सरकार ने विपक्ष की ओर से एकजुट घेराबंदी के चलते संसद के हंगामी मॉनसून सत्र की आशंका को देखते हुए व्यापम घोटाले, ललितगेट, काले धन और सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना सहित विभिन्न मुद्दों पर आक्रामक पलटवार करने की रणनीति बनाई है। संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 13 अगस्त तक चलेगा। इसके एक दिन पहले 20 जुलाई को सर्वदलीय बैठक से पहले ही सरकार संभवत: अपनी रणनीति तैयार कर लेगी।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की 24 जून को हुई पिछली बैठक में तय किया गया कि विवादों को लेकर विपक्ष के हमले का सदन पटल पर जवाब दिया जाएगा और इसी वजह से संसद के मॉनसून सत्र को संक्षिप्त नहीं करने का समझ बूझ कर फैसला किया गया। सत्र की अवधि को कम करने के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर बैठक में चर्चा के बाद महसूस किया गया कि सत्ता पक्ष को बचाव की मुद्रा में नहीं आना चाहिए। यह चर्चा भी हुई कि जरूरत पड़ने पर सत्र की अवधि को एक सप्ताह के लिए बढ़ाया जाए।
सूत्रों ने बताया कि मानसून सत्र के दौरान संभवत: भूमि विधेयक ना आए क्योंकि विधेयक के कई प्रावधानों को लेकर भाजपा के सहयोगी दलों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध संगठनों की आपत्तियों के बाद सरकार असहज स्थिति में है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह पहले ही दृढ़ता से कह चुके हैं कि राजग सरकार के मंत्रियों को इस्तीफा नहीं देना है। इससे संकेत मिलता है कि सरकार दबाव के आगे झुकते नहीं दिखना चाहती इसलिए वह विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह सहित अपने नेताओं का मजबूती से बचाव करेगी।
व्यापम पर शिवराज द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के लिए पत्र लिखने का फैसला विपक्षी हमले को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा है। विपक्षी हमले का जवाब देने के लिए सरकार की ओर से पक्ष रखने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता तर्क दे सकते हैं कि मध्य प्रदेश में पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने अपनी इच्छा से नियुक्तियां कीं और शिवराज सरकार ने 2007 में मनमाना प्रक्रियाओं को समाप्त करने तथा भर्ती के लिए पारदर्शी तंत्र की शुरूआत करने का फैसला किया।
भाजपा नेता ये तर्क भी दे सकते हैं कि शिवराज सरकार के कार्यकाल में की गई साढ़े तीन लाख नियुक्तियों में से केवल 228 शक के घेरे में हैं और उनकी जांच पहले ही शुरू की जा चुकी है। सत्ताधारी पार्टी संभवत: कांग्रेस के इस आरोप पर भी कडा पलटवार करेगी कि शिवराज की पत्नी ने राज्य परिवहन विभाग में गोंदिया (महाराष्ट्र) के अपने 17 रिश्तेदारों को नौकरी दिलवायीं। उन पर विपक्षी दल लगातार हमले बोल रहे हैं।
शिवराज का कहना है कि उन्होंने ही प्रवेश और भर्ती में अनियमितताओं की जांच के लिए 2009 में समिति का गठन किया। समिति ने 2011 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी। मध्य प्रदेश सरकार ने ही घोटाले की जांच के लिए 2012 में विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया।
सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना में जातियों की आबादी संबंधी आंकड़े सार्वजनिक नहीं करने पर भी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि सपा, द्रमुक, राजद, जद(एकी) और वाम दल भी इन आंकडों को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं। संसद सत्र में यह मुद्दा प्रमुखता से छाये रहने की उम्मीद है।
जद(एकी) अध्यक्ष शरद यादव ने कहा है कि यह मुद्दा लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में उठाया जाएगा। सरकार पर जाति संबंधी आंकड़े सार्वजनिक करने का दबाव बनाने के लिए संयुक्त रणनीति बनाने के उद्देश्य से अन्य दलों से भी बातचीत की जा रही है। द्रमुक प्रमुख एम करूणानिधि, माकपा की वरिष्ठ नेता सुहासिनी अली और कांग्रेस प्रवक्ता राजीव गौडा ने भी इन आंकडों को सार्वजनिक करने का समर्थन किया है।