साल 1921 में पाकिस्तान के अत्याचार से परेशान होकर भारत आए 20 साल के सैनिक को देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान से नवाजा गया है। लेफ्टिनेंट कर्नल क़ाजी सज्जाद को जब महामहिम राष्ट्रपति ने यह सम्मान दिया तो सभागार तालियों से गूंज उठा। काजी सज्जाद को 1971 के युद्ध के नायक के तौर पर जाना जाता है। आज भी पाकिस्तान उनकी तलाश कर रहा है। उनके खिलाफ सजा-ए-मौत का वारंट जारी हुए 50 साल हो गए हैं।
काजी सज्जाद अली जहीर सियालकोट सेक्टर में तैनात एक युवा सैन्य अधिकारी थे। हालांकि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में की जा रही क्रूरता और नरसंहार को वह देख न सके। इसके बाद उन्होंने उस क्षेत्र को पाकिस्तान से मुक्त कराने की ठान ली और भागकर भारत आ गए। बताया जाता है कि जब उन्होंने सरहद पार की तो उनके पास मात्र 20 रुपये थे।
भारत में आने के बाद उनपर जासूस होने का शक किया गया। भारतीय सेना ने उन्हें पकड़ लिया और पूछताछ की। जब उन्होंने सारी कहानी बताई तो भारतीय सेना ने भी उनपर विश्वास किया। बाद में उन्होंने युद्ध लड़ने में भारतीय सेना की मदद की। बांग्लादेश सरकार ने भी उन्हें अपने सबसे बड़े नागरिक सम्मान से नवाजा।
अब क़ाजी सज्जाद को भारत ने भी अपने बड़े नागरिक सम्मानों में से एक से नवाजा है। खास बात यह है कि इसी साल बांग्लादेश की स्वतंत्रता को 50 साल भी पूरे हुए हैं। वहीं सज्जाद अब 71 साल के हो गए हैं। पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आने के बाद क़ाजी सज्जाद ने कहा था, ‘जिन्ना का पाकिस्तान हमारे लिए कब्रिस्तान बन गया है। हमारे साथ वहां पर दुर्व्यवहार होता है। जिस लोकतंत्र का वादा किया गया था, वह हमें कभी नहीं मिला। हमें केवल सैन्य कानून मिले हैं। हमें बराबर अधिकार देने की बात कही गई थी लेकिन एक भी अधिकार नहीं दिए गए। हमें केवल नौकर समझा जाता है।’
लेफ्टिनेंट कर्नल सज्जाद (रिटायर्ड) बताते हैं कि उनके पिता ब्रिटिश आर्मी में थे और दूसरे विश्वयुद्ध में बर्मा में युद्ध लड़े थे। इसके अलावा उनका भाई भी मुक्ति वाहिनी सेना में शामिल था और बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए लड़ा था।