खेती में कीटनाशकों का इस्तेमाल दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। कोई फसल ऐसी नहीं, जिस पर कीट का प्रकोप नहीं होता। इसलिए कीटनाशकों का चलन बढ़ता गया है। मगर कीटनाशक कीटों पर नियंत्रण कम, समस्याएं ज्यादा पैदा कर रहे हैं। इनके दुष्प्रभाव से देश में बड़ी तादाद में किसानों को जान गंवानी पड़ती है। फल, सब्जियां और अनाज भी जहरीले होते जा रहे हैं। पशु, पक्षी भी इससे प्रभावित हो रहे हैं।

कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से संबंधित हाल में आया एक अध्ययन डराने वाला है। इसमें कहा गया है कि कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से जहां किसानों में तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग बढ़ रहे हैं, वहीं प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर हो रही है। किसानों में कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। जिस प्रकार धूम्रपान से कैंसर होता है, उसी प्रकार कुछ कीटनाशकों से भी कैंसर होने का खतरा रहता है। किसानों और कीटनाशकों के अत्यधिक संपर्क में आने वाले अन्य लोग भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।

अध्ययन के अनुसार 69 कीटनाशक सीधे तौर पर कैंसर के बढ़ते मामलों से संबद्ध पाए गए हैं। यह अध्ययन अमेरिका में राकी विस्टा विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किया गया है। पर इसे अमेरिका में होने के कारण खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें जिन मेथोमाइल, मेटोलाक्लोर, एसीफेट 2 व 4 डी जैसे कीटनाशकों का जिक्र है, उनका हमारे देश में खरपतवार और कीटों के खात्मे के लिए खुलेआम इस्तेमाल किया जा रहा है।

पैदावार बढ़ाने के लिए करते हैं कीटनाशकों का प्रयोग

हमारे देश में कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल पहले ही चिंता का विषय है। केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय की एक रपट के मुताबिक, 1950-51 में भारत में किसान केवल सात लाख टन रासायनिक उर्वरक इस्तेमाल करते थे, यह आंकड़ा अब 335 लाख टन हो चुका है। एक अन्य रपट के अनुसार 2013 के बाद से भारत में खेती में कीटनाशकों का उपयोग पांच हजार मीट्रिक टन बढ़ा है। देश में बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य की मांग पूरा करने के लिए किसान कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं, ताकि पैदावार अधिक हो सके। जैसे-जैसे कीटों और पौधों की बीमारियों की तादाद बढ़ रही है, वैसे-वैसे कीटनाशकों का उपयोग भी बढ़ रहा है।

कीटनाशकों के इस्तेमाल के मामले में पंजाब सबसे आगे है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के एक अध्ययन में बताया गया है कि देश में सर्वाधिक 1250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक पंजाब में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इसके बाद 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक हरियाणा में उपयोग होते हैं। कीटनाशकों के इस्तेमाल में कपास और धान उपजाने वाला तेलंगाना अब पंजाब और हरियाणा के साथ होड़ कर रहा है, जहां 900 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक छिड़के जा रहे हैं। कीटनाशकों के साथ रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी बहुतायत में हो रहा है। देश में हरियाणा में सर्वाधिक 386 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उर्वरक डाले जा रहे हैं। बिहार में 317 किलोग्राम, पंजाब में 315 किलोग्राम तथा उत्तर प्रदेश में 315 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उवर्रक इस्तेमाल किए जा रहे हैं।

कीटनाशकों के कारण हवा, मिट्टी और पानी में जहर घुल रहा

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कीटों में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है, जिससे अब कीटनाशक उतने प्रभावकारी नहीं हो पा रहे हैं। पहले कीटनाशकों की निर्धारित मात्रा के छिड़काव से जो कीट नष्ट हो जाते थे, अब उन पर उनका प्रभाव नहीं हो पा रहा है। इससे किसान का खर्च व्यर्थ जा रहा और खेती की लागत बढ़ रही है। यह सही है कि रासायनिक कीटनाशकों और खाद के इस्तेमाल से फसल उत्पादन बढ़ा है, मगर इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि इसका हमारी जमीन, खेती, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है। कीटनाशकों के कारण हमारी हवा, मिट्टी और पानी में जहर घुल रहा है। अनाज, फल और सब्जियों के जरिए विषैले तत्त्व हमारे शरीर में पहुंच कर हमें बीमार कर रहे हैं।

कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से जैव विविधता प्रभावित हो रही है। मानव के साथ वन्य जीव, घरेलू पशु और पक्षी भी इसके दुष्प्रभाव झेलने पर मजबूर हैं। अनेक अध्ययनों से जाहिर है कि कीटनाशकों से भूजल प्रदूषित हो रहा है। कीटनाशकों के कारण मधुमक्खियों की संख्या घट रही है। इस वजह से परागण का प्राकृतिक जरिया बाधित हो रहा है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है। सात वर्ष पहले यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में चेतावनी दी थी कि मधुमक्खियों के खत्म होने से परागण की प्रक्रिया थम जाएगी और इसका परिणाम पेड़-पौधे घटने तथा मानव जीवन प्रभावित होने के रूप में सामने आएगा।

भविष्य में और बढ़ेगी यह समस्या

इस प्रकार, कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल हमारे लिए लगातार न जाने कितनी समस्याएं पैदा कर रहा है। अगर हम जल्द नहीं चेते, तो भविष्य में यह समस्या और बढ़ेगी। हमें धीरे-धीरे रासायनिक खेती छोड़ कर प्राकृतिक खेती की ओर लौटना ही होगा। किसानों को खेती में रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाना होगा। लोगों को स्थानीय और जैविक कृषि उत्पादों को प्राथमिकता देनी चाहिए। ये उत्पाद कीटनाशक रसायनों के कम संपर्क में होते हैं। हम अगर जैविक कृषि उत्पादों को ज्यादा महत्त्व देंगे, तो अधिकाधिक किसान ऐसे उत्पादों की खेती की ओर उन्मुख होंगे। इससे रासायनिक कीटनाशकों और खादों का इस्तेमाल घटेगा।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कीटनाशकों के बजाय जैविक तरीके अपनाने से पर्यावरण को नुकसान कम होगा। जैविक कीटनाशकों से नुकसान कम होगा और मित्र कीट बचे रहेंगे। फसल विविधता अपना कर विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती करने से कीटों और बीमारियों के फैलाव को नियंत्रित किया जा सकता है। कीटों को खत्म करने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के बजाय ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए, जिससे कीटों के प्राकृतिक शत्रु पनप सकें। जिस गोबर खाद को हमने भुला दिया है, वह इस समस्या का एक बड़ा हल है। गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल करना बंद किया, तो घरों, खेतों में पालतू पशुओं की तादाद घट गई। हमने हजारों-लाखों पशु बेसहारा छोड़ दिए हैं, जो सड़कों पर दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। अगर ये पशु घर के खूंटे से बंधे होते तो प्राकृतिक खाद का जरिया बनते।

प्रकृति से तालमेल पर आधारित करें खेती

हमने अपनी जड़ों से कट कर मुसीबतों को न्योता दिया है। हम नए से जुड़ने की चाहत में पुराने की उपयोगिता को भुला बैठे हैं। उचित यही है अपने मूल की ओर लौट चलें। वर्तमान में प्राकृतिक खेती से जुड़े उपाय ही बेहतर विकल्प हैं, जिन्हें अपनाकर जहां कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है, वहीं एक स्थिर और स्वस्थ कृषि प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ पाना भी मुमकिन है। प्रकृति से तालमेल पर आधारित यह एक ऐसी कृषि प्रणाली होगी, जिसमें न कैंसर का डर होगा और न ही अन्य बीमारियों के चपेट में आने का भय। खेती की लागत घटेगी, किसान खुशहाल होंगे और हमारा पर्यावरण साफ-सुथरा होगा।

राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के एक अध्ययन में बताया गया है कि देश में सर्वाधिक 1250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक पंजाब में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इसके बाद 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक हरियाणा में उपयोग होते हैं। कीटनाशकों के इस्तेमाल में कपास और धान उपजाने वाला तेलंगाना अब पंजाब और हरियाणा के साथ होड़ कर रहा है, जहां 900 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक छिड़के जा रहे हैं। कीटनाशकों के साथ रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी बहुतायत में हो रहा है।