कोरोनावायरस की दूसरी लहर के बीच जहां पूरे देश में हर दिन 4 लाख से ज्यादा नए केस और चार हजार से ज्यादा मौतें दर्ज की जा रही थीं, ठीक उसी वक्त उत्तर प्रदेश के गंगा किनारे स्थित शहरों में नदियों से शवों का मिलना शुरू हो गया था। इस पर यूपी सरकार पर जमकर सवाल उठे। हालांकि, जब खुद केंद्र सरकार ने यूपी से इस पर जवाब मांगा, तो अधिकारियों ने कहा कि उन्हें पहले से राज्य में इस प्रचलित परंपरा का पता था और कोरोनाकाल से पहले भी ऐसा होता रहा है।
बताया गया है कि यूपी सरकार के अफसरों ने यह जानकारी केंद्रीय जलशक्ति मंत्री के सचिव पंकज कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में दी थी। इसमें बिहार के भी कई अफसर शामिल थे। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई इस बैठक का मकसद राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की ओर से 11 मई को राज्यों को जारी की गई गाइडलाइंस के पालन पर जानकारी हासिल करना था। NMCG ने राज्यों को गंगा में शवों को बहाने से रोकने के निर्देश दिए थे।
इस बैठक में ही यूपी सरकार के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (शहरी विकास) रजनीश दुबे ने बताया कि राज्य के पूर्वी और मध्य क्षेत्र में मृतकों के शव को नदी में बहाने का प्रचलन है। उन्होंने यह भी बताया कि इन मध्य यूपी में कानपुर-उन्नाव और पूर्वी यूपी में बनारस-गाजीपुर परंपरा से सबसे ज्यादा प्रभावित जिले हैं। केंद्र को यह भी बताया गया था कि यूपी के पश्चिमी जिलों में ऐसे केस नहीं मिले, जबकि कन्नौज से बलिया तक यह ज्यादा चलन में दिखा।
मीटिंग में हुई बातचीत के दौरान यूपी सरकार ने गंगा से मिले शवों के आंकड़े का खुलासा नहीं किया। हालांकि, बिहार के अधिकारियों ने कहा कि यूपी से वहां कुल 71 शव बहकर आए थे। बिहार के शहरी विकास मामलों के प्रमुख सचिव आनंद किशोर ने यह भी कहा था कि राज्य सरकार ने नदी में शवों को बहने से रोकने के लिए अपनी तरफ मछली पकड़ने के जाल भी लगाए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, केंद्र और राज्यों की इस बैठक में फैसला हुआ कि गंगा नदी में शवों का बहाना और उन्हें किनारे पर दफनाने की प्रथा को रोका जाएगा और अब तक इस तरह मिले शवों का ठीक तरीके से अंतिम संस्कार होगा। इतना ही नहीं मीटिंग में यह भी तय हुआ कि पानी में कोरोनावायरस की जांच के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी की मदद ली जाएगी।