कोरोना की वजह से देश ने रोजगार और बेसिक सुविधाओं की विभीषिका देखी है। कोविड को बढ़ने से रोकने के लिए मार्च से जून तक देश में संपूर्ण लॉकडाउन रहा। इस दौरान लाखों लोगों को नौकरी चली गई और गरीबों को कई बार भूखे पेट सोना पड़ा। बिहार चुनाव को देखकर लगता है कि आखिर इन प्रतिबंधों की जरूरत क्या थी। अगर जरूरत थी तो क्या अब कोरोना का डर खत्म हो गया है? कोरोना संक्रमण के मामले अब भी बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। दिल्ली में फिर से यह डेली आंकड़ा 5 हजार के पार जा पहुंचा है। पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते वक्त भी चेहरे पर मास्क लगाकर लोगों को नसीहत देते नजर आते थे लेकिन बिहार में रैलियों के दौरान बोलते समय वह बिना मास्क के ही नजर आते हैं। इसका परिणाम होता है कि रैली में मौजूद लोग भी मास्क को खिसकाकर ठुड्डी पर लगा लेते हैं।
बुधवार को पीएम मोदी की दरभंगा, मुजफ्फरपुर और पटना में रैली थी। रैली में भारी जनसमूह इकट्ठा हुआ। लोग वाहनों में भर-भरकर रैली स्थल पर पहुंचे। जाहिर सी बात है कि आते वक्त भी सोशल डिस्टैंसिंग का ध्यान नहीं रखा गया होगा। रैली स्थल पर भी सोशल डिस्टैंसिंग की सिर्फ फॉर्मैलिटी हो रही थी। आगे बैठे लोग तो थोड़ा दूर भी बैठे लेकिन पीछे लोग एक दूसरे पर चढ़े नजर आए। कोरोना काल में भी ज्यादा भीड़ इकट्ठा होना ही विशाल जन समर्थन माना जा रहा है। चुनाव आयोग भी इस मामले में विशेष सख्ती नहीं दिखा रहा है।

पीएम मोदी ने मुजफ्फरपुर में यह भी कहा, ‘एक तरफ कोरोना वायरस की महामारी है और दूसरी तरफ जंगलराज है। अगर उनकी सरकार आई तो लोगों पर दोहरी मार पड़ेगी। वे कोरोना का फंड भी खा जाएँगे। पिछले ट्रैक रेकॉर्ड के आधार पर लोग जंगलराज के युवराज से और क्या उम्मीद कर सकते हैं।’ प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना महामारी को जंगलराज के आगे कमतर करार दिया। जाहिर सी बात है चुनावी जनसभा में वोटों की ही बात होगी लेकिन ये भारी जनसमूह औऱ धुआँधार चुनाव प्रचार कोरोना को पीछे छोड़ता जा रहा है।

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जनसभाओं में स्थिति और भी विषम है। यहां लोगों के मन में कोरोना को लेकर बिल्कुल डर नजर नहीं आता है। पिछले दिनों तेजस्वी की एक रैली में लोग ऐसे एक दूसरे के ऊपर चढ़े थे कि बैरिकेटिंग ही टूट गई। वहीं राहुल गांधी की जनसभा में भी लोग बिना मास्क और दो गज की दूरी का नियम फॉलो करते नजर नहीं आए।

