देशभर में पीएफआई को लेकर बहस जारी है। हाल ही में बिहार के पटना में पीएफआई का एक मॉड्यूल पकड़ा गया था। जांच के दौरान यह बात सामने आई कि इस मॉड्यूल का मकसद 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है। इसी मुद्दे पर चल रही एक टीवी डिबेट में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता डॉ. अजीज खान ने दावा किया कि मोदी सरकार ने अपने ही सांसद के सवाल के जवाब में कहा था कि पीएफआई से कोई खतरा नहीं है।
उन्होंने कहा कि अगर इतना ही खतरनाक संगठन है तो पीएफआई पर बैन लगना चाहिए, लेकिन बीजेपी कह रही है कि साक्ष्यों की कमी है। उन्होंने बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या का जिक्र करते हुए कहा, “सूर्या ने 15 सितंबर, 2020 को केंद्र से पीएफआई को बैन करने की बात कही थी। इस पर मोदी सरकार ने कहा कि उससे कोई खतरा नहीं है और उसके खिलाफ हमारे पास प्रमाण नहीं हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि जनवरी, 2019 में भी यूपी सरकार से पूछा था कि पीएफआई को बैन क्यों नहीं किया जा रहा, इस पर भी कोई जवाब नहीं आया। उन्होंने कहा कि इससे मकसद साफ है कि सरकार की नीयत ठीक नहीं है और अपना ठीकरा उठाकर पीएफआई पर फोड़ना चाहते हैं।
वहीं, पैनल में मौजूद इस्लामिक स्कॉलर रिजवान अहमद ने कहा कि पीएफआई को बैन करना इतना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि ये कोई चिड़िया नहीं है कि पिंजरे में रख दिया तो समस्या का हल हो गई। रिजवान ने कहा,”सिमी को बैन किया था तो इंडियन मुजाहिद्दीन आ गया। ये बात लोगों को समझनी चाहिए कि किसी भी संस्था को बैन अगर सरकार करती है और अगर किसी भी सुबूतों के अभाव में सुप्रीम कोर्ट ने उस बैन को रिवॉक कर दिया, तो सरकार की किरकिरी होगी और उस संस्था को भी एक तरीके से महानता मिल जाएगी।”
पैनलिस्ट ने कहा कि अगर किसी संस्था को बैन किया जाता है तो उसका बहुत खर्चा आता है। उन्होंने कहा कि आज पीएफआई को बैन कीजिए, 14 दिन बाद दूसरी संस्था बनकर खड़ी हो जाएगी।
