केंद्र सरकार ने पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय कर दिया था। तब संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि कश्मीर में आने वाले समय में रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे। हालांकि, अनुच्छेद 370 के रद्द होने के एक साल बाद भी केंद्र शासित प्रदेश में प्रशासन नई सरकारी नौकरियां नहीं दे पाया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में पहले फेज में सभी स्तर की 10 हजार वैकेंसी भरी जानी हैं। हालांकि, कोरोनावायरस महामारी के बढ़ते प्रकोप की वजह से भर्ती प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित हुई है।
बता दें कि पिछले साल जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा छीने जाने के साथ ही इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया था। हालांकि, केंद्र सरकार जून 2018 से ही कश्मीर में शासन चला रही है। दरअसल, इसी दौरान भाजपा ने महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद उसी साल नवंबर में राज्य विधानसभा को भंग कर के राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया था।
गौरतलब है कि इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसी साल फरवरी में संसदीय समिति को बताया था कि जम्मू-कश्मीर में 84 हजार पद खाली हैं, जिनमें 22,078 वैकेंसी क्लास-4 के कर्मचारियों के लिए हैं। वहीं 54 हजार 375 पद नॉन-गजटेड और 7552 वैकेंसी गजटेड स्तर की थीं। मंत्रालय के ताजा डेटा के मुताबिक, अब तक जम्मू-कश्मीर में निवेश के लिए 13 हजार 600 करोड़ रुपए के एमओयू पर हस्ताक्षर हो चुके हैं।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने द हिंदू को बताया है कि सरकारी सेक्टर में भर्ती प्रक्रिया मुख्य तौर पर कोरोना की वजह से ही धीमी है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर 31 अक्टूबर को ही केंद्र शासित प्रदेश बना था। इस दौरान जमीन के अधिग्रहण के लिए नई लैंड पॉलिसी तैयार की जा रही थी। इसके लिए प्रशासन ने 6 हजार एकड़ सरकारी जमीन की पहचान भी कर ली थी, ताकि इन्हें इंडस्ट्रीज को मुहैया कराया जा सके।
