हम सोचते थे कि आइटी, सीबीआइ, ईडी, एसएफआइओ, एनसीबी, एनआइए वगैरह जैसे वर्णों का शोरबा यानी सूप ही हमारे सामने है। जब भी दो लोग चाय या काफी पर साथ बैठते थे तो अक्सर ये सवाल पूछे जाते थे कि- बड़ा भाई कौन है? सबसे आगे कौन है? घुसपैठिया कौन है? कौन अधिक ताकतवर है? सत्ताओं का पसंदीदा कौन है? पर जैसे ही तीन या इससे अधिक लोग होते, तो सारे चुप्पी साध जाते थे।

यह कुछ उसी तरह का होता था, मानो सामूहिक चुप्पी का संकेत (ओमेर्टा) जारी हो गया हो। इन सारे सवालों पर विराम लगाने के लिए, मेरा सुझाव था कि हर मतदान केंद्र में एक ईवीएम रखवा दी जाए, सभी उम्मीदवार-एजंसियों की सूची बनाई जाए और लोगों से कहा जाए कि वे अपनी पसंदीदा एजंसी को वोट दें। पचासी वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति अपने घर से मतदान कर सकते हैं… कोई ‘नोटा’ विकल्प नहीं होगा।

इस शोरबा संग्राम में एक नया व्यंजन शामिल हो गया- सीएए-एनआरसी। (एनआरसी का मकसद राष्ट्रीय रजिस्टर में सभी नागरिकों की गणना करना था। एक शैतानी प्रक्रिया अपनाई गई। जब देशभक्त लेखकों को लगा कि लाखों हिंदुओं को गणना से वंचित कर दिया गया है, तो उन्होंने सीएए का आविष्कार किया, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुसलमानों को छोड़कर सभी को नागरिकता प्रदान करने और परिणामस्वरूप, एनआरसी में शामिल होने की अनुमति देगा।

इस प्रक्रिया में, श्रीलंका के सताए गए तमिलों और नेपाल तथा म्यांमा के भारतीय मूल के लोगों के हितों के साथ छल किया गया।) एनआरसी केवल असम में उपलब्ध है। सीएए को 11 मार्च, 2024 को ‘मेनू’ में शामिल किया गया। फिलहाल उच्च न्यायालय में एनआरसी-सीएए के नमूने का परीक्षण चल रहा है।

हाल ही में, हमें अहसास हुआ है कि हम एक संख्यात्मक झमेले में फंसे हुए हैं। एक समय था जब हर आदमी को बोर्ड परीक्षाओं में केवल रोल नंबर पता होता था। मगर जल्द ही, बहुत सारी संख्याएं हमारे जीवन में शामिल हो गई। राशन कार्ड नंबर, वोटर आइडी नंबर, दुपहिया या कार पंजीकरण नंबर, लैंडलाइन टेलीफोन नंबर, पासपोर्ट नंबर, सर्वव्यापी मोबाइल नंबर और आधार नामक ईश्वरीय-नंबर, जो सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान है।

अब, सारे नंबरों को मात देने वाला एक नंबर आ गया है- इलेक्टोरल बांड (ईबी) का वर्ण-मिश्रित संख्यात्मक नंबर यानी ‘अल्फा-न्यूमेरिक’ नंबर। यहां तक कि भारत का सर्वशक्तिमान सर्वोच्च न्यायालय भी भयग्रस्त भारतीय रिजर्व बैंक (एसबीआइ) की गिरफ्त वाले अल्फा-न्यूमेरिक नंबरों को नहीं खोल सका। कुछ दिनों तक तो ईबी-एसबीआइ, ईडी-सीबीआइ से भी ताकतवर लग रहा था।

इन दिनों शहर में एक नया ‘गेम’ आया है। गेम के पहले संस्करण को ‘ज्वाइन-द-अल्फाबेट्स’ कहा जाता है। इस खेल की प्रथम विजेता सीबीआइ-ईडी थी। ईडी नाराज था। उसका दावा था कि वही प्रमुख प्रतिभागी है और ईडी-सीबीआइ को विजेता घोषित किया जाना चाहिए। मगर निर्णायक मंडल अभी बाहर है। लोकसभा चुनाव की मतगणना के बाद ही इस पर फैसले की उम्मीद की जा सकती है।

