दीपावली पर अनुमति से ज्यादा बिना अनुमति के लगने वाले बाजारों से राजधानी में चौतरफा जाम दिख रहे हैं। कनाट प्लेस के जनपथ, पालिका बाजार से लेकर दिल्ली के सभी भीड़भाड़ वाले बाजारों में पुलिस और नगर निगम की मिलीभगत से लगने वाली इस तरह की दुकानें कमोवेश सड़क पर ही लगाई जाती हैं।
लाजपतनगर, सरोजनीनगर, चांदनी चौक, पुरानी दिल्ली, महरौली, छतरपुर, जमनापार के विकास मार्ग, गीता कालोनी, झील खुरेजी, कृष्णानगर, पांडवनगर, शाहदरा, विश्वासनगर, मयूर विहार, पटपड़गंज से लेकर रोहिणी, पीतमपुरा, पालम, मंगलापुरी, कीर्तिनगर, राजौरी गार्डन, करोलबाग, उत्तमनगर, राजापुरी और झंडेवालान में भीड़ का नजारा देखा गया। इस भीड़ में सुरक्षा व्यवस्था की खुलेआम अवहेलना हुई। कुछ बाजारों में देखने के लिए मेटल डिटेक्टर तो लगाए गए थे पर लोगों को उसके बगल होकर आते जाते देखा जा सकता था। जगह-जगह पीसीआर की गाड़ियां लगी जरूर थीं पर वे अपनी रोजाना ड्यूटी और सौ नंबर के काल की प्रतीक्षा के अलावा भीड़ से बगलें झांकती रहीं।
साल 2005 में दीपावली की पूर्वसंध्या पर राजधानी में हुए सीरियल धमाके ने दिल्ली पुलिस की पुख्ता सुरक्षा बंदोबस्त के दावे की धज्जियां उड़ा दी थी। पहाड़गंज, सरोजनीनगर मार्केट और गोविंदपुरी में घंटे भर के अंदर ही करीब 50 लोगों की जानें गई थी और डेढ़ सौ लोग घायल हो गए थे। आतंकवादियों ने भीड़ का फायदा उठाते हुए इन तीनों जगहों को निशाना बनाया था। दिल्ली में यह कोई पहला विस्फोट नहीं था। उसके पहले और उसके बाद भी कई विस्फोटों से दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगे हैं। त्योहारों के मौके पर भीड़ भाड़ वाले बाजारों में जिस तरह सुरक्षा व्यवस्था के मानकों का खुलेआम उल्लंघन होता है, उसी का फायदा उठाते हुए आंतकवादी अपनी योजना को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं।
राजधानी में दीपावली और होली पर वैध से ज्यादा अवैध दुकानें सड़कें पर लगती हैं। यही नजारा इस साल भी देखा जा रहा है। तमाम बंदोबस्त, एहतियात और सावधानियों के बाबजूद दिल्ली में खुलेआम पटाखे बिकते दिख रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनकर देख रही है। पुलिस बाजार के आसपास अपनी गाड़ियां लगाकर शिकायत की प्रतीक्षा करती है ताकि ऐसे दुकानदारों पर कानूनी कार्रवाई की औपचारिकताएं पूरी की जा सके। उनका तर्क होता है कि जब तक शिकायत नहीं मिलती, आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हो सकती। पर पुलिस के पास इस बात का जवाब नहीं होता कि जब कोई अनहोनी होती है तो क्या वह शिकायत की प्रतीक्षा करती है? जब उनकी आंखों के सामने वैध और अवैध दुकानों फर्क दिखता है तो कार्रवाई क्यों नहीं हो सकती?
रविवार को दिल्ली के कमोवेश सभी इलाके में भीड़ से जाम की स्थिति बनी रही तो सोमवार को धनतेरस पर लोगों ने भीड़ में ही खरीदारी की। दिल्ली के इस कोने से उस कोने तक भीड़ का नजारा देर रात तक देखा गया। महिलाओं की संख्या ज्यादा देखी गई। लोगों ने पार्किंग व्यवस्था को दरकिनार किया और जहां जगह मिली वहीं गाड़ी खड़ी कर दी। कई इलाकों में दीपावली बाजार और दीपावली मेले का भी आयोजन किया गया पर कोई भी आयोजक यह बताने को तैयार नहीं हुआ कि इस मेले या बाजार की इजाजत कहां से ली गई। जाम की हालत ऐसी थी कि शाम ढलते ही लोगों की गाड़ियां पों-पों करती सड़क पर रेंगनी शुरू हो गईं। दुपिहया वाले तो रास्ता बदलकर किसी तरह गंतव्य पर पहुंच गए पर कार वालों के पास जाम में फंसे रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। इसका असर मुख्य सड़कों पर रहा और रिंग रोड, बाहरी रिंग रोड और आठ लेन की आम सड़कें भी गाड़ियां से खचाखच भरी रहीं।