रिसीवर उसे बताता है कि वह व्यक्ति उत्तराखंड का योगेश सेमवाल है।
जैसे ही कुछ लोग हर्षिल से हेलीकॉप्टर से उतरते हैं, कुमार उनमें से एक के सामने योगेश की तस्वीर रखते हैं। वे पूछते हैं, “मेरा भाई एक निर्माण स्थल पर काम कर रहा था और बाढ़ वाले दिन अपने दो दोस्तों के साथ धराली गया था। क्या तुमने उनमें से किसी को देखा है?” वह व्यक्ति तस्वीरों को देखता है और सिर हिलाता है। जाने से पहले वह बताता है कि हर्षिल कैंप में अभी केवल 15 लोग ही रह रहे हैं।
नेपाल के दिलीप सिंह ने राहत की सांस ली
नेपाल के दिलीप सिंह राहत की सांस ले रहे हैं। उन्हें अभी-अभी गंगोत्री से निकाला गया है, जहां वे एक निर्माण स्थल पर मजदूर थे। वे अधिकारियों से अपने भाई करण सिंह के बारे में पूछताछ कर रहे हैं, जो गांव में राजमिस्त्री का काम कर रहे थे। सिंह कहते हैं, “वीडियो में उनका होटल बहता हुआ दिखाई दे रहा है। हमें लगता है कि वे चले गए हैं।” सेना के जवान ने बयां किया धराली का खौफनाक मंजर