Pahalgam Attacks: पीर पंजाल पर्वत की गोद में पहलगाम के पास एक घास के मैदान बैसरन में 26 टूरिस्टों की हत्या कर दी गई। पांचों आतंकियों के बारे में कहा जा रहा है कि वह आसपास के जंगलों में भाग गए। यह काफी बड़े भूभाग में फैला हुआ है। इसकी वजह से सुरक्षाबलों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच 3,300 किलोमीटर से ज्यादा लंबा बॉर्डर है। इसमें लगभग 1,000 किलोमीटर जम्मू और कश्मीर में मौजूद है।

पीर पंजाल रेंज के ऊपरी इलाकों में घने जंगल हैं। यहां से लोगों को बचने के लिए कई रास्ते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इन जंगलों में विजिबिलिटी इतनी कम है कि 100 मीटर दूर भी किसी भी हलचल को देख पाना मुश्किल है। इन इलाकों में संदिग्धों को ट्रैक करने के लिए मजबूत तकनीकी और हयूमन इंटेलिजेंस सपोर्ट की जरूरत होती है। पिछले कुछ सालों में इन जंगलों में आतंकियों का पीछा करते हुए सशस्त्र बलों को काफी मुश्किल उठानी पड़ी है। पुंछ, राजौरी, कठुआ और डोडा क्षेत्रों में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में 50 से ज्यादा सैन्यकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं।

जंगलों में छिपकर काम करते हैं आतंकी

पाकिस्तान ट्रेंड आतंकियों को जम्मू क्षेत्र में भेजता है। वह छिपकर काम करते हैं और जंगलों में रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि पहलगाम के आतंकी इसी तरह के थे। हमलावरों में से कम से कम तीन पाकिस्तान से होने का शक है। एक वरिष्ठ सिक्योरिटी ऑफिसर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘एक बार आतंकी अंदर आ जाए तो उसे पकड़ना आसान नहीं होता। इसलिए विचार यह होना चाहिए कि उसे पहले ही घुसने न दिया जाए।’

यही वजह है कि एक मजबूत और मुश्किल से पार की जाने वाली बाड़, एक मजबूत इंटेलिजेंस नेटवर्क और ट्रेंड बॉर्डर गॉर्डिंग मैनपावर समय की मांग है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि घाटी में आतंकियों की भर्ती अब तक की सबसे कम है। जनवरी में आर्मी चीफ उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि 2024 में जम्मू-कश्मीर में काउंटर टेरर ऑपरेशन में मारे गए 73 आतंकियों में से 60 पर्सेंट पाकिस्तान से थे। इंटेलिजेंस ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2002 में घुसपैठ के आधे से ज्यादा प्रयास सफल रहे। 2010 तक केवल पांचवां प्रयास (247 में से 52) ही सफल हुए। जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, ’90 के दशक में घुसपैठ की संख्या हजारों में होती थी। अब यह घटकर 50 से 100 के बीच रह गई है।’

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बाड़ की स्थिति

भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर लगभग पूरी तरह से बाड़बंदी की गई है। 2014 से इस बाड़बंदी को और ज्यादा मजबूत बनाने और टेक्नोलॉजिकल साल्यूशन के साथ जम्मू क्षेत्र में नदी के किनारों की खाई को पाटने के लिए कोशिश की जा रही है। 2016 के पठानकोट हमले के बाद शुरू की गई CIBMS परियोजना से इसे बहुत बढ़ावा मिला। CIBMS में ज्यादा सर्विलांस टेक्निक शामिल हैं। इसमें थर्मल इमेजर, इन्फ्रा-रेड और लेजर-बेस्ड इंट्रडर अलार्म, अनअटेंडेड ग्राउंड सेंसर, रडार, फाइबर-ऑप्टिक सेंसर हैं।

अक्टूबर 2016 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की थी कि दिसंबर 2018 तक भारत-पाकिस्तान बॉर्डर को सील कर दिया जाएगा। दिसंबर 2023 तक काम अभी भी पेंडिंग होने की वजह से गृह मंत्री अमित शाह ने समय सीमा को दिसंबर 2025 कर दिया। सीआईबीएमएस प्रोजेक्ट की स्पीड कई बार कम रही हैं। पठानकोट हमलों के बाद गृह मंत्रालय की बैठकों में दिए गए कुछ सुझाव काफी अजीब थे।

मौसम और बाकी चुनौतियां

नदी के किनारों को भरने के अलावा, लाइन ऑफ कंट्रोल पर बाड़ लगाना और बॉर्डर सिक्योरिटी कई चुनौतियां पेश करती हैं। सर्दियों के दौरान एलओसी पर भारी बर्फबारी होती है। बर्फ 15 फीट ऊंची तक जमा हो सकती है। इसकी वजह से हर साल बॉर्डर पर लगी लगभग एक तिहाई बाड़ें तबाह हो जाती हैं। इंडियन आर्मी के लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा (Retd.) ने कहा कि इस प्रोसेस में लगने वाला वक्त काफी गैप पैदा कर देता है। इसका आतंकी फायदा उठाते हैं। हालांकि, दिन के आखिर में आतंकी तीन लेयर वाली बाड़ को भी काट कर निकल जाते हैं। इसका मतलब है कि घुसपैठ को केवल सतर्क कर्मियों द्वारा ही रोका जा सकता है।

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2016 में रिटायर हुए हुड्डा ने कहा, ‘एलओसी पर बहुत सारे जवान तैनात हैं। लेकिन सर्दियों में तापमान जीरो से नीचे चला जाता है। कोहरा और बारिश सतर्कता पर असर डालती हैं। कभी-कभी, हम तीन दिनों में एक सैनिक को पूरी रात की नींद देने के लिए संघर्ष करते थे।’ तकनीक की भी अपनी सीमाएं हैं। उन्होंने कहा कि नाइट विजन डिवाइस जैसे गैजेट की भी एक उम्र होती है। वे 12 घंटे तक नहीं चलते और कई जगहों पर तो उन्हें चार्ज करने के लिए बिजली भी नहीं होती।

हमें स्मॉर्ट बाड़ की जरूरत

सूत्रों ने इंडियन एक्प्रेस को बताया कि सरकार को ऐसी बाड़ें बनानी चाहिए जो भारी बर्फबारी का सामना कर सकें। उन्होंने कहा कि हमें एक स्मार्ट बाड़ की जरूरत है। हम जिस डिजाइन पर विचार कर रहे हैं, उसमें एक सेंसर शामिल है जो बाड़ कटते ही पास वाले कमांड सेंटर को मैसेज भेजता है। इस सब से जुड़ी एक लागत है। लेकिन यह इसके लायक है।