Operation Sindoor: 6-7 मई की दरमियानी रात भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पीओके में कुल 9 आतंकी ठिकानों को नेस्तानाबूद कर दिया। आतंक के खिलाफ भारत के जोरदार एक्शन से बौखलाई पाकिस्तानी सेना ने 7 मई की शाम में अंधेरा होते ही जम्मू कश्मीर के अलग-अलग सेक्टर में फायरिंग शुरू कर दी थी। इस दौरान ही कुपवाड़ा जिले के तंगधार क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर स्थित बाटापोरा पहला गोला गिरा तो वहां रहने वाले लोगो में दहशत फैल गई।
पाक सेना की ताबड़तोड़ फायरिंग के चलते वहां रहने वाले रफीक अहमद और उनके भाई बंकर की ओर दौड़े, जो कि 10X12 फुट का बिखरा हुआ कमरा था। 6 भाईयों के परिवार में 12 बच्चे में भी शामिल थे। ये सभी वहीं रुके रहे। इस दौरान पाक सेना की तरफ से लगातार गोले बरस रहे थे। इस दौरान ही अचानक एक तेज रोशनी अंधेरे को चीरती हुई आई। उनके ठीक ऊपर पांच घरों में आग लगी हुई थी।
लोगों को गोलीबारी और आग में हो गया सब खाक
पाक सेना की फायरिंग के चलते आधे घंटे के भीतर ही मकानों का समूह, पांच दुकानें और दो टैक्सियाँ जलकर राख हो गईं। जले हुए घरों की ओर इशारा करते हुए रफीक के भाई तस्वीर अहमद ने कहा, “हम अपने पहने हुए कपड़ों के अलावा कुछ भी नहीं बचा पाए। जैसे ही आग फैली, हमने फायर ब्रिगेड को बुलाया और बंकर से बाहर निकलकर जो कुछ बचा सकते थे, उसे बचाने की कोशिश की लेकिन गोले बरस रहे थे और हम सुरक्षा के लिए वापस अंदर भागे।”
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रफीक पहले सेना भी रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस घर को बनाने में चार दशक लगा दिए। आखिरकार यह घर बनकर तैयार हो गया। मैंने आखिरी हिस्से की पेंटिंग चार दिन पहले ही करवाई थी। उन्होंने कहा कि अब हम कहां जाएंगे और किससे मदद मांगेंगे? मकानों के खंडहरों में जली हुई वाशिंग मशीन, चावल और दालें, स्कूल की किताबें, पिघले हुए बर्तन और कपड़े शामिल थे।

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फायर ब्रिगेड का खत्म हो गया पानी
जानकारी के मुताबिक, फायर ब्रिगेड आ गई थी लेकिन आग को रोकने से पहले ही उसका पानी खत्म हो गया। नरगिस बेगम ने कहा, “जब वे जाने लगे, तो मैंने उनसे विनती की। हमारे घर अभी भी जल रहे थे, और मैं चाहती थी कि वे आखिरी घर को बचा लें ताकि हमारे पास रहने के लिए जगह हो। लेकिन उन्होंने पूछा कि उन्हें हमारे घर बचाने चाहिए या अपनी जान? मैं गुस्से में थी और मैंने गाड़ी के विंडशील्ड पर हाथ मारा। मेरे जीजा ने अपनी गाड़ी निकाली, पानी लाया और घर को बचाने की कोशिश की।”
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1999 के बाद सबसे ज्यादा गोलीबारी
छह परिवारों के लिए गोलाबारी के घंटे अनंत काल के समान लग रहे थे, और जब पहली किरण फूटी तो वे पड़ोसी के घर की ओर भागे। बटपोरा गांव एलओसी के पास स्थित है, जो तंगधार कस्बे से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। सेना की तोपखाना इकाई कुछ सौ मीटर की दूरी पर है।
तंगधार के शतपल्ला निवासी निसार अहमद ने कहा कि मैंने बहुत लंबे समय से इतनी भीषण गोलाबारी नहीं देखी है। मुझे याद है कि आखिरी बार इतनी भीषण गोलाबारी 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान हुई थी।” रविवार को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम के बाद सीमा पार से गोलाबारी समाप्त हो गई और रफीक तथा उसके छह परिवार बाटापोरा लौट आए।