सुप्रीम कोर्ट में अब से जज प्री-इंस्टॉल्ड माइक सिस्टम का इस्तेमाल करेंगे। यह बात हम नहीं, बल्कि खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई ने बुधवार (14 नवंबर) को खुली अदालत में कही। वह बोले कि वे लोग (जज) मामलों की सुनवाई के दौरान माइक का इस्तेमाल करेंगे। बकौल सीजेआई, “हमारे पास माइक इस्तेमाल करने को लेकर दरख्वास्त आई थीं, लिहाजा हम उनका प्रयोग करेंगे।” सीजेआई के इस ऐलान की सराहना न केवल वकीलों की जमात ने की है, बल्कि कोर्ट परिसर में सुनवाई के दौरान मौजूद रहने वाले वादियों और पत्रकारों ने भी इस कदम की तारीफ की।
आपको बता दें कि इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें कोर्ट के भीतर सुनवाई के दौरान माइक का इस्तेमाल न होने को सवाल खड़ा किया गया था। कहा गया था कि माइक का इस्तेमाल न होना, न केवल नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह न्याय व्यवस्था की प्रशासनिक प्रणाली में बाधा भी पैदा करता है।
याचिका में यह भी कहा गया था कि माइक का इस्तेमाल न होने के कारण पत्रकारों को कोर्ट की कार्यवाही समझने और समझाने में खासा दिक्कत का सामना करना पड़ता है। ऐसे में कई बार रिपोर्टिंग में गलतियां भी हो जाती हैं। साथ ही लॉ इंटर्न्स को भी कोर्ट की कार्यवाही समझने में समस्या का सामना करना पड़ता है, जो कि उनके करियर पर प्रभाव डालती है।
इस संबंध में याचिकाओं बताती हैं, “डिजिटल मीडिया प्लैटफॉर्म्स जिस तरह से बढ़े हैं, वैसे ही मीडिया संस्थानों व उससे जुड़े हुए लोगों में खबरें पहले ब्रेक करने की होड़ भी बढ़ी है। ऐसे में कई बार गलतियां होती हैं और कुछ का कुछ छप-प्रसारित हो जाता है।”
याचिकाकर्ताओं में कपिलदीप अग्रवाल, कुमार शानू और पारस जैन शामिल हैं। इन तीनों ने पिछले साल एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) डाली थी, जिसमें पता लगा था कि सुप्रीम कोर्ट में लगे प्री-स्टॉल्ड माइक सिस्टम को बदलने पर तकरीबन तकरीबन 91 लाख रुपए खर्च हो गए थे। पिछले साल, याचिकाकर्ताओं ने लिखित में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा से कोर्ट परिसर में माइक के इस्तेमाल की मांग की थी।

