सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से पेगासस मामले की जांच के लिए गठित न्यायिक जांच आयोग की जांच कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रोक लगा दी। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने आयोग द्वारा कार्यवाही जारी रखने पर नाखुशी जताई। दरअसल, इस मामले की स्वतंत्र जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने खुद एक स्वतंत्र समिति का गठन किया है।
शुक्रवार को मामले की सुनवाई शुरू हुई तो याचिकाकर्ता स्वयंसेवी संगठन ग्लोबल विलेज फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि वे पश्चिम बंगाल आयोग की कार्यवाही को चुनौती दे रहे हैं। इस पर न्यायमूर्ति रमण ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि उनके द्वारा दिए गए मौखिक वचन का क्या हुआ।
सिंघवी ने पीठ को वचन दिया था कि राज्य सरकार मामले को आगे नहीं बढ़ाएगी। मुख्य न्यायाधीश ने सिंघवी से पूछा कि पिछली बार आपने अंडरटेकिंग दी थी। हम रिकार्ड करना चाहते थे, पर आपने कहा कि रिकार्ड मत करो। फिर से आपने जांच शुरू कर दी। सिंघवी ने जवाब दिया कि राज्य सरकार आयोग को नियंत्रित नहीं कर सकती। इस पर न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि हम राज्य की स्थिति को समझते हैं।
सभी पक्षों को नोटिस जारी करें। हम कार्यवाही पर रोक लगाते हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता को मामले में आयोग के सचिव को पक्षकार बनाने की अनुमति दी। गुरुवार को याचिकाकर्ता एनजीओ ने सुनवाई के लिए मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था, जिसमें कहा गया था कि पश्चिम बंगाल आयोग जांच के साथ आगे बढ़ रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। मामले का जिक्र करते हुए वकील ने कहा था कि पश्चिम बंगाल ने कहा था कि समिति सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आयोग के समांतर काम नहीं करेगी।
रोना विल्सन के फोन में था पेगासस स्पाइवेयर : फोरेंसिक विश्लेषण
एक नए फोरेंसिक विश्लेषण में कहा गया है कि रोना विल्सन की एलगार परिषद मामले में गिरफ्तारी के एक साल पहले उनके स्मार्टफोन में एनएसओ ग्रुप का पेगासस स्पाइवेयर मौजूद था। विश्लेषण के अनुसार कैदियों के अधिकार संबंधी कार्यकर्ता विल्सन जून 2018 में अपनी गिरफ्तारी से करीब एक साल पहले ‘निगरानी और आपत्तिजनक दस्तावेज आपूर्ति’ का शिकार थे। डिजिटल फोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग ने कहा कि विल्सन के एप्पल फोन को इजराइली एनएसओ ग्रुप के एक ग्राहक द्वारा निगरानी के लिए चुना गया था।
पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के राष्ट्रीय महासचिव वी सुरेश ने कहा कि नए निष्कर्ष मामले में पुख्ता सबूत प्रकट करते हैं। उन्होंने कहा कि अब ठोस सबूत हैं। हम नए प्रकार के इलेक्ट्रानिक साक्ष्य के आधार पर इन निष्कर्षों को प्रमाणित करने के लिए सभी कानूनी संभावनाएं तलाश रहे हैं।
पीयूसीएल और मुंबई राइजिंग टू सेव डेमोक्रेसी ने एक बयान में कहा कि नई फोरेंसिक रिपोर्ट पुष्टि करती है कि भीमा कोरेगांव मामले में मुख्य आरोपी रोना विल्सन पर एक साल से अधिक समय तक पेगासस द्वारा हमला किया गया था। बयान के अनुसार यह बात खासतौर पर उल्लेखनीय है, क्योंकि आर्सेनल की पहले की रिपोर्ट यह दिखा चुकी है कि विल्सन के कंप्यूटर को 13 जून 2016 से 17 अप्रैल 2018 के बीच नेटवायर रिमोट ऐक्सेस ट्रोजन (आरएटी) के जरिए हैक किया गया था और उनके कंप्यूटर में फाइलें डाली गई थीं। बयान में कहा गया है कि यही काम एक अन्य आरोपी सुरेंद्र गडलिंग के कंप्यूटर के साथ किया गया था। आर्सेनल ने यह भी पुष्टि की है कि विल्सन और गडलिंग में से किसी ने भी इन फाइलों को कभी नहीं खोला था।
पीयूसीएल ने आरोप लगाया कि विल्सन के आइफोन पर पहला पेगासस हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजराइल दौरे के दूसरे दिन हुआ था, जहां पेगासस बनाने वाली एनएसओ ग्रुप कंपनी का मुख्यालय है। क्या यह महज एक संयोग था? पीयूसीएल ने सवाल किया कि एनएसओ ने बार-बार यह बात दोहराई है कि वह सिर्फ सरकारों को ही पेगासस बेचता है और इसकी सभी बिक्री इजराइली सरकार की मंजूरी से संपन्न होती है। सरकार ने इन सवालों पर सोची-समझी चुप्पी क्यों साध रखी है?
बयान के मुताबिक, यह सब इस बात के ‘बेहतरीन दस्तावेजी सबूत हैं कि किस तरह साइबर अपराध भारत की अपराध न्याय प्रणाली को और यहां के नागरिकों के अधिकारों को कमजोर कर रहे हैं।’ पीयूसीएल ने कहा कि इस बात के पुख्ता सबूत मिल जाने के बाद कि ऐसे कई नागरिकों पर नेटवेअर और पेगासस द्वारा हमला किया गया था, अब यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति इन दोनों हमलों के बीच संबंधों और भीमा-कोरेगांव मामले के लिए इसके निहित नतीजों की पड़ताल करे।
आर्सेनल की चारों रिपोर्टों को एक साथ देखने के बाद इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है कि भीमा-कोरेगांव मामले का कोई आधार नहीं है। कम से कम सभी आरोपियों को तत्काल जमानत दी जानी चाहिए।