रंजना मिश्रा
अब एशियाई खेलों में ‘ई-स्पोर्ट्स’ के कार्यक्रम होंगे। ओलंपिक समिति भी इसे मान्यता दे चुकी है। इसलिए इस उद्योग पर पूरी तरह प्रतिबंध तो नहीं लगाया जा सकता, लेकिन जो आनलाइन गेम लोगों में जुए की लत लगाते हैं, उन पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। जिन युवाओं को मेहनत करके परिवार, देश और समाज को आगे ले जाना है, वे आज आनलाइन गेम खेल कर समय बर्बाद कर रहे हैं।
हमारे देश में बच्चों, किशोरों और युवाओं में आनलाइन गेम खेलने की लत महामारी का रूप लेती जा रही है। इसके शिकार लोग चौबीसों घंटे बिना रुके आनलाइन गेम खेलते हैं। आज हर इंटरनेट पर उपलब्ध रोमांचक आनलाइन गेम में रंग-बिरंगे विषय और संगीत के सहमेल के साथ हर पल बदलती दुनिया और पल-पल बढ़ता रोमांच बच्चों के दिलोदिमाग पर हावी हो रहा है।
गेम खेलने की यह लत धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते अवसाद में बदल जाती है। भारत में तेईस वर्ष तक के अट्ठासी प्रतिशत युवा समय बिताने के लिए आनलाइन गेम खेलते हैं। शौक के लिए या समय बिताने के लिए कुछ देर को आनलाइन गेम खेलना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब यह एक बुरी आदत बन जाती है, जिसे ‘गेमिंग एडिक्शन’ कहते हैं। आनलाइन गेम खेलने से हिंसा की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है, क्योंकि ये गेम अक्सर हिंसक घटनाओं से भरे होते हैं। इनमें मरने-मारने की बातें होती हैं, युद्ध होते हैं, बच्चों के हाथों में बंदूकें होती हैं।
कोरोना काल की बंदी के बाद भारत में आनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है, इसमें बच्चों के साथ-साथ बड़े भी शामिल हैं। 2018 में भारत में आनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या करीब 26 करोड़ 90 लाख थी, वर्ष 2020 में यह बढ़ कर करीब 36 करोड़ 50 लाख हो गई। अनुमान है कि 2022 में लगभग 55 करोड़ से ज्यादा यानी लगभग आधी आबादी आनलाइन गेम खेलने में व्यस्त थी। 2016 में भारत में आनलाइन गेम का बाजार लगभग चार हजार करोड़ रुपए का था, जो अब सात से दस हजार करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है।
हर साल यह 18 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है। अनुमान है कि अगले साल यह लगभग 29 हजार करोड़ तक पहुंच जाएगा। लगभग छियालीस प्रतिशत गेम खेलने वाले जीतने के लिए या इसकी ‘एडवांस्ड स्टेज’ में पहुंचने के लिए पैसे भी खर्च करने को तैयार रहते हैं। बहुत से आनलाइन गेम में पैसा कमाने का विकल्प भी होता है, जिससे बड़ी संख्या में युवाओं ने इसे पूरावक्ती काम की तरह अपना लिया है। समय बिताने और शौक के लिए खेला जाने वाला गेम अब जुए और सट्टेबाजी में बदलता जा रहा है। भारत के लोग अब एक दिन में औसतन 218 मिनट आनलाइन गेम खेलते हुए बिता रहे हैं। पहले यह औसत 151 मिनट था।
यह लत बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी जरूरी काम करने से रोकती है। पिछले साल भारत में हुए एक सर्वे में बीस साल से कम उम्र के पैंसठ प्रतिशत बच्चों ने माना था कि वे इसके लिए खाना और नींद छोड़ने को भी तैयार हैं और बहुत सारे बच्चे तो आनलाइन गेम खेलने के लिए अपने माता-पिता का पैसा भी चोरी करने को तैयार हैं। ‘गेमिंग एडिक्शन’ की यह समस्या केवल भारत नहीं, पूरी दुनिया में है।
पिछले साल ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में हर छह में से एक बच्चे ने माना था कि गेम खेलने के लिए उन्होंने माता-पिता का पैसा चोरी किया। इसके लिए ज्यादातर बच्चों ने अपने माता-पिता के डेबिट या क्रेडिट कार्ड का उन्हें बिना बताए इस्तेमाल किया था। कुछ आनलाइन गेम मुफ्त होते हैं, कुछ में पैसा देना होता है। कई गेम जीतने पर ‘रिवार्ड’ भी मिलता है, इससे लालच बढ़ता जाता है। हार जाने पर डूबा पैसा वापस पाने की जिद होती है। बच्चे लगातार झूठ बोलने और कर्ज लेने जैसी आदतों के शिकार हो जाते हैं।
