अरुणा कपूर
इस वजह से गुस्से में कई बार कुछ ज्यादा ही बोल जाता है! मैं सोचती हूं कि क्या यह सफाई या स्पष्टीकरण सुन कर वे लोग चुप बैठ जाएंगे, जिन्हें अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति ने कोई अपशब्द कहे हों? शायद नहीं। आमतौर पर ऐसा होता है कि दूसरे लोग भी जैसे को तैसा का रास्ता अपनाते हुए उसी की भाषा में जवाब दे डालते हैं! या हो सकता है कि कुछ लोग उसकी तरफ सहानुभूति का रुख अपनाते हुए उसकी बातों पर ध्यान नहीं दें!
कुछ दशक पहले अभिभावक अपने बच्चों को सुख-दुख के बारे में समझाते हुए अच्छी शिक्षा देते थे कि सुख और दुख मन के भाव होते हैं! आपके मन को जो अच्छा लगे, अनुकूल लगे, आनंददायी लगे, वह सुख होता है और आपको जो कष्टप्रद लगे, प्रतिकूल लगे और इच्छा के विपरीत लगे, वह दुख होता है! जीवन में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं! इससे मन को विचलित नहीं होने देना चाहिए! सुख के समय आनंदातिरेक में यह नहीं भूलना चाहिए कि यह समय ऐसा ही यथावत रहेगा। इसी तरह दुख की घड़ी में भी यह नहीं भूलना चाहिए कि यह दुखद समय हमेशा ऐसा ही बना रहेगा! यह सोच मन को स्थिर बनाती है और मन में तनाव पैदा नहीं करती।
ऐसा नहीं है कि अवसाद या तनाव से मनुष्य ग्रस्त होता ही नहीं है! मन पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ने पर जब मष्तिष्क सुचारु ढंग से अपना काम करना बंद कर देता है, तब यह अवसाद की स्थिति आती है! यह एक मानसिक बीमारी है! बीमारी इसलिए है कि हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता! किसी परीक्षा में बहुत से विद्यार्थी असफल भी हो जाते हैं, लेकिन सभी पर इस असफलता का एक जैसा असर नहीं पड़ता! कुछ विद्यार्थी इस दुखदायी परिस्थिति को झेल लेते हैं और दोबारा परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। कुछ विद्यार्थी यह सोच कर कि ‘इस विषय में सफल होना उनकी क्षमता के बाहर है’ किसी अन्य विषय की परीक्षा की तैयारी में लग जाते हैं! लेकिन कुछ परीक्षा परिणाम की असफलता को जीवन की असफलता समझ कर इतने दुखी हो जाते हैं कि अवसाद या तनाव की स्थिति में पहुंच जाते हैं!
इस तरह तनाव में आने के बाद वे गुमसुम से हो जाते हैं या किसी नशे को अपनाकर अपना दुख भुलाने की नाकाम-सी कोशिश करते हैं, जो गलत है! इनके दिमाग में नकारात्मकता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है! ऐसे व्यक्ति सामने आने वाले हर किसी को नकारात्मकता की दृष्टि से ही देखते हैं! इनके खानपान में एकदम से फर्क आ जाता है। या तो ऐसे व्यक्ति बहुत कम खाना खाते हैं या बहुत ज्यादा मात्रा में खाना शुरू कर देते हैं! खाद्य पदार्थों के स्वाद की तरफ से भी इनका ध्यान हट जाता है।
अवसाद को साधारण बीमारी के तौर पर नहीं लेना चाहिए! शारीरिक तौर पर स्वस्थ दिखने वाले लोग भी अवसाद से ग्रस्त हो सकते हैं! यह मानसिक बीमारी होने की वजह से पीढ़ी दर पीढ़ी यानी भी चलती रह सकती है। इसमें शारीरिक कष्ट के लक्षण देखें जाए तो सिरदर्द, उल्टियां, नींद का कम या न आना और किसी बात को लेकर मन में डर बैठ जाना वगैरह लक्षण दिखाई देते हैं। किसी व्यक्ति में ज्यादा लक्षण दिखाई देने पर उसे मानसिक चिकित्सक को दिखाना ही जरूरी है। मानसिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार दवाइयां देने से और उस व्यक्ति के साथ सौम्य व्यवहार करने से वह व्यक्ति जल्दी स्वस्थ और सामान्य हो जाता है।
ऐसा नहीं है कि यह कोई असाध्य बीमारी है। चिकित्सा जगत में इस पर इस पर बहुत खोज हो चुकी है! यह बीमारी केवल अनुवांशिक भी नहीं है। किसी भी स्त्री या पुरुष को दिमागी तनाव हो तो उसके कारण भी वह इसकी चपेट में आ जा सकता है। बच्चों पर भी पढ़ाई का ज्यादा बोझ डालने या उसकी इच्छा के विपरीत विषयों की पढ़ाई करने के लिए उस पर जोर डालने से वह तनावग्रस्त हो जाता है। कुछ बच्चे ऐसे तनाव की वजह से पढ़ाई से बिल्कुल ही हट जाते हैं या आत्महत्या तक करने पर उतारू हो जाते हैं।
ऐसे बहुत से विद्यार्थी देखे गए हैं, जो परीक्षा में कम अंक आने पर या विफल होने की वजह से खुदकुशी कर लेते हैं। यह सब पहले तनाव और बाद में अवसाद की अवस्था में पहुंचने पर होता है। इसलिए हरेक परिवार की कोशिश यही होनी चाहिए कि परिवार के किसी भी सदस्य पर दिमागी दबाव न पड़े। किसी बात पर भावनात्मक रूप से परेशान व्यक्ति के साथ सामान्य और संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए। खसतौर पर बच्चों के दिमाग पर अपनी इच्छाओं का बोझ नहीं डालना चाहिए। भावनात्मक रूप से परेशान व्यक्ति को समझना उसके साथ-साथ खुद को भी समझ और संवेदना के स्तर पर बेहतर बनाता है।