उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सामने विपक्ष कहीं ठहर नहीं पाया। आलम यह रहा कि समाजवादी पार्टी 48.62 फीसद सीटों पर अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई। वहीं बहुजन समाज पार्टी 62.22 फीसद सीटों पर जमानत बचा पाने को तरस गई। निकाय चुनाव परिणाम से साफ हो गया कि उत्तर प्रदेश में कोई भी विपक्षी पार्टी इस वक्त भाजपा का मुकाबला कर पाने की हैसियत में नहीं है। पहले बात नगर निगम चुनाव की।

यूपी निकाय चुनाव में भाजपा समेत सपा, बसपा, कांग्रेस सभी बड़े राजनीतिक दल पूरे दम के साथ चुनावी मैदान में उतरने का दावा कर रहे थे, लेकिन नतीजे आए तो पैरों से जमीन खिसक गई। उत्तर प्रदेश के 17 नगर निगमों में किसी भी विपक्षी दल का एक भी महापौर प्रत्याशी जीत के लिए तरस गया। भारतीय जनता पार्टी ने सभी 17 सीटों पर जीत का परचम फहरा कर सबको स्तब्ध कर दिया।

वहीं नगर पालिका परिषद चुनावों की 198 सीटों में 88 पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की। जबकि सपा को 35, बसपा को 16, कांग्रेस को चार सीटों पर ही जीत हासिल हुई। नगर पंचायत अध्यक्ष के 543 सीटों में भारतीय जनता पार्टी ने 191 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की। वहीं सपा ने 78, बसपा ने 37 और कांग्रेस ने 14 सीटों पर अपनी जीत हासिल की। भाजपा ने सभी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया।

इस बाबत प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनाव के परिणामों ने विपक्षी दलों को उनकी जमीनी हकीकत का अहसास करा दिया है। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जिस तरह चहुंमुखी विकास पर काम किया उसको मतदाताओं ने ध्यान में रख कर मतदान किया। जिसके परिणाम सामने हैं। उन्होंने कहा कि बयान देने और उसको अमली जामा पहनाने में खासा अंतर है।

चाहे वो समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी, दोनों ही क्षेत्रीय दलों ने जनता का भरोसा तोड़ा। जिसके नतीजे सब के सामने हैं। निकाय चुनाव में हालांकि भारतीय जनता पार्टी के 34.27 फीसद प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए। निकाय चुनाव में सपा के 48.62 फीसद तो बसपा के 64.22 फीसद प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सके। कांग्रेस की बात की जाए तो पार्टी के 78.33 फीसद, आम आदमी पार्टी के 88.13 फीसद, राष्ट्रीय लोक दल के 55.83 और एआइएमआइएम के 74.01फीसद प्रत्याशी जमानत बचाने के लिए तरस कर रह गए।

समाजवादी पार्टी की सहयोगी रालोद के 55 फीसद से अधिक प्रत्याशियों का जमानत न बचा पाना इस बात का संकेत है कि अपने गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी वो अपनी पकड़ खोती नजर आई। फिलहाल निकाय चुनाव को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल बताने वाला विपक्ष चुनाव परिणाम के बाद खामोश है। इसे ये समझ नहीं आ रहा है कि आखिर उससे गलतियां कहां हुई।

समाजवादी पार्टी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी को भितरघतियों से खासा नुकसान हुआ है। इनको चिह्नित कर पार्टी से बाहर करने का काम जल्द शुरू किया जाएगा। वहीं विधानसभा चुनाव के बाद जनता के बीच न पहुंचने वाले मायावती को भी इस चुनाव से खासा सबक मिला है। वो अब ये सोचने पर मजबूर हैं कि अकेले कार्यकर्ताओं के बल पर कोई भी चुनाव जीतने के दिन गये। अब चुनाव लड़ना है तो उन्हें भी जनता के बीच जाना ही होगा।