दिल्ली में अफवाह है कि अगर ईडी-सीबीआइ विजेता घोषित की गई तो यह लोकसभा का आखिरी चुनाव हो सकता है और अगर ऐसा हुआ तो चुनाव पर होने वाला सारा खर्च बच जाएगा। कोविंद समिति ने जब ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की सिफारिश की, तो इस भारी बचत को ध्यान में नहीं रखा गया। अगर समिति ने इस बचत को ध्यान में रखा होता, तो उसने ‘एक राष्ट्र, कोई चुनाव नहीं’ की सिफारिश की होती।

सीबीआइ-आइटी भी किसी रूप में सीबीआइ-ईडी या ईडी-सीबीआइ से पीछे नहीं है। अगर सीबीआइ नकदी जब्त करती है तो वह आयकर विभाग (आइटी) की हो जाती है। अगर आइटी ने नकदी जब्त कर ली तो क्या होगा? पारंपरिक ज्ञान तो यही कहता है कि अगर आइटी ने नकदी जब्त की तो वह आइटी की होगी। पर अब, अपरंपरागत ज्ञान ने पारंपरिक ज्ञान को पछाड़ दिया है। अगर आइटी नकदी जब्त करेगी, तो उसके दो दावेदार होंगे: सीबीआइ और ईडी। सीबीआइ का दावा होगा कि यह ‘आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति’ है। ईडी का दावा होगा कि यह ‘अपराध की कमाई’ है। इस मुद्दे पर भी निर्णायक मंडल बाहर है।

‘गेम’ के दूसरे संस्करण को ‘ज्वाइन-द-नंबर्स’ कहा जाता है। 22,217 चुनावी बांडों की ‘अल्फा-न्यूमेरिक’ पहचान जारी करने के लिए एसबीआइ को चार घोड़ों के साथ बांध कर घसीटना पड़ा। जब मैं यह लिख रहा हूं, तो ‘अल्फा-न्यूमेरिक सूप’ परोसा जा चुका है। कई दानदाताओं को यह सूप कड़वा लग सकता है। कुछ दान लेने वाले दलील देंगे कि जब सूप बन रहा था तो वे रसोई में नहीं थे; कुछ अन्य लोग तर्क दे सकते हैं कि सूप उनके गले में जबरदस्ती डाला गया और उन्हें इसे निगलना पड़ा। नतीजतन, इस सूप को ‘स्वास्थ्य के लिए खतरनाक’ मानकर प्रतिबंधित किया जा सकता है।

वर्णमाला, अंकगणित और अल्फा-न्यूमेरिक्स की वजह से पैदा हुआ यह झमेला ऐसा रूप ले चुका है, जो राष्ट्रीय हित और यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है। इसलिए विकसित भारत के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने की सलाह देने के लिए ‘चैट-जीपीटी’ की मदद मांगी गई है: नया लक्ष्य होगा- भारत की जीडीपी को दुनिया में (प्रथम) सबसे बड़ा बनाना; किसानों की आय तीन गुनी करना; प्रति वर्ष पांच करोड़ नौकरियां सृजित करना; और हर भारतीय के बैंक खाते में 150 लाख रुपए डालना।

परेशानी का सबब बनी वर्णमाला, संख्याओं और ‘अल्फा-न्यूमेरिक्स’ को समझने के लिए चैट-जीपीटी के अलावा, ‘एआई’ एक क्रांतिकारी पहचान उपकरण साबित हो सकता है, जो अदृश्य, अश्रव्य, श्वासरोधी और अखाद्य होगा। बहुत सारे सूपों ने देश के अंगों को नुकसान पहुंचाया है, इसलिए माना जा रहा है कि आंख, कान, नाक और जीभ को लंबे समय तक आराम देने की जरूरत है।

नीति-आयोग, जो भारत में सारी खुफिया जानकारी का आधिकारिक भंडार है, उसे ‘एआइ’ के साथ सहयोग करने को कहा जा सकता है। एक पुरानी कहावत है, ‘अंत भला तो सब भला’। पर अब एक नई कहावत है- ‘जैसा आगाज वैसा अंजाम’। सूप की अनेक किस्मों के लिए धन्यवाद। अब हम वापस वहां चलेंगे, जहां 2004 में इसकी शुरुआत हुई थी।अच्छे दिन आने वाले हैं।