प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त को लड़कियों के लिए शादी की उम्र लड़कों के बराबर यानी 21 साल करने का वादा किया था। सरकार ने उनके वायदे पर अमल करते हुए लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के बिल को लोकसभा में पेश किया तो इसे संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। लेकिन हैरत की बात है कि महिलाओं के उत्थान को ध्यान में रखकर तैयार किए बिल की जांच के लिए 31 सदस्यीय संसदीय समिति में केवल एक महिला सांसद हैं। वो हैं टीएमसी की सुष्मिता देव। सरकार की तरफ से लोकसभा में बिल स्मृति ईरानी ने पेश किया था।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले ने इस पर अचरज जताते हुए कहा कि कम से कम आधी संख्या तो पैनल में महिलाओं की होनी चाहिए थी। पैनल के चेयरमैन सांसद विनय सहस्रबुद्धे हैं। सुले का कहना है कि सहस्रबुद्धे चाहें तो सदस्यों में महिलाओं की संख्या बढ़ाने पर पहल कर सकते हैं। उनका कहना है कि उन्हें ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि बात महिलाओं के सशक्तीकरण से जुड़ी है। इसमें महिला सांसद बेहतर तरीके से अपनी राय रख सकती हैं और बिल की जांच कर सकती हैं।

देश में लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ा कर 21 साल करने के प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। इसके बाद सरकार ने इस बिल को संसद में पेश किया था। वहां से फैसला किया गया था कि इस बिल की 31 सदस्यीय संसदीय सिमित जांच करके अपनी रिपोर्ट देगी। सरकार ने इसके लिए बाल विवाह प्रतिबंध कानून 2006 में संशोधन किया है। प्रस्ताव को मिली मंजूरी का आधार नीति आयोग को सौंपी गई सिफारिश है। यह सिफारिश जया जेटली की अध्यक्षता वाली एक टास्कफोर्स ने की थी। इसमें लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ा कर 21 वर्ष करने को कहा गया था।

टास्कफोर्स कम उम्र में मातृत्व, मृत्यु दर घटाने और लड़कियों में पोषण स्तर बढ़ाने की कोशिश के उपाय सुझाने के लिए बनाई गई थी। जया जेटली ने कहा है कि हाल में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे राउंड 5 के आंकड़ों से साफ है कि प्रजनन दर घट रही है और आबादी नियंत्रण में है। दरअसल महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र बढ़ाने का मकसद उनका सशक्तिकरण है। उन्होंने कहा कि यह सिफारिश एक्सपर्ट्स, युवाओं खास कर लड़कियों से व्यापक सलाह-मशविरे के बाद की गई है। इसमें युवा लड़कियों से मशविरे को काफी ज्यादा अहमियत दी गई, क्योंकि यह फैसला उन्हें ही सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा।