सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें उसने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा व ग्रेटर नोएडा में 2006 से 2009 के बीच 65 गांवों में किए गए भूमि अधिग्रहण को वैध करार दिया था।
प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू के नेतृत्व वाले पीठ ने किसानों के साथ ही नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों की हाई कोर्ट के 21 अक्तूबर 2011 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण को रद्द करने से इनकार कर दिया था और निर्देश दिया था कि विकसित भूमि का दस फीसद किसानों को दिया जाए।
करीब 850 किसानों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, वहीं नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों ने हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसने किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने के साथ ही कहा था कि किसानों को विकसित भूमि का दस फीसद दिया जाना चाहिए। पीठ में न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अरुण मिश्र भी शामिल थे। पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता सूरत सिंह ने कहा कि बढ़े हुए मुआवजे का करीब 64 फीसद दिया जाएगा जो कि 850 से 1400 रुपए प्रति वर्ग गज है। इन दो प्राधिकरणों ने 2006 में 22000 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की थी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार की भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में कुछ अवैधता है क्योंकि किसानों को सुनवाई का अधिकार नहीं दिया गया।
दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से किसानों में घोर निराशा है। उनका कहना है कि बड़ी बेंच के पास याचिका दायर करेंगे और बिल्डरों के काम को नहीं होने दिया जाएगा। इसके विरोध में गांव-गांव में पंचायत कर किसानों को लामबंद किया जाएगा। किसान संघर्ष समिति के प्रवक्ता मनवीर भाटी ने कहा कि प्राधिकरण ने उन्हें धोखा देते हुए उद्योग के नाम पर जमीनें ली थीं।
लेकिन बाद में लैंड यूज बदलते हुए बिल्डरों में जमीन की बंदरबांट कर दी गई, जो वहां फ्लैट बनाकर बहुत ज्यादा कीमत पर बेच रहे हैं। इसी के विरोध में किसानों ने 2011 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। किसानों को उम्मीद थी कि फैसला उनके पक्ष में आएगा। अब शुक्रवार को रोजा गांव में पंचायत कर रणनीति तैयार की जाएगी। मनवीर भाटी ने कहा कि अगर प्राधिकरण किसानों से विकास में सहभागिता चाहता है तो पहले विकास का पैमाना तय करे और किसानों को बताए।