वित्तीय वर्ष 2019-20 में शहर के विकास के लिए 4610.75 करोड़ रुपए के बजट के मुकाबले अभी तक केवल 1452.05 करोड़ रुपए की धनराशि का इस्तेमाल किया जा सका है। इसका मतलब है कि अभी तक करीब 33 फीसद से कम राशि का ही इस्तेमाल हुआ है। वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर महज एक महीने का समय बचा होने के कारण इसमें अधिक सुधार की उम्मीद नहीं है। माना जा रहा है कि 50-55 फीसद बजट राशि का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण सिविल निर्माण से लेकर ग्राम विकास तक 2019-20 में 1461.92 करोड़ रुपए व्यय किए जाने थे। जिसमें से महज 507 करोड़ रुपए ही इस्तेमाल हुआ है। विकासकार्यों की समीक्षा कर आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बजट की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
नोएडा का अधिसूचित क्षेत्र 20316 हेक्टेअर भूमि पर है। यहां 168 नियोजित सेक्टर हैं। विकास के लिए 15280 हेक्टेयर क्षेत्रफल अधिसूचित किया गया है। मास्टर प्लान 2031 के अनुसार कुल अधिसूचित क्षेत्रफल का 37.45 फीसद आवासीय, 18.7 फीसद औद्योगिक, 12.71 फीसद यातायात, 15.92 फीसद मनोरंजन और 15.55 फीसद हरित क्षेत्र के लिए चिह्नित है। इन क्षेत्रों में विकासशील योजनाओं को संचालित करने के लिए हर साल का वित्तीय बजट तय होता है। ताकि विभिन्न मदों में बजट राशि खर्च कर शहर के स्वरूप को बरकरार रखते हुए लोगों को सुविधा दी जाए। विगत कुछ वर्षों से निर्धारित बजट का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। बाह्य एजंसियों से कराए जाने वाले विकास कार्यों के लिए 1244.5 करोड़ रुपए वित्तीय वर्ष 2019-20 में तय किए गए थे, जिसमें से महज 207 करोड़ रुपए ही खर्च हो सके।
विकासकार्यों के लिए अधिग्रहित की जाने वाली जमीन के लिए 625 करोड़ रुपए के बजट के सापेक्ष 31 दिसंबर तक केवल 163.17 करोड़ रुपए मूल्य की जमीन अधिग्रहण में व्यय किए जा सके। इसी तरह जल व सीवर, विद्युत यांत्रिकी, जन स्वास्थ्य, उद्यान व भूलेख विभागों की स्थिति रही है। अलबत्ता नए वित्तीय बजट की तैयारियां उत्तर प्रदेश के सबसे रईस विकास प्राधिकरण ने शुरू कर दी है। जिसके लिए सभी विभागों से आय-व्यय के आंकड़े मंगाए जा रहे हैं। जिनका मिलान कर नए वित्तीय वर्ष के बजट की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
वित्तीय स्थिति को सुधारने और राजस्व में बढ़ोतरी करने के लिए नोएडा बाह्य एजंसी की मदद लेगा। यह एजंसी विभिन्न विभागों के बीच सामंजस्य बनाकर बकाया धनराशि को वसूलने और राजस्व को बढ़ाने की रणनीति तैयार करेगी। माना जा रहा है कि अभी लैंड बैंक (जमीन बेचकर) के जरिए मिलने वाले राजस्व का विकास योजनाओं में इस्तेमाल किया जा रहा है। जमीन नहीं बचने पर केवल लीज रेंट (किराया) ही एकमात्र आमदनी का साधन है।
भविष्य में आर्थिक तंगी का असर विकासीय योजनाओं पर ना पड़े, इसके लिए यह तैयार की जा रही है। बिल्डरों पर 16 हजार करोड़ रुपए, अनुज्ञा पर आबंटित दुकानों पर 450 करोड़ रुपए, पानी के बकाएदारों पर 500 करोड़ के अलावा सरकारी संस्थाओं पर किराए का कई हजार करोड़ रुपए की देयता है। चिह्नित होने वाली बाह्य एजंसी के लिए इस रकम की वसूली का रास्ता निकालना होगा।
शहर के सफाईकर्मियों की दूर से पहचान हो सके, इसके लिए वे अलग-अलग रंग की जर्सी पहने मिलेंगे। सेंट्रल वर्ज (पथ विभाजक) सुधारने का काम करने वाले संविदा कर्मी लाल रंग की जर्सी पहने दिखेंगे। जिससे पता चल सकेगा कि काम करने वाले प्राधिकरण कर्मी हैं।
इसी तरह साफ-सफाई कर्मियों की पहचान के लिए उन्हें हरे रंग की जर्सी मिलेगी। प्राधिकरण के विशेष कार्याधिकारी इंदु प्रकाश सिंह के मुताबिक जर्सी पहने कर्मियों के चलते अराजक तत्व उन्हें काम करने से नहीं रोक पाएंगे। साथ ही पहचान भी आसान होगी।