केंद्र सरकार ने हाल ही में यह घोषणा की है कि आने वाली जातिगत जनगणना में पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की श्रेणी में गिना जाएगा। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने यह जानकारी दी है। बीजेपी की अल्पसंख्यक मोर्चा और ओबीसी मोर्चा के नेताओं ने भी इसकी पुष्टि की है।
अब तक सभी जनगणनाओं में मुसलमानों को एक ही वर्ग में रखा जाता रहा है
बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. लक्ष्मण ने कहा कि मंडल कमीशन की सिफारिशों के अनुसार कुछ मुस्लिम जातियां पहले से ही राज्यों और केंद्र की पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल हैं। अब इन मुसलमानों को जातिगत जनगणना में ओबीसी के रूप में गिना जाएगा। वहीं, बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी ने कहा कि पसमांदा मुसलमान भी इस देश के नागरिक हैं और उन्हें उनकी सामाजिक स्थिति के अनुसार गिना जाएगा।
अब तक सरकार की ओर से की गई सभी जनगणनाओं में, जैसे कि 2011 की जनगणना, में मुसलमानों को एक ही समूह के रूप में शामिल किया जाता रहा है। लेकिन इस बार पसमांदा मुसलमानों को अलग से ओबीसी वर्ग में गिनने का फैसला खास माना जा रहा है। इस कदम को बीजेपी द्वारा अल्पसंख्यकों के प्रति नजरिए में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, खासकर जब खुद प्रधानमंत्री मोदी पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच बनाने की बात कर चुके हैं।
‘पसमांदा’ शब्द फारसी भाषा का है, जिसका मतलब होता है ‘पीछे छूटे हुए लोग’। यह शब्द मुस्लिम समाज की उन जातियों के लिए इस्तेमाल होता है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई हैं। सच्चर समिति की रिपोर्ट (2004-05) के अनुसार भारत में मुसलमानों में लगभग 40% लोग ओबीसी या एससी/एसटी वर्ग से आते हैं। लेकिन पसमांदा कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह आंकड़ा 80-85% तक है।
1871 की जनगणना के अनुसार भी 81% मुसलमान निचली जातियों से थे और केवल 19% मुसलमान उच्च जातियों से थे। तेलंगाना और बिहार की हालिया जातिगत सर्वे में भी पसमांदा मुसलमानों की संख्या क्रमशः 81% और 73% पाई गई है। बीजेपी नेता के. लक्ष्मण ने कहा कि जातिगत गणना को तेलंगाना की तरह ‘जल्दबाजी’ में नहीं करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार का सर्वे बेहतर उदाहरण है।
एक पसमांदा मुस्लिम कार्यकर्ता ने कहा कि सभी मुसलमानों को एक ही श्रेणी में गिनना उचित नहीं है, क्योंकि अशराफ (ऊंची जाति) और पसमांदा (पिछड़ी जाति) मुसलमानों की सामाजिक स्थिति बहुत अलग है। इसलिए जातिगत जनगणना से यह भेद साफ हो सकेगा।
हालांकि, कुछ नेताओं जैसे अली अनवर अंसारी ने कहा कि केवल गिनती करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि पसमांदा मुसलमानों को सामाजिक और आर्थिक मदद की भी जरूरत है। उन्होंने दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति (SC) सूची में शामिल करने की मांग की। वहीं, IUML सांसद हारिस बीरन ने इस फैसले को मुस्लिम समुदाय को बांटने की कोशिश बताया और कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट भी मुसलमानों को पिछड़ा मानता है, तो उन्हें एकजुट तरीके से ही मदद मिलनी चाहिए।