सीबीएसई ने 2022-23 का शैक्षणिक पाठ्यक्रम गुरुवार को जारी किया गया था, जिसमें से फैज की दो नज्मों को बाहर रख दिया गया है। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से सीबीएसई के छात्रों ने एनसीईआरटी की कक्षा 10 की पाठ्यपुस्तक ‘डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स II’ के ‘धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति – सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्ष राज्य’ खंड में फैज़ अहमद फैज़ द्वारा उर्दू में इन कविताओं के नज्मों को पढ़ा है। लेकिन अब इसे पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है।

नए पाठ्यक्रम में बताया गया कि पेज नंबर 46, 48, 49 पर फोटो को छोड़कर धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति पर खंड पाठ्यक्रम सामग्री का हिस्सा बना रहेगा। इन तीनों पृष्ठ में दो पर पोस्टर बने हैं जबकि एक पर राजनीतिक कार्टून बना है। केवल दो पोस्टर और कार्टून ही ऐसे चित्र हैं जिन्हें पाठ्यक्रम सामग्री से बाहर रखा गया है। सीबीएसई ने इसके सम्बन्ध में इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब नहीं दिया।

वेब पोर्टल रेख़्ता के अनुसार जिस कविता से ये छंद लिए गए थे, उसकी रचना फैज अहमद फैज ने तब की थी जब उन्हें लाहौर की एक जेल से जंजीरों में जकड़ कर एक दंत चिकित्सक के कार्यालय में एक तांगे में ले जाया जा रहा था, जो उनसे परिचित थे।

फ़ैज़ के छंदों के साथ दो पोस्टरों में से एक पोस्टर एनजीओ अनहद द्वारा जारी किया गया था, जिसके सह-संस्थापकों में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी और हर्ष मंदर शामिल हैं। वहीं दूसरे पोस्टर में फैज़ की अन्य कविताओं के अंशों के साथ Voluntary Health Association of India द्वारा जारी किया गया था, जो खुद को 27 राज्य संघों के एक संघ के रूप में वर्णित करता है। रेख़्ता ने बताया कि फ़ैज़ ने यह कविता 1974 में ढाका की अपनी यात्रा के बाद लिखी थी।

वहीं जिस कार्टून को हटाया गया है वो अजीत निनन का कार्टून है, जिसे टाइम्स ऑफ इंडिया से लिया गया है। इस कार्टून में धार्मिक प्रतीकों से सजी हुई एक खाली कुर्सी को दर्शाया गया है, जिसके साथ कैप्शन लिखा गया है कि, “यह कुर्सी मनोनीत मुख्यमंत्री के लिए अपनी धर्मनिरपेक्ष साख साबित करने के लिए है, बहुत कुछ होगा।”