पेगासस जासूसी मामला जैसे-जैसे बढ़ रहा है, उस पर विवाद भी गहराता जा रहा है। इस पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई भी शुरू हो गई है। गुरुवार को उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योतिर्मय भट्टाचार्य सहित जांच आयोग ने सभी प्रमुख समाचार पत्रों में एक सार्वजनिक नोटिस जारी कर जनता और संबंधित हितधारकों से पेगासस स्पाइवेयर कांड संबंधित आरोपों के बारे में जानकारी मांगी। आयोग का गठन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 26 जुलाई को किया था।

उधर, उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान अधिवक्ता एमएल शर्मा को उस जनहित याचिका के लिए फटकार लगाई, जिसमें उन्होंने पेगासस जासूसी मामले की जांच की मांग की थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ के समक्ष पेगासस मुद्दे पर नौ याचिकाओं को सूचीबद्ध किया गया है। जैसे ही पीठ ने मामलों को उठाया, शर्मा ने पहले यह कहते हुए प्रस्तुतियां देने की मांग की कि उनका मामला लिस्ट में सबसे पहले सूचीबद्ध है। सीजेआई ने शर्मा से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को पहले बहस करने देने के लिए कहा।

कोर्ट ने कहा, “शर्मा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपने पहले रिट याचिका दायर की है। सिब्बल को मामले का नेतृत्व करने दें। वह आखिरकार एक वरिष्ठ वकील हैं।” एडवोकेट शर्मा ने जवाब दिया कि उनकी याचिका में अलग-अलग मुद्दे उठाए गए हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सीजेआई का समर्थन करते हुए कहा कि शर्मा सीबीआई को शिकायत भेजने के अगले ही दिन अदालत पहुंचे। पीठ ने यह भी कहा कि वह शर्मा की याचिका पर नोटिस जारी नहीं कर सकती, क्योंकि उन्होंने कुछ लोगों को प्रतिवादी बनाया है। उनकी याचिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी व्यक्तिगत क्षमता में पहले प्रतिवादी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। सीजेआई ने एडवोकेट शर्मा से कहा कि, “शर्मा, आपकी याचिका में समस्या यह है कि आपने व्यक्तिगत व्यक्तियों आदि को जोड़ा है। मैं सीधे नोटिस जारी नहीं कर सकता।”