रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में 20,000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किए गए यूपी डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरीडोर में हाइली एडवांस डिफेंस मिसाइल, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, मानव रहित हवाई वाहन और सशस्त्र बलों के लिए ड्रोन का निर्माण किया जाएगा।

आत्मनिर्भर भारत पर द इकोनॉमिक टाइम्स के कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यहां सिर्फ नट-बोल्ट या स्पेयर पार्ट्स ही नहीं बनाए जाएंगे बल्कि सुपरसोनिक मिसाइलों का भी निर्माण किया जाएगा। रक्षा मंत्री ने कहा कि यूपी डिफेंस कॉरीडोर में ड्रोन, यूएवी, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (सिस्टम), विमान और ब्रह्मोस मिसाइल भी निर्मित और असेंबल किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में डिफेंस कॉरीडोर के माध्यम से रक्षा निर्माण के लिए एक सक्षम वातावरण तैयार किया गया है।

उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि इस युद्ध के समय देश को रक्षा उपकरण देने से मना कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि यही हाल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान था और सशस्त्र बलों ने उपरकरणों की भारी जरूरत महसूस की थी।

राजनाथ सिंह ने कहा कि तेजी से बदल रही दुनिया में आत्मनिर्भरता एक विकल्प नहीं बल्कि यह एक आवश्यकता है। उन्होंने एक दार्शनिक की पंक्ति का उदाहरण देते हुए कहा कि जो अपना इतिहास भूल जाते हैं वो उसे दोहराने की गलती करते हैं। सिंह ने आगे कहा कि जब मैं सेना की आत्मनिर्भरता की बात करता हूं तो इसका अर्थ केवल सैनिकों से नहीं है बल्कि इसका अर्थ सैन्य उपकरण को लेकर भी है। समय बदलने के साथ सैन्य उपकरण की भूमिका अधिक बढ़ जाती है। आज युद्ध में टेक्नोलाजी के नाम से एक नया योद्धा है तो हमें आगे की बात सोचनी होगी।

उन्होंने कहा कि आयात किए गए उपकरणों की एक अपनी सीमाएं होती हैं कभी ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जब आप इसका उपयोग करना चाहते हैं और दूसरा देश इसे अवरुद्ध कर सकता है। उन्होंने कहा कि आज ज्यादातर उपकरणों में इलेक्ट्रानिक प्रणालियां होती हैं। इसलिए क्या इस संभावना से इनकार किया जा सकता है कि जो प्लेटफार्म या उपकरण हम इस्तेमाल कर रहे हैं उसमें लगी चिप दुश्मन को हमारी स्थिति के बारे में सूचित कर दे।

उन्होंने कहा कि आयात किए गए हथियाक कुछ शर्तों के साथ आते हैं, जो एक संप्रभु राष्ट्र के लिए ठीक नहीं हैं। राजनाथ ने कहा कि हमने डीआरडीओ, अकादमिक क्षेत्र और उद्योग के साथ मिलकर भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया है और हमारे प्रयासों के परिणाम आने लगे हैं। यह खुशी की बात है कि हमारा घरेलू रक्षा उत्पादन आज एक लाख करोड़ रुपये का स्तर पार कर गया है।