नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) पर केंद्र सरकार ने कहा है कि भारत दुनिया भर के शरणार्थियों की राजधानी नहीं बन सकता। शुक्रवार (19 जुलाई 2019) सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने यह दलील पेश की। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखा। केंद्र और असम सरकार ने सीमा से लगे जिलों मे 20 फीसदी सैंपल पुर्नजांच के लिए सुप्रीम कोर्ट से फाइनल एनआरसी की तारीख 31 जुलाई बढ़ाने का आग्रह किया है।
केंद्र और असम सरकार ने बांग्लादेश सीमा से लगे असम के जिलों में नागरिक पंजी मसौदे में शामिल किये गये नामों की सूची से 20 फीसदी और दूसरे जिलों की मसौदा सूचियों से 10 फीसदी औचक नमूने लेने और उनका सत्यापन करने की अनुमति के लिये 17 जुलाई को शीर्ष अदालत में आवेदन दायर किये थे।
असम और केंद्र सरकार ने कोर्ट से एनआरसी सूची की डेडलाइन को 31 जुलाई तक बढ़ाने के लिए आग्रह किया। मेहता ने कहा कि सरकार राज्य में एक बार फिर से रिवेरिफिकेशन कर गैर-अप्रवासी लोगों की पहचान करना चाहती है। सालिसिटर जनरल ने कहा कि सरकार अवैध घुसपैठियों से कड़ाई से निबटने के लिए प्रतिबद्ध है। देश को शरणार्थियों की राजधानी नही बनने दिया जाएगा।
सरकार ने कहा कि स्थानीय सांठगांठ के चलते लाखों अवैध घुसपैठिये नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन सूची मे शामिल हो गए हैं जिसकी जांच करना बेहद जरूरी है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर.एफ नरीमन की बेंच ने केंद्र की दलीलों को सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को तय की है। कोर्ट निर्णय लेगी कि क्या एनआरसी लिस्ट की 31 जुलाई की डेडलाइन को आगे बढ़ाया जाना चाहिए या नहीं।
बता दें कि कि सरकार का मानना है कि एनआरसी के जरिए असम में गैर-अप्रवासी लोगों की पहचान की जा रही है। बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने के बाद कई अवैध घुसपैठियों ने भारत में गैर-कानूनी तरीके से पनाह ले ली थी। खासतौर पर असम में बांग्लादेश से सटी सीमा पर हजारों लोगों ने भारत में प्रवेश किया। सरकार का मानना है कि इन घुसपैठियों को भारत से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। असम में डिटेंशन सेंटर में भी कई लोग रहे रहे हैं।