आनलाइन गेम जरूरत से ज्यादा खेलने से बच्चों के मन मस्तिष्क पर बहुत बुरा असर पड़ता है। वे चिड़चिड़े और हिंसक बन रहे हैं। माता-पिता और रिश्तेदारों से बात करने के बजाय वे इसी आभासी दुनिया में खोए रहना पसंद करते हैं। यूनिवर्सिटी आफ न्यू मैक्सिको की रिसर्च के मुताबिक दुनिया भर में 15 प्रतिशत गेम खेलने वाली इसकी लत का शिकार होकर मानसिक तौर पर बीमार हो जाते हैं।
इस बीमारी के कुछ लक्षण होते हैं, जिन्हें समय पर पहचान लेना बहुत जरूरी है। जैसे, गेम के अलावा हर काम से खुद को अलग कर लेना, भूख कम हो जाना, आंखों और कलाइयों में दर्द होना, सिर में दर्द, नींद कम आना, न खेल पाने पर चिड़चिड़ापन आदि। इसके अलावा खीज, भूलने की बीमारी, निराशा, तनाव और अवसाद जैसी बीमारियां भी जन्म लेने लगती हैं।
सत्तर प्रतिशत आनलाइन गेमों के दौरान ‘लूट बाक्स’ जैसे पड़ाव बच्चों को बहुत आकर्षित करते हैं। इन ‘लूट बाक्स’ को पैसा देकर खरीदा जा सकता है और इनके खुलने पर गेम में आगे बढ़ने में आसानी होती है। ब्रिटेन में 19 वर्ष से कम उम्र के 11 प्रतिशत बच्चों ने इन ‘लूट बक्सों’ को खरीदने के लिए अपने अभिभावकों के एक हजार 130 करोड़ रुपए चुरा लिए।
2018 में ‘लूट बाक्स’ खरीदने के लिए दुनिया भर के गेम खेलने वालों ने 2 लाख 25 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे। अनुमान है कि 2025 तक ‘लूट बाक्स’ खरीदने पर ‘गेमर्स’ 3 लाख 75 हजार करोड़ रुपए खर्च करने लगेंगे। यह रकम भारत के स्वास्थ्य और शिक्षा बजट से भी ज्यादा है। अक्सर ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं कि बच्चे अगले पायदान पर पहुंचने के लिए अपनी जान तक गंवा देते हैं।
अगर आभासी दुनिया ही बच्चे की दुनिया बन जाए तो यह एक बड़ी चिंता का विषय है और अभिभावकों को इसके प्रति सजग हो जाना चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को बेहतर कामों में लगाएं, उनके साथ खेलें, बातें करें, उन्हें अपने जीवन के रोचक अनुभव सुनाएं, अच्छी और शिक्षाप्रद किताबें पढ़ने को प्रेरित करें, उन्हें रचनात्मक कार्य करने को प्रेरित करें, घर के छोटे-मोटे कामों में उनकी मदद लें। इस सबसे बच्चे आभासी दुनिया से बाहर निकलेंगे और उन्हें वास्तविक दुनिया में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
हाल ही में चीन की सरकार ने कुछ सख्त नियम बनाए हैं, जिनके अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे एक हफ्ते में तीन घंटे से ज्यादा आनलाइन गेम नहीं खेल पाएंगे। वहां 18 वर्ष तक के बच्चे शुक्रवार, शनिवार और रविवार को केवल एक-एक घंटा आनलाइन गेम खेल सकते हैं और वह भी सिर्फ रात के आठ बजे से लेकर नौ बजे तक। गेमिंग कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वे इन नियमों का पालन बच्चों से करवाएं और आनलाइन गेम खेलने वाले बच्चों की पहचान भी खुद करें। बहुत जरूरी है कि भारत में भी ऐसे नियम बनाए और आनलाइन गेम खेलने पर नियंत्रण लगाया जाए।
अब आनलाइन गेम को दुनिया भर में मुख्य खेलों में भी शामिल किया जाने लगा है। एशियाई खेलों में ‘ई-स्पोर्ट्स’ के कार्यक्रम होंगे। ओलंपिक समिति भी इसे मान्यता दे चुकी है। इसलिए इस उद्योग पर पूरी तरह प्रतिबंध तो नहीं लगाया जा सकता, लेकिन जो आनलाइन गेम लोगों में जुए की लत लगाते हैं, उन पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है।
जिन युवाओं को मेहनत करके परिवार, देश और समाज को आगे ले जाना है, वे आज आनलाइन गेम खेल कर समय बर्बाद कर रहे हैं। कोविड के दौरान स्कूल-कालेज बंद होने की वजह से आनलाइन पढ़ाई का चलन बढ़ा है, इसलिए अब हर बच्चे के हाथ में कंप्यूटर, लैपटाप या मोबाइल है। पर पढ़ाई से ज्यादा वे इनका उपयोग आनलाइन गेम खेलने में करते हैं, जो बहुत घातक होता जा रहा है। इस पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है।