देश में होने वाले विधानसभा चुनावों में हफ्तों और महीनों चुनाव के संचालन पर भारी खर्च होने के बाद कई राज्यों में एक साल में मुश्किल से 30 दिन विधानसभा बैठती हैं। ये आंकड़े खुद में हैरान करते हैं। इसमें हरियाणा और पंजाब जैसे कुछ क्षेत्रों में, औसत लगभग एक पखवाड़े का है। वहीं अगर पिछले एक दशक में एक साल में विधानसभा बैठने में सबसे अधिक औसत देखें तो ओडिशा में 46 और केरल 43 है। हालांकि ये राज्य भी लोकसभा के 63 के औसत से बहुत कम हैं।

उदाहरण के लिए, यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स, 2020 में 163 दिनों और 2021 में 166 दिनों के लिए और सीनेट में दोनों सालों में 192 दिनों के लिए था। वहीं यूके हाउस ऑफ कॉमन्स की 2020 में 147 बैठकें हुईं, जो पिछले दशक में लगभग 155 के वार्षिक औसत के अनुरूप थी। जापान की डाइट, या हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की बात करें तो किसी भी असाधारण या विशेष सत्र के अलावा साल में 150 दिन मिलते हैं।

वहीं कनाडा में हाउस ऑफ कॉमन्स की इस साल 127 दिन बैठकें होनी है और जर्मनी के बुंडेस्टैग, जहां सदस्यों के लिए बैठक के दिनों में उपस्थित होना अनिवार्य है, वहां इस साल 104 दिनों की बैठक होनी है।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट में 19 विधानसभाओं की बैठकों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। विश्लेषण किए गए लगभग सभी राज्यों में, सबसे कम बैठकों की संख्या 2020 या 2021 में थी।

वहीं कोरोना महामारी के दो वर्षों में हरियाणा को छोड़कर सबसे कम 11 बैठकें 2010, 2011, 2012 और 2014 में हुई थीं। लोकसभा के मामले में देखें तो सबसे अधिक संख्या 85 दिन रही जो 2000 और 2005 में थी और सबसे कम संख्या 2020 में 33 थी।

कुछ राज्य विधानसभाओं की वेबसाइटें राज्य के गठन के साल का डेटा उपलब्ध कराती हैं। जबकि कई के पास केवल एक दशक या उससे कम समय का डेटा है। जिन राज्यों में शुरू का डेटा है, वहां हर साल बैठकों की औसत संख्या धीरे-धीरे कम होती दिख रही है।

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में 1960 से अस्सी के दशक के मध्य तक 47 दिनों का औसत गिरकर लगभग 30 दिन रह गया और अब यह केवल 22 दिन है। ऐसे ही तमिलनाडु में, 1955 से 1975 तक, सालाना बैठकों का औसत लगभग 56 दिन था। जोकि 1975-1999 की अवधि में घटकर 51 दिन हो गया। इसके अलावा 2000 के बाद यह हर साल 37 दिन है।

राज्यऔसतन दिन सालाना बैठक(2012-2021)2021
पंजाब14.511
हरियाणा14.817
दिल्ली16.78
आंध्र प्रदेश21.58
गोवा22.213
तेलंगाना22.316
झारखंड22.726
उत्तर प्रदेश2314
राजस्थान27.226
गुजरात31.2NA
छत्तीसगढ़31.333
तमिलनाडु327
बिहार33.732
पश्चिम बंगाल34.319
मध्य प्रदेश35.833
महाराष्ट्र37.115
कर्नाटक38.440
केरल42.711
ओडिशा4652
लोकसभा62.9

यही पंजाब का हाल देखें तो 1966 में राज्य के गठन के बाद बैठकों की संख्या कम रही है। 1967 में सबसे अधिक 42 बैठकें हुईं। 1971, 1985 और 2021 में केवल 11 बैठकें हुईं। जोकि सबसे सबसे कम थी। पिछले दशक में बैठकों का औसत सिर्फ 15 रहा।

हालांकि विधायकों या मंत्रियों के कार्य को विधानसभा में उपस्थित होने से ही नहीं आंका जा सकता है। क्योंकि सत्र में बैठने के अलावा और भी जरूरी कार्यों में उनकी संलिप्तता होती। खासकर तब और जब वो मंत्री हों। लेकिन विधायी कार्य के लिए बैठक के दिनों की बेहद कम संख्या यह सवाल उठाती है कि क्या कार्यपालिका की निगरानी जैसे बुनियादी कार्यों के लिए पर्याप्त समय दिया दिया जा रहा है।

संसदीय कार्यवाही पर खर्च: बता दें कि संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच जमकर हंगामा भी देखने को मिलता है। ऐसे में सदन की कार्यवाही बाधित रहती है। ऐसे में संसद सत्र ठीक से ना चलने पर आर्थिक नुकसान भी देश को होता है। सदन में कार्यवाही के एक मिनट पर लगभग 2.6 लाख रुपये का खर्त आता है।

गौरतलब है कि साल 2014 के बाद सबसे कम काम 2016 के शीतकालीन सत्र में हुआ था। हर सत्र में लगभग 18 या 20 दिन संसद की कार्यवाही चलती है। वहीं राज्यसभा में हर दिन पांच घंटे का और लोकसभा में छह घंटे का काम होता है।